Thursday, 29 March 2018

Raghav-Yadviyam

राघव-यादवीयम्

( डॉ श्रीवास्तव द्वारा अनूदित )

क्या ऐसा संभव है कि जब आप किताब को सीधा पढ़े तो रामायण की कथा पढ़ी जाए और जब उसी किताब में लिखे शब्दों को उल्टा करके पढ़े तो कृष्ण भागवत की कथा सुनाई दे। जी हां, कांचीपुरम के 17वीं शती के कवि वेंकटाध्वरि रचित ग्रन्थ राघवयादवीयम् ऐसा ही एक अद्भुत ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ को ‘अनुलोम-विलोम काव्य’ भी कहा जाता है।

पूरे ग्रन्थ में केवल 30 श्लोक हैं। इन श्लोकों को सीधे-सीधे पढ़ते जाएँ, तो रामकथा बनती है और विपरीत (उल्टा) क्रम में पढ़ने पर कृष्णकथा। इस प्रकार हैं तो केवल 30 श्लोक, लेकिन कृष्णकथा के भी 30 श्लोक जोड़ लिए जाएँ तो बनते हैं 60 श्लोक। पुस्तक के नाम से भी यह प्रदर्शित होता है, राघव (राम) + यादव (कृष्ण) के चरित को बताने वाली गाथा है राघवयादवीयम। उदाहरण के तौर पर पुस्तक का पहला श्लोक हैः

वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः ।

रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे ॥ १॥

अर्थातः मैं उन भगवान श्रीराम के चरणों में प्रणाम करता हूं जो जिनके ह्रदय में सीताजी रहती है तथा जिन्होंने अपनी पत्नी सीता के लिए सहयाद्री की पहाड़ियों से होते हुए लंका जाकर रावण का वध किया तथा वनवास पूरा कर अयोध्या वापिस लौटे।

विलोमम्

सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी भारामोराः ।

यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं देवम् ॥ १॥

अर्थातः मैं रूक्मिणी तथा गोपियों के पूज्य भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में प्रणाम करता हूं जो सदा ही मां लक्ष्मी के साथ विराजमान है तथा जिनकी शोभा समस्त जवाहरातों की शोभा हर लेती है।

पुस्तक  राघवयादवीयम के ये 60 संस्कृत श्लोक आगे दिए गए हैं.

राघवयादवीयम् रामस्तोत्राणि

अनुलोम

(राम कथा)

विलोम

(कृष्ण कथा)

वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः ।

रामः रामाधीः आप्यागः लीलाम् आर अयोध्ये वासे ॥ १॥

मैं उन भगवान श्रीराम के चरणों में प्रणाम करता हूं जिन्होंने अपनी पत्नी सीता के संधान में मलय और सहयाद्री की पहाड़ियों से होते हुए लंका जाकर रावण का वध किया तथा अयोध्या वापस लौट दीर्घ काल तक सीता संग वैभव विलास संग वास किया ।

सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी मारामोराः ।

यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं देवम् ॥ १॥

मैं भगवान श्रीकृष्ण - तपस्वी व त्यागी, रूक्मिणी तथा गोपियों संग क्रीड़ारत, गोपियों के पूज्य - के चरणों में प्रणाम करता हूं जिनके ह्रदय में मां लक्ष्मी  विराजमान हैं तथा जो शुभ्र आभूषणों से मंडित हैं.

साकेताख्या ज्यायामासीत् या विप्रादीप्ता आर्याधारा ।

पूः आजीत अदेवाद्याविश्वासा अग्र्या सावाशारावा ॥ २॥

पृथ्वी पर साकेत, यानि अयोध्या, नामक एक शहर था जो वेदों में निपुण ब्राह्मणों तथा वणिको के लिए प्रसिद्द था एवं अजा के पुत्र दशरथ का धाम था जहाँ  होने वाले यज्ञों में अर्पण को स्वीकार करने के लिए देवता भी सदा आतुर रहते थे और यह विश्व के सर्वोत्तम शहरों में एक था.  

   

वाराशावासाग्र्या साश्वाविद्यावादेताजीरा पूः ।

राधार्यप्ता दीप्रा विद्यासीमा या ज्याख्याता के सा ॥ २॥

समुद्र के मध्य में अवस्थित, विश्व के स्मरणीय शहरों में एक, द्वारका शहर था जहाँ अनगिनत हाथी-घोड़े थे, जो अनेकों विद्वानों के वाद-विवाद की प्रतियोगिता स्थली थी, जहाँ राधास्वामी श्रीकृष्ण का निवास था, एवं आध्यात्मिक ज्ञान का प्रसिद्द केंद्र था.

कामभारस्स्थलसारश्रीसौधा असौ घन्वापिका ।

सारसारवपीना सरागाकारसुभूररिभूः ॥ ३॥

सर्वकामनापूरक, भवन-बहुल, वैभवशाली धनिकों का निवास, सारस पक्षियों के कूँ-कूँ से गुंजायमान, गहरे कुओं से भरा, स्वर्णिम यह अयोध्या शहर था.

भूरिभूसुरकागारासना पीवरसारसा ।

का अपि व अनघसौध असौ श्रीरसालस्थभामका ॥ ३॥

मकानों में निर्मित पूजा वेदी के चंहुओर ब्राह्मणों का जमावड़ा इस बड़े कमलों वाले नगर, द्वारका, में है. निर्मल भवनों वाले इस नगर में ऊंचे आम्रवृक्षों के ऊपर सूर्य की छटा निखर रही है.

रामधाम  समानेनम् आगोरोधनम् आस ताम् ।

नामहाम् अक्षररसं ताराभाः तु न वेद या ॥ ४॥

राम की अलौकिक आभा - जो सूर्यतुल्य है, जिससे समस्त पापों का नाश होता है – से पूरा नगर प्रकाशित था. उत्सवों में कमी ना रखने वाला यह नगर, अनन्त सुखों का श्रोत तथा तारों की आभा से अनभिज्ञ था (ऊंचे भवन व वृक्षों के कारण).

यादवेनः तु भाराता संररक्ष महामनाः ।

तां सः मानधरः गोमान् अनेमासमधामराः ॥ ४॥

यादवों के सूर्य, सबों को प्रकाश देने वाले, विनम्र, दयालु, गऊओं के स्वामी, अतुल शक्तिशाली के श्रीकृष्ण द्वारा द्वारका की रक्षा भलीभांति की जाती थी.

