Friday, 23 November 2018

Journey of eyes

Three type of person are available....

Those who are looking back to you...

Those who are looking to your face eyes...

Those who are looking before you...

I adjusted my style with cross connection for watching truth....

Believe me... so many truthiness find by such generated ways...
Prayer is good
असतोमा सद्गमय
तमसोमा ज्योतिर्गमय.....
I focused on priority of country's economy and got little benefits...

Hope you join me for better national progress...

Need to focus on making better home...

Jigar Mehta / Jaigishya

Television

Mostly in India all watching television with two digital function. One making on and off television ams other is for channel and else operations.
While other country having one remote facility only which is wise. India sending so much setelite but need to developed good function for all as we one man has only one wife or one woman has only
one husband.
Or need to developed facilities in set top box for on and off any TV....
Electricity mode not counted here at once...
Happy moments....

Jigar Mehta / Jaigishya

Sunday, 11 November 2018

New year's spot wish

Media is helping us for fast sharing good or bad things or thoughts.

Who reads it is also big question.

One positive spot want maximum spread action in short time.

They are getting or not is depended on popularity of the spot thinking matter.

When the alphabet "A" find with symbolism, people are not knew that how it is important?

So many people used to start word and using between the word same alphabet with having either positive or negative energy.

Matter is simply short, but more important in our life that what we are sharing on Media and what kind the wave are running in the world?

Be humble and careful for your thoughts from which you are speaking so many words or sentences.

Happy New year

Jigar Mehta / Jaigishya

Wednesday, 7 November 2018

हैप्पी दिवाली

दीपावली पर्व पर बदलते चहेरों की भीड़ में एक नेक उम्दा चहेरा और उसका मन, असाधारण मानवीय संवेदना व्यक्त करते हुए दीपावली पर्व को काली रात में बदले हुए शहरो के नाम से प्रभावित न होकर सिर्फ मानवता का संदेश पहुँचाना जरूरी समजता है ।
कृपया नागरिक शास्त्र में राजनीति का ध्यान रखें।
छात्र देवो भव।
जय गुरुदेव दत्त।

Sunday, 4 November 2018

कल्याणं अस्तु

विदेशस्य च प्रांतीय स्त्रीस्य नग्न अवस्था सन्देशम, भारत देशे नास्ति सुचितार्थम  कल्याणं।

प्रधान समाचार कार्यालय प्रेषित नग्न स्त्री चित्र नखलु दर्शितं सत्य दिशा निर्देष।

शुभदीपावली पर्वे सर्व जन हिताय च सुखाय प्रार्थना करिष्ये।

कल्याणं अस्तु।

जिगर / जैगीष्य

Friday, 2 November 2018

सूर्य कलंक इतिहास

2nd November 2018
विज्ञान...

सौर कलंक कहां गए!
14.09.2009

दुनिया को उजाला देने वाले सूर्य पर भी अंधेरा होता है. इस अंधेरे को सौर कलंक या सौर धब्बे भी कहते हैं. धब्बों की संख्या बढ़ने को सौर सक्रियता में वृद्धि और संख्या घटने को सौर सक्रियता में कमी का प्रतीक माना जाता है.
ठीक इस समय सौर धब्बों की संख्या बढ़नी, यानी सौर सक्रियता में वृद्धि होनी चाहिये थी. लेकिन, ऐसा है नहीं. वैज्ञानिक पहेलियां बूझ रहे हैं कि सूर्य के इस आलस्य का आख़िर कारण क्या है?
अनुभव दिखाता है कि सौर सक्रियता दिखाने वाले कलंक औसतन हर 11 वर्ष बाद अपने चरम पर होते हैं. अगस्त के मध्य में रियो दी जनेरो में हुए अंतरराष्ट्रीय खगोल विज्ञान सम्मेलन में भी सूर्य की सुस्ती पर चर्चा हुई. अमेरिका में बौल्डर स्थित वायुमंडलीय और अंतरिक्ष भौतिकी प्रयोगशाला में काम कर रही जर्मन सौर विशेषज्ञ मार्गरेट हाबाराइटर भी वहां उपस्थित थीं.
"सौर सक्रियता-चक्र औसतन 11 साल लंबा होता है. इसका मतलब है कि वह 9 से 14 साल तक भी हो सकता है. पिछली न्यूनतम सक्रियता को अब 12 वर्ष हो गये हैं. दूसरे शब्दों में, सूर्य इस समय शांत ज़रूर है, लेकिन वह अपने सामान्य दायरे के भीतर ही है."

