शल्यक्रिया से सम्बन्धित अन्य प्रसंग है- दधीचि के सिर को हटाकर उसकी जगह घोड़े के सिर का प्रत्यारोपण और फिर उसे हटाकर असली सिर लगा देना, ऋज्राष्वड की अंधी आँखों में रोशनी प्रदान करना, यज्ञ के कटे सिर को पुनः सन्धान करना, श्राव का कुष्ठ रोग दूर कर उसे दीर्धायु प्रदान करना, कक्षीवान् को पुनः युवक बनाना, वृद्ध च्यवन को पुनः यौवन देना, वामदेव को माता के गर्भ से निकालना आदि।
उन्नत आधुनिक काल
शास्त्रीय प्रमाणों से शल्यचिकित्सा का मूल स्रोत वेदों में मिलता है, जहाँ इंद्र, अग्नि और सोम देवता के बाद स्वर्ग के दो वैद्यों अश्विनीकुमारों की गणना की गई है। इनके कायचिकित्सा एवं शल्यचिकित्सा संबंधी दोनों प्रकार के कार्य मिलते हैं। शरीर की व्याधियों को दूर करने के लिए तथा अंगभंग की स्थिति में नवीन आंखें एवं नवीन अंग प्रदान करने के लिए अश्विनीकुमारों की प्रार्थना की गई है। गर्भाशय को चीरकर गर्भ को बाहर निकालने तथा मूत्रवाहिनी, मूत्राशय एवं वृक्कों में यदि मूत्र रुका हो, तो उसे वहाँ से शल्य कर्म या अन्य प्रकार से बाहर निकालने का उल्लेख मिलता है। इसी प्रकार अथर्ववेद में क्षत, विद्रधि, व्रण, टूटी या कटी अस्थियों को जोड़ने, कटे हुए अंग को ठीक करने, पृथक् हुए मांस मज्जा को स्वस्थ करनेवाली ओषधि से प्रार्थना की गई है। रक्तस्राव के लिए पट्टी बाँधने, अपची (गले की ग्रंथि का एक रोग) के लिए वेधन छेदन आदि उपचारों का उल्लेख मिलता है। भगवान बुद्ध के काल में जीवक नामक चिकित्सक द्वारा करोटि एवं उदरगत बड़े शल्यकर्म सफलतापूर्वक किए जाने का वर्णन है।
शल्यक्रिया से सम्बन्धित अन्य प्रसंग है- दधीचि के सिर को हटाकर उसकी जगह घोड़े के सिर का प्रत्यारोपण और फिर उसे हटाकर असली सिर लगा देना, ऋज्राष्वड की अंधी आँखों में रोशनी प्रदान करना, यज्ञ के कटे सिर को पुनः सन्धान करना, श्राव का कुष्ठ रोग दूर कर उसे दीर्धायु प्रदान करना, कक्षीवान् को पुनः युवक बनाना, वृद्ध च्यवन को पुनः यौवन देना, वामदेव को माता के गर्भ से निकालना आदि।
सुसंगठित एवं शास्त्रीय रूप से आयुर्वेदीय शल्यचिकित्सा की नींव इंद्र के शिष्य धन्वंतरि ने डाली। धन्वंतरि के शिष्य सुश्रुत ने इस शास्त्र को सर्वांगोपांग विकसित कर व्यवहारोपयोगी स्वरूप दिया। उस समय भी शल्य का क्षेत्र सामान्य कायिक शल्यचिकित्सा था और ऊर्ध्वजत्रुगत रोगों एवं शल्यकर्म (अर्थात् नेत्ररोग, नासा, कंठ, कर्ण आदि के रोग एव तत्संबंधी शल्यकर्म) का विचार अष्टांगायुर्वेद के शालाक्य नामक शाखा में पृथक् रूप से किया जाता था।