यन् गाधेयः योगी रागी वैताने सौम्ये सौख्ये असौ ।

तं ख्यातं शीतं स्फीतं भीमान् आम अश्रीहाता त्रातम् ॥ ५॥

गाधीपुत्र गाधेय, यानी ऋषि विश्वामित्र, एक निर्विघ्न, सुखी, आनददायक  यज्ञ करने को इक्षुक थे पर आसुरी शक्तियों से आक्रान्त थे; उन्होंने शांत, शीतल, गरिमामय त्राता राम का संरक्षण प्राप्त किया था.

तं त्राता हा श्रीमान् आम अभीतं स्फीतं शीतं ख्यातं ।

सौख्ये सौम्ये असौ नेता वै गीरागी यः योधे गायन ॥ ५॥

नारद मुनि – दैदीप्यमान, अपनी संगीत से योद्धाओं में शक्ति संचारक, त्राता, सद्गुणों से भरपूर, ब्राहमणों के नेतृत्वकर्ता के रूप में विख्यात – ने विश्व के कल्याण के लिए गायन करते हुए श्रीकृष्ण से याचना की जिनकी ख्याति में वृद्धि एक दयावान, शांत परोपकार को इक्षुक,  के रूप में दिनोदिन हो रही थी.

मारमं सुकुमाराभं रसाज आप नृताश्रितं ।

काविरामदलाप गोसम अवामतरा नते ॥ ६॥

लक्ष्मीपति नारायण के सुन्दर सलोने, तेजस्वी मानव अवतार राम का वरण, रसाजा (भूमिपुत्री) - धरातुल्य धैर्यशील, निज वाणी से असीम आनन्द प्रदाता, सुधि सत्यवादी सीता – ने किया था. 

तेन रातम् अवाम अस गोपालात् अमराविक ।

तं श्रित नृपजा सारभं रामा कुसुमं रमा ॥ ६॥

नारद द्वारा लाए गए, देवताओं के रक्षक, निज पति के रूप में प्राप्त, सत्यवादी कृष्ण, के द्वारा प्रेषित, तत्वतः (वास्तव में) उज्जवल पारिजात पुष्प को नृपजा (नरेश-पुत्री) रमा (रुक्मिणी) ने प्राप्त किया. 

रामनामा सदा खेदभावे दयावान् अतापीनतेजाः रिपौ आनते ।

कादिमोदासहाता स्वभासा रसामे सुगः रेणुकागात्रजे भूरुमे ॥ ७॥

श्री राम - दुःखियों  के प्रति सदैव दयालु, सूर्य की तरह तेजस्वी मगर सहज प्राप्य, देवताओं के सुख में विघ्न डालने वाले  राक्षसों के विनाशक - अपने बैरी - समस्त भूमि के विजेता, भ्रमणशील रेणुका-पुत्र परशुराम - को पराजित कर अपने तेज-प्रताप से शीतल शांत किया था.

मेरुभूजेत्रगा काणुरे गोसुमे सा अरसा भास्वता हा सदा मोदिका ।

तेन वा पारिजातेन पीता नवा यादवे अभात् अखेदा समानामर ॥ ७॥

अपराजेय मेरु (सुमेरु) पर्वत से भी सुन्दर रैवतक पर्वत पर निवास करते समय रुक्मिणी को स्वर्णिम चमकीले पारिजात पुष्पों की प्राप्ति उपरांत  धरती के अन्य पुष्प कम सुगन्धित,  अप्रिय लगने लगे. उन्हें कृष्ण की संगत में   ओजस्वी, नवकलेवर, दैवीय रूप प्राप्त करने की अनुभूति होने लगी.

सारसासमधात अक्षिभूम्ना धामसु सीतया ।

साधु असौ इह रेमे क्षेमे अरम् आसुरसारहा ॥ ८॥

समस्त आसुरी सेना के विनाशक, सौम्यता के विपरीत प्रभावशाली नेत्रधारी रक्षक राम अपने अयोध्या निवास में सीता संग सानंद रह रहे है थे.

हारसारसुमा रम्यक्षेमेर  इह विसाध्वसा ।

य अतसीसुमधाम्ना भूक्षिता धाम ससार सा ॥ ८॥

अपने गले में मोतियों के हार जैसे पारिजात पुष्पों को धारण किए हुए, प्रसन्नता व परोपकार की अधिष्ठात्री, निर्भीक रुक्मिणी, आतशी पुष्पधारी कृष्ण संग निज गृह को प्रस्थान कर गयी.

सागसा भरताय इभमाभाता मन्युमत्तया ।

स अत्र मध्यमय तापे पोताय अधिगता रसा ॥ ९॥

पाप से परिपूर्ण कैकेयी पुत्र भरत के लिए क्रोधाग्नि से पागल तप रही थी. लक्ष्मी की कान्ति से उज्जवलित धरती (अयोध्या) को उस मध्यमा (मझली पत्नी) ने पापी विधि  से भरत के लिए ले लिया.

सारतागधिया तापोपेता या मध्यमत्रसा ।

यात्तमन्युमता भामा भयेता रभसागसा ॥ ९॥

सूक्ष्मकटि (पतले कमर वाली), अति विदुषी, सत्यभामा  कृष्ण द्वारा उतावलेपन में  भेदभावपूर्वक पारिजात पुष्प  रुक्मिणी को देने से आहत होकर क्रोध और घृणा से भर गई.

तानवात् अपका उमाभा रामे काननद आस सा ।

या लता अवृद्धसेवाका कैकेयी महद अहह ॥ १०॥

क्षीणता के कारण, लता जैसी बनी, पीतवर्णी, समस्त आनन्दों से परे कैकेयी, राम के वनगमन का कारण बन, उनके अभिषेक को अस्वीकारते हुए,  वृद्ध राजा की सेवा से विमुख हो गयी.