Sonnenfinsternis in Asien Flash-Galerie
सूर्य की सुस्ती

सौर सक्रियता का पिछला चरम सन 2000 में देखा गया था. उसके बाद धब्बों की संख्या लगातार घटती गयी. जुलाई 2006 में पहला नया धब्बा देखा गया. अनुमान था कि धब्बों की संख्या बढ़ते-बढ़ते 2011-12 तक अपने चरम पर पहुंच जायेगी. तब यह संख्या 100 से ऊपर भी जा सकती है. लेकिन, अभी तक तो ऐसे कोई लक्षण दिखायी नहीं पड़ रहे हैं. 2009 के पहले 90 दिनों में से 78 दिन एक भी धब्बा नहीं दिखायी पड़ा.
2008 में तो सूर्य ने अपनी सुस्ती की हद ही कर दी. 266 दिनों तक वह बिल्कुल कलंकहीन रहा. कलंकहीन रहने का सबसे लंबा रेकॉर्ड है 311 दिनों का, जिसे सूर्य ने 1913 में बनाया था. लंबी शांति का कहीं यह मतलब तो नहीं है कि सूर्य जब जागेगा तब आकाश को हिला देगा ?
" दो भविष्यवाणियां हैं. वैज्ञानिकों का एक हिस्सा कहता है कि नयी सौर सक्रियता बहुत ज़ोरदार होगी. दूसरे कहते हैं कि वह ख़ासी कमज़ोर होगी. पिछली रुझानों से यही आभास मिलता है कि वर्तमान दुर्बलता जितनी लंबी चलेगी, भावी सक्रियता भी उतनी ही मद्धिम होगी. वैसे, दोनों की संभावना 50-50 समझनी चाहिये."

सौर सक्रियता का महत्व

सौर सक्रियता को, यानी सूर्य पर के काले धब्बों के घटने-बढ़ने को आख़िर इतना महत्व क्यों दिया जा रहा है? इसलिए, क्योंकि ये धब्बे ही उन सौर आंधियों को जन्म देते हैं, जो कई बार पृथ्वी तक भी पहुंचती हैं और यहां रेडियो-टेलीविज़न जैसी दूरसंचार सेवाओं को अस्तव्यस्त कर सकती हैं.
समझा जाता है कि सौर धब्बे तब बनते हैं, जब सूर्य के भीतर विस्फोट-जैसी किसी खलबली से ऐसे प्रचंड चुंबकीय क्षेत्र बनते हैं, जो किसी फ़ौव्वारे की तरह तेज़ी से ऊपर उठते हैं और अपने साथ के अरबों टन परमाणु कणों को अंतरिक्ष में उछाल देते हैं.
20 साल पहले, 1989 में ऐसी ही एक घटना के साथ सूर्य ने कुछ ही मिनटों के भीतर एक अरब टन अयनीकृत परमाणु कणों का एक ऐसा बादल उछला, जो 10 लाख किलोमीटर प्रतिघंटे की गति से पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र से भी टकराया.
ध्रुवीय प्रकाश, बिजली ग़ायब
12 मार्च की उस रात को रंगीन ध्रुवीय प्रकाश की एक ऐसी अद्भुत लीला पैदा हुई, जिसे अमेरिका में फ्लोरिडा और क्यूबा तक देखा गया. साथ ही कैनडा के क्यूबेक प्रांत में बत्तियां गुल हो गयीं. 12 घंटे तक बिजली ग़ायब रही. पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे बहुत से उपग्रह भी बुरी तरह प्रभावित हुए.

संयोग से ऐसी प्रचंड सौर आंधियां बहुत अधिक नहीं आतीं. तब भी, हर सौर सक्रियता के दौरान दो-तीन बार आ सकती हैं. यदि उनकी भविष्यवाणी की जा सके, तो कितना अच्छा रहे. अभी-अभी सूर्य ने सक्रिय होने का पहला संकेत दिया है. उसके चुंबकीय क्षेत्र के ध्रुव बदल गये हैं. तो क्या अब सौर आंधियों के लिए तैयार हो जाना चाहिये? मार्गरेट हाबरराइटर कहती हैं:
"न्यूनतम से अधिकतम की ओर बढ़ रही सौर सक्रियता की विकिरण-मात्रा के बीच 0.1 प्रतिशत का उतार-चढ़ाव हो सकता है. लेकिन, विकिरण के स्पेक्रट्रम को, उसके वर्णक्रम को यदि बांट कर देखें, तो यह उतार-चढ़ाव कुछेक क्षेत्रों में दो गुना भी हो सकता है या धुर-अल्ट्रावॉयलेट अथवा एक्स-रे किरणों के मामले में दस से सौ गुना भी हो सकता है."
भविष्यवाणी टेढ़ी खीर
दूसरे शब्दों में, यह भविष्यवाणी कर सकना बहुत ही मुश्किल है कि सूर्य के धब्बों की संख्या बढ़ने से किस प्रकार का विकिरण सबसे अधिक बढ़ेगा. गनीमत है कि पृथ्वी का वायुमंडल हर सौर आंधी वाले विकिरण से हमारी रक्षा करता है, हालांकि ऐसा करते हुए वह कुछ गरम भी हो जाता है.
हमारे वायुमंडल का तापमान सूर्य के धब्बे बढ़ने के साथ बढ़ता और धब्बे घटने के साथ घटता है. सन 1650 से 1700 के बीच सूर्य 50 वर्षों तक काफ़ी निष्क्रिय रहा था. तब, क़रीब उसी समय पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध पर एक लघु हिमयुग आ गया था. लेकिन, इस समय वैज्ञानिकों को किसी हिमयुग से अधिक यह चिंता सता रही है कि सौर विकिरण से हमारी रक्षा करने वाले पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में 2012 में एक असाधारण बड़ा छेद पैदा होने वाला है. यदि उसी समय सौर सक्रियता अपने चरम पहुंचती है, तो दूरसंचार और बिजली आपूर्ति सेवाओं में भारी गड़बड़ी पैदा होगी.
कहने की आवश्यकता नहीं कि सूर्य का उजाला ही नहीं, उसका अंधेरा भी पृथ्वी पर हमारे जीवन के लिए असीम महत्व रखता है.
रिपोर्ट: राम यादव
संपादन: महेश झा