इसी प्रकार पश्चिम में असीरिया, बेबिलोनिया एवं मिस्र के बाद यूनान और रोम में सभ्यता एवं अन्य ज्ञान विज्ञान के साथ चिकित्साविज्ञान तथा तदंतर्गत शल्यचिकित्सा का विकास हुआ। ई. पू. 301 में मिस्र देश में शल्यतंत्र उन्नत अवस्था में था। मिस्र देश में भूगर्भ से मिले शवों के शरीर में कपालभेद के संधान के चिह्र मिलते हैं। प्रारंभ में रोम नगर के सभी चिकित्सक सिकंदिरिया या उसके पूर्व के निवासी थे। केलसस का "डी मेडिसिना", जो ईसवी सन् 29 में प्रसिद्ध हुआ, पूर्णतया ग्रीक प्रणाली का था। उक्त महाग्रंथ आठ खंडों में है। सातवें खंड में शल्यशास्त्र और छठे खंड के छठे अध्याय में और सातवें खंड के सातवें अध्याय में नेत्ररोगों का विवेचन है। इस महाग्रंथ में वर्णित अर्म (अग्रीस रोमन टेरिजियम्) पोथकी तथा मोतियाबिंद (cataract) की शल्यचिकित्सा बहुत कुछ सुश्रुत से मिलती जुलती है।
जालीनूस ने जो एक प्रकार से यूनानी परंपरा का अंतिम विद्वान् चिकित्सक था, अनेक बड़े बड़े ग्रंथ चिकित्सा शास्त्र पर लिखे। उसके ग्रंथ सारे ग्रीक वैद्यक के विश्वकोश हैं। पश्चिमी काल के पूर्ववर्ती युग (700 ई से 1,200 ई.) में अरबों ने चिकित्सा विज्ञान का दीपक प्रज्वलित किया और शल्यचिकित्सा में भी प्रशंसनीय उन्नति की, जिसका प्रभाव स्पेन तक था। इसी ज्ञान को आधार मानकर आधुनिक शल्यचिकित्सा आज पराकाष्ठा पर पहुँच रही है। अबुल कासिम जहरावी का प्रसिद्ध ग्रंथ, अत्तसरीफ, यूरोप में शल्यतंत्र की उन्नति की आधारभूत नींव है। आधुनिक शल्यचिकित्सा की अद्भुत उन्नति की प्रधान कारण उत्तम चेतनाहर एवं संवेदनाहर ओषधियों (anaesthetics) तथा विश्वसनीय रक्तस्तंभक द्रव्य (haemostatics), पूतिरोधी एवं प्रतिजैविक पदार्थ की सुलभता है, जिनकी सुविधा विक्त युगों में प्राय: नहीं सी थी। अतएव विचारकों के लिए यह एक नितांत जिज्ञासापूर्ण विषय बना रहा कि इन साधनों के अभाव में प्राचीन लोग गंभीर स्वरूप के शल्यकर्म (operation) कैसे करते थे।
.... शल्य कर्ता
[सं-पु.] - वह जो शल्य-चिकित्सा का जानकार हो; (सर्जन); शल्यकार।
शल्य कर्म मतलब
[सं-पु.] - 1. शल्य चिकित्सा 2. चीर-फाड़ का कार्य; (ऑपरेशन)।
शल्य क्रिया मतलब
[सं-स्त्री.] - शारीरिक विकार, रोग या परेशानियों को दूर करने के लिए की जाने वाली चीर-फाड़; (सर्जरी)।
शल्य चिकित्सक मतलब
[सं-पु.] - शरीर की चीर-फाड़ करने वाला चिकित्सक; (सर्जन)।
शल्य चिकित्सा मतलब
[सं-स्त्री.] - चिकित्सा का एक प्रकार जिसमें शरीर के रुग्ण भाग को चीरकर ठीक किया जाता है; (ऑपरेशन)।
शल्यक मतलब
[सं-पु.] - 1. साही नामक जीव 2. एक प्रकार का शस्त्र; भाला; बरछा 3. काँटा; शूल 4. बेल का वृक्ष या फल 5. एक प्रकार की मछली 6. मदन या खैर वृक्ष 7. लोध नामक वृक्ष। [वि.] 1. शल्य से संबंधित; (सर्जिकल) 2. शल्य चिकित्सा से संबंध रखने वाला 3. शल्य क्रिया करने वाला।
शल्यकर्मी मतलब
[सं-पु.] - 1. शल्य कर्म करने वाला 2. शल्य चिकित्सक।