हह दाहमयी केकैकावासेद्धवृतालया ।

सा सदाननका आमेरा भामा कोपदवानता ॥ १०॥

सुमुखी (सुन्दर चहरे वाली) सत्यभामा, अत्यंत विचलित और अशांत होकर  दावाग्नि (जंगल की आग) की तरह क्रोध से लाल हो अपने भवन, जो  मयूरों का वास और  क्रीडास्थल था, उनके कपाटों को बंद कर दिया ताकि सेविकाओं का प्रवेश अवरुद्ध हो जाए.

वरमानदसत्यासह्रीतपित्रादरात् अहो ।

भास्वरः स्थिरधीरः अपहारोराः वनगामी असौ ॥ ११॥

विनम्र, आदरणीय, सत्य के त्याग से और वचन पालन ना करने से लज्जित होने वाले, पिता के सम्मान में  अद्भुत राम – तेजोमय, मुक्ताहारधारी, वीर, साहसी -   वन को प्रस्थान किए.

सौम्यगानवरारोहापरः धीरः स्स्थिरस्वभाः ।

हो दरात् अत्र आपितह्री सत्यासदनम् आर वा ॥ ११॥

संगीत की धनी, यानि सत्यभामा, के प्रति समर्पित प्रभु (कृष्ण) – वीर, दृढ़चित्त – कदाचित भय व लज्जा से आक्रांत हो सत्यभामा के निवास पंहुचे.

या नयानघधीतादा रसायाः तनया दवे ।

सा गता हि वियाता ह्रीसतापा न किल ऊनाभा ॥ १२॥

अपने शरणागतों को शास्त्रोचित सद्बुद्धि देने वाली, धरती पुत्री सीता, इस लज्जाजनक कार्य से आहत, अपनी कान्ति को बिना गँवाए, वन गमन का साहस कर गईं.

भान् अलोकि न पाता   सः ह्रीता या विहितागसा ।

वेदयानः तया सारदात धीघनया अनया ॥ १२॥

तेजस्वी रक्षक कृष्ण - वैभवदाता, जिनका वाहन गरुड़ है – उनकी ओर, गूढ़ ज्ञान से परिपूर्ण सत्यभामा ने अपने को नीचा दिखाने से अपमानित, (रुक्मिणी को पुष्प देने से) देखा ही नहीं.

रागिराधुतिगर्वादारदाहः महसा हह ।

यान् अगात भरद्वाजम् आयासी दमगाहिनः ॥ १३॥

तामसी, उपद्रवी, दम्भी, अनियंत्रित शत्रुदल को अपने तेज से दहन करने वाले शूरवीर राम के निकट, भारद्वाज आदि संयमी ऋषि, थकान से क्लांत पँहुच याचना की.

नो हि गाम् अदसीयामाजत् व आरभत गा; न या ।

हह सा आह महोदारदार्वागतिधुरा गिरा ॥ १३॥

सत्यभामा, अदासी पुष्पधारी कृष्ण, के शब्दों पर ना तो ध्यान ही दी ना तो कुछ बोली जब तक कि कृष्ण ने पारिजात वृक्ष को लाने का संकल्प ना लिया.

यातुराजिदभाभारं द्यां व मारुतगन्धगम् ।

सः अगम् आर पदं यक्षतुंगाभः अनघयात्रया ॥ १४॥

असंख्य राक्षसों का नाश अपने तेजप्रताप से करनेवाले (राम), स्वर्गतुल्य सुगन्धित पवन संचारित स्थल (चित्रकूट) पर यक्षराज कुबेर तुल्य वैभव व आभा संग  लिए पंहुचे. 

यात्रया घनभः गातुं क्षयदं परमागसः ।

गन्धगं तरुम् आव द्यां रंभाभादजिरा तु या ॥ १४॥

मेघवर्ण के श्रीकृष्ण, सत्यभामा को घोर अन्याय से शांत करने हेतु, अप्सराओं से शोभायमान, रम्भा जैसी सुंदरियों से चमकते आँगन, स्वर्ग को गए ताकि वे सुगन्धित पारिजात  वृक्ष तक पहुँच  सकें.

दण्डकां प्रदमो राजाल्या हतामयकारिहा ।

सः समानवतानेनोभोग्याभः न तदा आस न ॥ १५॥

दंडकवन में संयमी (राम) - स्वस्थ नरेशों के शत्रु (परशुराम) को पराजित करनेवाले, मानवयोनि वाले व्यक्तियों (मनुष्यों) को अपने निष्कलंक कीर्ति से आनन्दित करनेवाले - ने प्रवेश किया.

न सदातनभोग्याभः नो नेता वनम् आस सः ।

हारिकायमताहल्याजारामोदप्रकाण्डदम् ॥ १५॥

सदा आनंददायी जननायक श्रीकृष्ण नन्दनवन को जा पहुंचे, जो इंद्र के अतिआनंद का श्रोत था – वही इन्द्र जो आकर्षक काया वाली अहिल्या का प्रेमी था, जिसने (छलपूर्वक) अहिल्या की सहमति पा ली थी.

सः अरम् आरत् अनज्ञाननः वेदेराकण्ठकुंभजम् ।

तं द्रुसारपटः अनागाः नानादोषविराधहा ॥ १६॥  

वे राम शीघ्र ही महाज्ञानी - जिनकी वाणी वेद है, जिन्हें वेद कंठस्थ है - कुम्भज (मटके में जन्मने के कारण अगस्त्य ऋषि का एक अन्य नाम) के निकट जा पंहुचे. वे निर्मल वृक्ष वल्कल (छाल) परिधानधारी हैं, जो नाना दोष (पाप) वाले विराध के संहारक हैं.      

हा धराविषदह नानागानाटोपरसात् द्रुतम् ।

जम्भकुण्ठकराः देवेनः अज्ञानदरम् आर सः ॥ १६॥

हाय, वो इंद्र, पृथ्वी को जलप्रदान करने वाले, किन्नरों-गन्धर्वों के सुरीले संगीत रस का आनंद लेने वाले, देवाधिपति ने ज्यों ही जम्बासुर संहारक (कृष्ण) का आगमन सुना, वे अनजाने भय से ग्रसित हो गए.

सागमाकरपाता हाकंकेनावनतः हि सः ।

न समानर्द मा अरामा लंकाराजस्वसा रतम् ॥ १७॥

वेदों में निपुण,  सन्तों के रक्षक (राम) का गरुड़ (जटायु) ने झुक कर नमन किया जिनके प्रति अपूर्ण कामयाचना चुड़ैल, लंकेश की बहन (शूर्पणखा), को भी थी.

तं रसासु अजराकालं म आरामार्दनम् आस न ।

स हितः अनवनाकेकं हाता अपारकम् आगसा ॥ १७॥

वे (कृष्ण) - वृद्धावस्था व मृत्यु से परे - पारिजात वृक्ष के उन्मूलन की इच्छा से गए, तब इंद्र - स्वर्ग में रहते हुए भी कृष्ण के हितैषी – को अपार दुःख प्राप्त हुआ.

तां सः गोरमदोश्रीदः विग्राम् असदरः अतत ।

वैरम् आस पलाहारा विनासा रविवंशके ॥ १८॥

पृथ्वी को प्रिय (विष्णु यानि राम) के दाहिनी भुजा व उन्हें गौरव देने वाले, निडर लक्ष्मण द्वारा नाक काटे जाने पर, उस माँसभक्षी नासाविहीन (शूर्पणखा) ने सूर्यवंशी (राम) के प्रति वैर पाल लिया.

केशवं विरसानाविः आह आलापसमारवैः ।

ततरोदसम् अग्राविदः अश्रीदः अमरगः असताम् ॥ १८॥

उल्लास, जीवनीशक्ति  और तेज के ह्रास होने का भान होने पर केशव (कृष्ण) से मित्रवत वाणी में इंद्र – जिसने उन्नत पर्वतों को परास्त कर महत्वहीन किया (उद्दंड उड़नशील पर्वतों के पंखों  को इंद्र ने अपने वज्रायुध से काट दिया था), जिसने अमर देवों के नायक के रूप में दुष्ट असुरों को श्रीविहीन किया - ने धरा व नभ के रचयिता (कृष्ण) से कहा.   

गोद्युगोमः स्वमायः अभूत् अश्रीगखरसेनया ।

सह साहवधारः अविकलः अराजत् अरातिहा ॥ १९॥

पृथ्वी व स्वर्ग के सुदूर कोने तक व्याप्त कीर्ति के स्वामी राम द्वारा खर की सेना को श्रीविहीन परास्त करने से, उनकी एक गौरवशाली, निडर, शत्रु संहारक के रूप में शालीन छवि चमक उठी.

हा अतिरादजरालोक विरोधावहसाहस ।

यानसेरखग श्रीद भूयः म स्वम् अगः द्युगः ॥ १९॥

हे (कृष्ण), सर्वकामनापूर्ति करने वाले देवों के गर्व का शमन करने वाले, जिनका वाहन वेदात्मा गरुड़ है, जो वैभव प्रदाता श्रीपति हैं, जिन्हें स्वयं कुछ ना चाहिए, आप इस दिव्य वृक्ष को धरती पर ना ले जाएँ.

हतपापचये हेयः लंकेशः अयम् असारधीः ।

रजिराविरतेरापः हा हा अहम् ग्रहम् आर घः ॥ २०॥

पापी राक्षसों का संहार करनेवाले (राम) पर आक्रमण का विचार, नीच, विकृत लंकेश – सदैव जिसके संग मदिरापान करनेवाले क्रूर  राक्षसगण विद्यमान हैं – ने किया.

घोरम् आह ग्रहं हाहापः अरातेः रविराजिराः ।

धीरसामयशोके अलं यः हेये च पपात हः ॥ २०॥

व्यथाग्रसित हो, शत्रु के शक्ति को भूल, उन्हें (कृष्ण को) बंदी बनाने का आदेश गन्धर्वराज इंद्र – सूर्य की तरह शुभ्र स्वर्णाभूषण अलंकृत मगर कुत्सित बुद्धि से ग्रस्त -  ने दे दिया

ताटकेयलवादत् एनोहारी हारिगिर आस सः ।

हा असहायजना सीता अनाप्तेना अदमनाः भुवि ॥ २१॥

ताड़कापुत्र मारीच को काट मारने से प्रसिद्द, अपनी वाणी से पाप का नाश करने वाले, जिनका नाम मनभावन है, हाय, असहाय सीता अपने उस स्वामी राम के बिना व्याकुल हो गईं (मारीच द्वारा राम के स्वर में सीता को पुकारने से).

विभुना मदनाप्तेन आत आसीनाजयहासहा ।

 सः सराः गिरिहारी ह नो देवालयके अटता ॥ २१॥

प्रद्युम्न संग देवलोक में विचरण कर रहे कृष्ण को रोकने में,  पुत्र जयंत के शत्रु प्रद्युम्न के अट्टहास को अपनी बाणवर्षा से काट कर शांत करनेवाले, अथाह संपत्ति के स्वामी, पर्वतों के आक्रमणकर्ता इंद्र, असमर्थ हो गए.

भारमा कुदशाकेन आशराधीकुहकेन हा ।

चारुधीवनपालोक्या वैदेही महिता हृता ॥ २२ ॥

लक्ष्मी जैसी तेजस्वी का, अंत समय आसन्न होने के कारण नीच दुष्ट छली नीच राक्षस  (रावण) द्वारा, उच्च विचारों वाले वनदेवताओं के सामने ही उस सर्वपूजिता सीता का अपहरण  कर लिया गया.

ताः हृताः हि महीदेव ऐक्य अलोपन धीरुचा ।

हानकेह कुधीराशा नाकेशा अदकुमारभाः ॥ २२॥

तब, एक ब्राह्मण की मैत्री से उस लुप्त अविनाशी, चिरस्थायी ज्ञान व तेज को पुनर्प्राप्त कर नाकेश (स्वर्गराज, इंद्र) – जिनकी इच्छा पलायन करने वाले देवताओं की रक्षा करने की थी – ने आकुल कुमार प्रद्युम्न का  प्रताप हर लिया.

हारितोयदभः रामावियोगे अनघवायुजः ।

तं रुमामहितः अपेतामोदाः असारज्ञः आम यः ॥ २३॥

मनोहारी, मेघवर्णीय (राम) – को सीता से वियोग के पश्चात संग मिला निर्विकार हनुमान का और सुग्रीव का जो अपनी पत्नी रुमा के श्रद्धेय थे, जो बाली द्वारा सताए जाने के कारण अपना सुख गवाँ विचारहीन, शक्तिहीन हो राम के शरणागत हो गए थे.

यः अमराज्ञः असादोमः अतापेतः हिममारुतम् ।

जः युवा घनगेयः विम् आर आभोदयतः अरिहा ॥ २३॥

तब देवताओं से युद्ध का परित्याग कर चुके, अतुल्य साहसी (प्रद्युम्न), आकाश में संचारित शीतल पवन से पुनर्जीवित हो गुरुजनों का गुणगान अर्जन किया  जब उनके द्वारा  शत्रुओं को मार विजय प्राप्त किया गया.

भानुभानुतभाः वामा सदामोदपरः हतं ।

तं ह तामरसाभक्क्षः अतिराता अकृत वासविम् ॥ २४॥

सूर्य से भी तेज में प्रशंसित, रमणीक पत्नी (सीता) को निरंतर अतुल आनंद प्रदाता, जिनके नयन कमल जैसे उज्जवल हैं – उन्होंने इंद्र के पुत्र बाली का संहार किया.

विं सः वातकृतारातिक्षोभासारमताहतं ।

तं हरोपदमः दासम् आव आभातनुभानुभाः ॥ २४॥

उस कृष्ण ने – जिनके तेज के समक्ष सूर्य भी गौण है – जिसने अपने उत्तेजित  सेवक गरुड़ की रक्षा की, जिस गरुड़ ने अपने डैनों की फड़फड़ाहट मात्र से शत्रुओं की शक्ति और गर्व को क्षीण किया था – जिस (कृष्ण) ने कभी शिव को भी पराजित किया था.

हंसजारुद्धबलजा परोदारसुभा अजनि ।

राजि रावण रक्षोरविघाताय रमा आर यम् ॥ २५॥

हंसज, यानि सूर्यपुत्र सुग्रीव, के अपराजेय सैन्यबल की महती भूमिका ने राम के गौरव में वृद्धि कर रावण वध से विजयश्री दिलाई.

यं रमा आर यताघ विरक्षोरणवराजिर ।

निजभा सुरद रोपजालबद्ध रुजासहम् ॥ २५॥

उस कृष्ण के हिस्से  निर्मल विजयश्री की ख्याति आई जो बाणों की वर्षा सहने में समर्थ हैं, जिनका तेज युद्धभूमि को असुर-विहीन करने से चमक रहा है, उनका स्वाभाविक तेज देवताओं पर विजय से दमक उठा.

सागरातिगम् आभातिनाकेशः असुरमासहः ।

तं  सः मारुतजं गोप्ता अभात् आसाद्य गतः अगजम् ॥ २६॥

समुद्र लांघ कर सहयाद्री पर्वत तक जा समुद्र तट तक पहुंचने वाले की प्राप्ति दूत हनुमान के रूप में होने से, इंद्र से भी अधिक प्रतापी, असुरों की समृद्धि को असहनशील, उस रक्षक राम की कीर्ति में वृद्धि हो गई. 

जं गतः गदी असादाभाप्ता गोजं तरुम् आस तं ।

हः समारसुशोकेन अतिभामागतिः आगस ॥ २६॥

जो गदाधारी हैं, अपरिमित तेज के स्वामी हैं, वो कृष्ण – प्रद्युम्न को दिए कष्ट से अत्यधिक कुपित हो - स्वर्ग में उत्पन्न वृक्ष को झपट कर विजयी हुए.

वीरवानरसेनस्य त्रात अभात् अवता हि सः ।

तोयधो अरिगोयादसि अयतः नवसेतुना ॥ २७॥

वीर वानर सेना के त्राता के रूप में विख्यात राम, उस सेतुसमुन्द्र पर चलने लगे, जो अथाह विस्तृत सागर के जीव-जंतुओं से भी रक्षा कर रहा था. 

ना तु सेवनतः यस्य दयागः अरिवधायतः ।

स हि तावत् अभत त्रासी अनसेः अनवारवी ॥ २७॥

जो व्यक्ति, प्रभु हरि की सेवा में रत, उनका यशगान करता है, वह प्रभु की दया प्राप्त कर शत्रुओं पर विजय पाता है. जो ऐसा नहीं करता है वह निहत्थे शत्रु से भी भयभीत होकर  कान्तिविहीन हो जाता है.

हारिसाहसलंकेनासुभेदी महितः हि सः ।

चारुभूतनुजः रामः अरम् आराधयदार्तिहा ॥ २८॥

चमत्कारिक रूप से साहसी उस राम द्वारा रावण के प्राण हरने पर देवताओं ने उनकी स्तुति की. वे रूपवती भूमिजा सीता के संग हैं, तथा शरणागतों का कष्ट निवारण करते हैं.

हा आर्तिदाय धराम् आर मोराः जः नुतभूः रुचा ।

सः हितः हि मदीभे सुनाके अलं सहसा अरिहा ॥ २८॥

वे, प्रद्युम्न को युद्ध के कष्टों से उबारने के पश्चात लक्ष्मी को निज  वक्षस्थली रखने वाले, कीर्तियों के शरणस्थल जो प्रद्युम्न के हितैषी कृष्ण, ऐरावत वाले स्वर्गलोक को जीत कर पृथ्वी को वापस लौट आए.

नालिकेर सुभाकारागारा असौ सुरसापिका ।

रावणारिक्षमेरा पूः आभेजे हि न न अमुना ॥ २९॥

नारियल वृक्षों से आच्छादित, रंग-बिरंगे भवनों से निर्मित अयोध्या नगर, रावण को पराजित करने वाले राम का, अब समुचित निवास स्थल बन गया.

ना अमुना नहि जेभेर पूः आमे अक्षरिणा वरा ।

का अपि सारसुसौरागा राकाभासुरकेलिना ॥ २९॥

अनेकों विजयी गजराजों वाली भूमि द्वारका नगर में धर्म के वाहक सताप्रिय कृष्ण, दिव्य वृक्ष पारिजात से  दीप्तिमान, का प्रवेश क्रीड़ारत गोपियों संग हुआ.

सा अग्र्यतामरसागाराम् अक्षामा घनभा आर गौः ॥

निजदे अपरजिति आस श्रीः रामे सुगराजभा ॥ ३०॥

अयोध्या का समृद्ध स्थल, तामरस (कमल) पर विराजमान राज्यलक्ष्मी  का सर्वोत्तम निवास बना. सर्वस्व न्योछावर करानेवाले अजेय राम के प्रतापी शासन का उदय हुआ.

भा अजराग सुमेरा श्रीसत्याजिरपदे अजनि ।

गौरभा अनघमा क्षामरागा स अरमत अग्र्यसा ॥ ३०॥

श्रीसत्य (सत्यभामा) के आँगन में अवस्थित पारिजात में पुष्प प्रस्फुटित हुए. सत्यभामा, इस निर्मल संपत्ति को पा कृष्ण की प्रथम भार्या रुक्मिणी के प्रति इर्ष्याभाव का त्याग कर, कृष्ण संग सुखपूर्वक रहने लगी.

Tuesday, 27 March 2018

Purush Suktam


श्री गुरुभ्यो नमः

सहस्त्रशीर्षा पुरुष:सहस्राक्ष:सहस्रपात् |

स भूमि सर्वत: स्पृत्वाSत्यतिष्ठद्द्शाङ्गुलम् ||१||

जो सहस्रों सिरवाले, सहस्रों नेत्रवाले और सहस्रों चरणवाले विराट पुरुष हैं, वे सारे ब्रह्मांड को आवृत करके भी दस अंगुल शेष रहते हैं ||१||

पुरुषSएवेदं सर्व यद्भूतं यच्च भाव्यम् |

उतामृतत्यस्येशानो यदन्नेनातिरोहति ||२||

जो सृष्टि बन चुकी, जो बननेवाली है, यह सब विराट पुरुष ही हैं | इस अमर जीव-जगत के भी वे ही स्वामी हैं और जो अन्न द्वारा वृद्धि प्राप्त करते हैं, उनके भी वे ही स्वामी हैं ||२||

एतावानस्य महिमातो ज्यायाँश्च पूरुषः |

पादोSस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि ||३||

विराट पुरुष की महत्ता अति विस्तृत है | इस श्रेष्ठ पुरुष के एक चरण में सभी प्राणी हैं और तीन भाग अनंत अंतरिक्ष में स्थित हैं ||३||

त्रिपादूर्ध्व उदैत्पुरुष:पादोSस्येहाभवत्पुनः |

ततो विष्वङ् व्यक्रामत्साशनानशनेSअभि ||४||

चार भागोंवाले विराट पुरुष के एक भाग में यह सारा संसार, जड़ और चेतन विविध रूपों में समाहित है | इसके तीन भाग अनंत अंतरिक्षमें समाये हुए हैं ||४||

ततो विराडजायत विराजोSअधि पूरुषः |

स जातोSअत्यरिच्यत पश्चाद्भूमिमथो पुर: ||५||

उस विराट पुरुष से यह ब्रह्मांड उत्पन्न हुआ | उस विराट से समष्टि जीव उत्पन्न हुए | वही देहधारी रूप में सबसे श्रेष्ठ हुआ, जिसने सबसे पहले पृथ्वी को, फिर शरीरधारियों को उत्पन्न किया ||५||

तस्माद्यज्ञात्सर्वहुत: सम्भृतं पृषदाज्यम् |

पशूंस्न्ताँश्चक्रे वायव्यानारण्या ग्राम्याश्च ये ||६||

उस सर्वश्रेष्ठ विराट प्रकृति यज्ञ से दधियुक्त घृत प्राप्त हुआ(जिससे विराट पुरुष की पूजा होती है) | वायुदेव से संबंधित पशु हरिण, गौ, अश्वादि की उत्पत्ति उस विराट पुरुष के द्वारा ही हुई ||६||

तस्माद्यज्ञात् सर्वहुतSऋचः सामानि जज्ञिरे |

छन्दाँसि जज्ञिरे तस्माद्यजुस्तस्मादजायत ||७||

उस विराट यज्ञ पुरुष से ऋग्वेद एवं सामवेद का प्रकटीकरण हुआ | उसी से यजुर्वेद एवं अथर्ववेद का प्रादुर्भाव हुआ अर्थात् वेद की ऋचाओं का प्रकटीकरण हुआ ||७||

तस्मादश्वाSअजायन्त ये के चोभयादतः |

गावो ह जज्ञिरे तस्मात्तस्माज्जाताSअजावयः ||८||

उस विराट यज्ञ पुरुष से दोनों तरफ दाँतवाले घोड़े हुए और उसी विराट पुरुष से गौए, बकरिया और भेड़s आदि पशु भी उत्पन्न  हुए ||८||

तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन् पूरुषं जातमग्रत:|

तेन देवाSअयजन्त साध्याSऋषयश्च ये ||९||

मंत्रद्रष्टा ऋषियों एवं योगाभ्यासियों ने सर्वप्रथम प्रकट हुए पूजनीय विराट पुरुष को यज्ञ (सृष्टि के पूर्व विद्यमान महान ब्रह्मांड रूपयज्ञ अर्थात् सृष्टि यज्ञ) में अभिषिक्त करके उसी यज्ञरूप परम पुरुष से ही यज्ञ (आत्मयज्ञ ) का प्रादुर्भाव किया ||९||

यत्पुरुषं व्यदधु: कतिधा व्यकल्पयन् |

मुखं किमस्यासीत् किं बाहू किमूरू पादाSउच्येते ||१०||

संकल्प द्वारा प्रकट हुए जिस विराट पुरुष का, ज्ञानीजन विविध प्रकार से वर्णन करते हैं, वे उसकी कितने प्रकार से कल्पना करते हैं ? उसका मुख क्या है ? भुजा, जाघें और पाँव कौन-से हैं ? शरीर-संरचना में वह पुरुष किस प्रकार पूर्ण बना ? ||१०||

ब्राह्मणोSस्य मुखमासीद् बाहू राजन्य: कृत: |

ऊरू तदस्य यद्वैश्य: पद्भ्या शूद्रोSअजायत ||११||

विराट पुरुष का मुख ब्राह्मण अर्थात् ज्ञानी (विवेकवान) जन हुए | क्षत्रिय अर्थात पराक्रमी व्यक्ति, उसके शरीर में विद्यमान बाहुओं के समान हैं | वैश्य अर्थात् पोषणशक्ति-सम्पन्न व्यक्ति उसके जंघा एवं सेवाधर्मी व्यक्ति उसके पैर हुए ||११||

चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षो: सूर्यो अजायत |

श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत ||१२||

विराट पुरुष परमात्मा के मन से चन्द्रमा, नेत्रों से सूर्य, कर्ण से वायु एवं प्राण तथा मुख से अग्नि का प्रकटीकरण हुआ ||१२||

नाभ्याSआसीदन्तरिक्ष शीर्ष्णो द्यौः समवर्त्तत |

पद्भ्यां भूमिर्दिश: श्रोत्रात्तथा लोकांर्Sअकल्पयन् ||१३||

विराट पुरुष की नाभि से अंतरिक्ष, सिर से द्युलोक, पाँवों से भूमि तथा कानों से दिशाएँ प्रकट हुईं | इसी प्रकार (अनेकानेक) लोकों को कल्पित किया गया है (रचा गया है) ||१३||

यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतन्वत |

वसन्तोSस्यासीदाज्यं ग्रीष्मSइध्म: शरद्धवि: ||१४||

जब देवों ने विराट पुरुष रूप को हवि मानकर यज्ञ का शुभारम्भ किया, तब घृत वसंत ऋतु, ईंधन(समिधा) ग्रीष्म ऋतु एवं हवि शरद ऋतु हुई ||१४||

सप्तास्यासन् परिधयस्त्रि: सप्त: समिध: कृता:|

देवा यद्यज्ञं तन्वानाSअबध्नन् पुरुषं पशुम् ||१५||

देवों ने जिस यज्ञ का विस्तार किया, उसमें विराट पुरुष को ही पशु (हव्य) रूप की भावना से बाँधा (नियुक्त किया), उसमें यज्ञ की सात परिधियाँ (सात समुद्र) एवं इक्कीस (छंद) समिधाएँ हुईं ||१५||

यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् |

ते ह नाकं महिमान: सचन्त यत्र पूर्वे साध्या: सन्ति देवा: ||१६||

आदिश्रेष्ठ धर्मपरायण देवों ने, यज्ञ से यज्ञरूप विराट सत्ता का यजन किया | यज्ञीय जीवन जीनेवाले धार्मिक महात्माजन पूर्वकाल के साध्य देवताओं के निवास, स्वर्गलोक को प्राप्त करते हैं ||१६||

शांति: ! शांति: !! शांति: !!!

Jigar Mehta / Jaigishya

Monday, 26 March 2018

RED to PINK test cricket ball

Yellow pin scratching red ball ...

Incident done in TEST match ...

Hands making dullness of the red shining of TEST cricket ball by yellow small PIN.. ......

Recently same work done by Australian cricket players Mr  Warner and Mr Smith..

shining of TEST cricket....big question???

Mostly 540 time or 90 overs of the 5 five days of test matche, the red ball handle by bowlers per day. 2700 time mostly handle the ball by players ...

ICC wanted to decid to change the color of the ball .....

RED to PINK.... 

photo image cleared the matter....

Jigar Mehta / Jaigishya

Sunday, 25 March 2018

RAM's Ayan is Ramayan

That's better, Always keep enjoying in avadhoot Sense, but
What about common Man?

We all recognise the God RAM, but whoever done duty, what about his negative part of hidden life?? Rarely thinking available, but true....

Shubhechchha on today to all religious believers, on Ram Navme...

RAM's Ayan is Ramayan, and  meaning is the path way to sun or light or Gyan or knowledge.... from one person karma's....

RAM, the character is devided in 3 part
1.       Parshu Ram....
2        Ram .... Not alone, but must
          consider with his three
          brothers
3.      Balram, krushna's brother

Nothing more to discuss or say but in starting and in ending of ramayan story, RAM is the character that who has strongest willpower loose by himself on seeta's death....due to maintain social society's rules....

My father said me once
RAM never laughed
Krushna never cried....

Keep enjoying....

Jigar Mehta / Jaigishya

Wednesday, 21 March 2018

Gray, neither black nor white

...
If you need tree's shadows for car parking in summer...

person must planning for planting at least one tree in whole life....

Husband is busy with business and not calling to relative,
Wife handle all and forward or push husband for more business?

How much fair?

Husband not doing anything for earning and maintain only relationship by father's property, are fully avoid by mostly everyone, even from daughter & wife too...

Jigar Mehta / Jaigishya

Friday, 16 March 2018

Education One Nation One Course

India is our nation and....

In our nation for children education matter.....so many schools fees, tution fees, stationary charges etc....

Even removing digital facilities too

We Need...

One nation, one course

Which could handle by teacher with chawk, duster, Black board  alongwith only government textbook...

We can save stationary as well money of all gardener or parents....

Need to remove state board, ncert, cbsc that means all kind boards and arrange new national boards for Indian children's future....

Whatever languages are there, but Just only
one nation one courses....

We can save our children's mind power too

Jigar Mehta / Jaigishya

Thursday, 15 March 2018

भारतीय विधायक (MLA) के खर्च


माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी
हम लोग कुछ बातें आपके सामने रख रहे हैं जिनकी सच्चाई से इंकार नही किया जा सकता।
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ये पोस्ट हमें कहीं से प्राप्त हुई है लेकिन आपकी आंखें खोल देने वाली है :
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*आँख फाड देने वाला सच, पढ कर आप भी आश्चर्य चकित रह जायेगे ?*
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भारत में कुल 4120 MLA और 462 MLC हैं अर्थात कुल 4,582 विधायक।
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प्रति विधायक वेतन भत्ता मिला कर प्रति माह 2 लाख का खर्च होता है। अर्थात
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91 करोड़ 64 लाख रुपया प्रति माह। इस हिसाब से प्रति वर्ष लगभ 1100 करोड़ रूपये।
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भारत में लोकसभा और राज्यसभा को मिलाकर कुल 776 सांसद हैं।
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इन सांसदों को वेतन भत्ता मिला कर प्रति माह 5 लाख दिया जाता है।
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अर्थात कुल सांसदों का वेतन प्रति माह 38 करोड़ 80 लाख है। और हर वर्ष इन सांसदों को 465 करोड़ 60 लाख रुपया वेतन भत्ता में दिया जाता है।
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अर्थात भारत के विधायकों और सांसदों के पीछे भारत का प्रति वर्ष 15 अरब 65 करोड़ 60 लाख रूपये खर्च होता है।
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ये तो सिर्फ इनके मूल वेतन भत्ते की बात हुई। इनके आवास, रहने, खाने, यात्रा भत्ता, इलाज, विदेशी सैर सपाटा आदि का का खर्च भी लगभग इतना ही है।
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अर्थात लगभग 30 अरब रूपये खर्च होता है इन विधायकों और सांसदों पर।
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अब गौर कीजिए इनके सुरक्षा में तैनात सुरक्षाकर्मियों के वेतन पर।
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एक विधायक को दो बॉडीगार्ड और एक सेक्शन हाउस गार्ड यानी कम से कम 5 पुलिसकर्मी और यानी कुल 7 पुलिसकर्मी की सुरक्षा मिलती है।
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7 पुलिस का वेतन लगभग (25,000 रूपये प्रति माह की दर से) 1 लाख 75 हजार रूपये होता है।
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इस हिसाब से 4582 विधायकों की सुरक्षा का सालाना खर्च 9 अरब 62 करोड़ 22 लाख प्रति वर्ष है।

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इसी प्रकार सांसदों के सुरक्षा पर प्रति वर्ष 164 करोड़ रूपये खर्च होते हैं।
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Z श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त नेता, मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए लगभग 16000 जवान अलग से तैनात हैं।
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जिन पर सालाना कुल खर्च लगभग 776 करोड़ रुपया बैठता है।
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इस प्रकार सत्ताधीन नेताओं की सुरक्षा पर हर वर्ष लगभग 20 अरब रूपये खर्च होते हैं।
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*अर्थात हर वर्ष नेताओं पर कम से कम 50 अरब रूपये खर्च होते हैं।*
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इन खर्चों में राज्यपाल, भूतपूर्व नेताओं के पेंशन, पार्टी के नेता, पार्टी अध्यक्ष , उनकी सुरक्षा आदि का खर्च शामिल नहीं है।
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यदि उसे भी जोड़ा जाए तो कुल खर्च लगभग 100 अरब रुपया हो जायेगा।
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अब सोचिये हम प्रति वर्ष नेताओं पर 100 अरब रूपये से भी अधिक खर्च करते हैं, बदले में गरीब लोगों को क्या मिलता है ?

             *क्या यही है लोकतंत्र ?*

*(यह 100 अरब रुपया हम भारत वासियों से ही टैक्स के रूप में वसूला गया होता है।)*

_एक सर्जिकल स्ट्राइक यहाँ भी बनती है_

◆ भारत में दो कानून अवश्य बनना चाहिए

→पहला - चुनाव प्रचार पर प्रतिबंध
नेता केवल टेलीविजन ( टी वी) के माध्यम से प्रचार करें

→दूसरा - नेताओं के वेतन भत्तो पर प्रतिबंध

          | तब दिखाओ देशभकित |

प्रत्येक भारतवासी को जागरूक होना ही पड़ेगा और इस फिजूल खर्ची के खिलाफ बोलना पड़ेगा ?

Reference from social media

Jigar Mehta / Jaigishya

Monday, 12 March 2018

Best luck

My daughter is giving 10th board exams....

So many pupils / students are at same place for giving exams... about even 12th board too...

I am giving my best wishes to all pupils / students and started with my daughter...

Best of luck for board exams.....

Friday, 9 March 2018

Holi, Dhulety OR Dhul Hatee

Generally we believe that Holi is the festival related with Holika dahan, saving life of Prahalad, but my personal mythology is different....

Recently we celebrated the Holi festival and as according Dhulety....

Rarely person know that exact meaning....

We can discuss same now...but using word Dhul-Hatee

In ancient India rushi-munee seated on one place and done aaraadhna of God or goddess .....due to long  time period dust covered his or her body ....

After completion of aaraadhna one special god give them Vardan....Then big festival arrange by people...
That done either by colorful or by lamp....

In India gurudev dutt's pariwar also known as RANGJYOT pariwar....

After the color celebrations need to take bath and hence the the covered dust cleaning with body...

That's not pertaining matter with only aaraadhna but different variations mode are also there....

Basically the king hiranyaksh sister duly name Holika has Vardan of God that she never burn in fire and that's

EGO

Killed her when she takes Prahalad in lap in fire.... that is god's or good thaughts supreme power...

Here I am not writing all matter...but giving just brief of guide lines about the color and Jyoti....

Even in Devi pratha, Jainism or aghor sampraday specific Mattel's yantra has special part....

Every Mattel has own kind color flames... Example of Mattel Cooper has green flames....here I given photo of Mattel flames....

Barium.    Ba

Lithium.    Li

Sodium.    Na

Cooper.    Cu

Potesium. K

For information ONLY...

Jigar Mehta / Jaigishya

॥ श्रीसूक्त (ऋग्वेद) ॥

॥ श्रीसूक्त (ऋग्वेद) ॥

ॐ ॥ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदोम आवह ॥ १॥

तां म आवह जातवेदोलक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥ २॥

अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम्।
श्रियं देवीमुपह्वयेश्रीर्मादेवीर्जुषताम् ॥ ३॥

कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्।
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वयेश्रियम् ॥ ४॥

चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्।
तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे॥ ५॥

आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातोवनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः ।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तुमायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥ ६॥

उपैतुमां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातुमे॥ ७॥

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मेगृहात् ॥ ८॥

गंधद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरीꣳ सर्वभूतानां तामिहोपह्वयेश्रियम् ॥ ९॥

मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि ।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥ १०॥

कर्दमेन प्रजाभूता मयि सम्भव कर्दम ।
श्रियं वासय मेकुलेमातरं पद्ममालिनीम् ॥ ११॥

आपः सृजन्तुस्निग्धानि चिक्लीत वस मेगृहे।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मेकुले॥ १२॥

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदोम आवह ॥ १३॥

आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदोम आवह ॥ १४॥

तां म आवह जातवेदोलक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावोदास्योऽश्वान्विन्देयं पुरुषानहम् ॥ १५॥

यः शुचिः प्रयतोभूत्वा जुहुयादाज्य मन्वहम्।
श्रियः पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ॥ १६॥