Wednesday, 13 May 2020

सुर्य अ और सूर्य अ भेद वर्णन

असुर्या नाम ते लोका अन्धेन तमसा आवृताः । ताँस्ते प्रेत्य अभिगच्छन्ति ये के च आत्म हनः जनाः ।।३।।

इशावास्यम उपनिषद

भगवद गीता अध्याय 16 आसुरी सम्पदा श्लोक 7 से 20

प्रवृत्तिम्, च, निवृत्तिम्, च, जनाः, न, विदुः, आसुराः, न, शौचम्, न, अपि, च, आचारः, न, सत्यम्, तेषु, विद्यते।।7।।

असत्यम्, अप्रतिष्ठम्, ते, जगत्, आहुः, अनीश्वरम्, अपरस्परसम्भूतम्, किम्, अन्यत्, कामहैतुकम्।।8।।

एताम्, दृष्टिम्, अवष्टभ्य, नष्टात्मानः, अल्पबुद्धयः, प्रभवन्ति, उग्रकर्माणः, क्षयाय, जगतः, अहिताः।।9।।

कामम्, आश्रित्य, दुष्पूरम्, दम्भमानमदान्विताः, मोहात्, गृहीत्वा, असद्ग्राहान्, प्रवर्तन्ते, अशुचिव्रताः।।10।।

चिन्ताम्, अपरिमेयाम्, च, प्रलयान्ताम्, उपाश्रिताः, कामोपभोगपरमाः, एतावत्, इति, निश्चिताः।।11।।

आशापाशशतैः, बद्धाः, कामक्रोधपरायणाः, ईहन्ते, कामभोगार्थम्, अन्यायेन, अर्थस×चयान्।। 12।।

इदम्, अद्य, मया, लब्धम्, इमम्, प्राप्स्ये, मनोरथम्, इदम्, अस्ति, इदम्, अपि, मे, भविष्यति, पुनः, धनम्।।13।।

असौ, मया, हतः, शत्रुः, हनिष्ये, च, अपरान्, अपि, ईश्वरः, अहम्, अहम्, भोगी, सिद्धः, अहम्, बलवान्, सुखी।।14।।

आढ्यः, अभिजनवान्, अस्मि, कः, अन्यः, अस्ति, सदृशः, मया, यक्ष्ये, दास्यामि, मोदिष्ये, इति, अज्ञानविमोहिताः।।15।।

अनेकचितविभ्रान्ताः, मोहजालसमावृताः, प्रसक्ताः, कामभोगेषु, पतन्ति, नरके, अशुचै।।16।।

आत्सम्भाविताः, स्तब्धाः, धनमानमदान्विताः, यजन्ते, नामयज्ञैः, ते, दम्भेन, अविधिपूर्वकम्।।17।।

अहंकारम्, बलम्, दर्पम्, कामम्, क्रोधम्, च, संश्रिताः, माम्, आत्मपरदेहेषु, प्रद्विषन्तः, अभ्यसूयकाः।।18।।

तान् अहम्, द्विषतः, क्रूरान्, संसारेषु, नराधमान्, क्षिपामि, अजस्त्राम्, अशुभान्, आसुरीषु, एव, योनिषु।।19।।

आसुरीम्, योनिम्, आपन्नाः, मूढाः, जन्मनि, जन्मनि, माम् अप्राप्य, एव, कौन्तेय, ततः, यान्ति, अधमाम्, गतिम्।।20।।

त्रिविधम्, नरकस्य, इदम्, द्वारम्, नाशनम्, आत्मनः, कामः क्रोधः, तथा, लोभः, तस्मात्, एतत्, त्रयम्, त्यजेत्।।21।।



“असुर्या नाम ते लोका” मतलब जरासंघ जैसे राजा व योद्धा, जो कभी बडे न होके धर्म रूपी नय जीव का प्रादुर्भाव अटकाते है। धृत मयी जीवन मे व्याप्त रहकर खुश सिर्फ खुदही रहते है। दुसरो को कष्ट देते है।

इसी श्लोक को भगवद गीता में 16 अध्याय में श्लोक 17 से 20 तक विस्तृतरूप से समजाया है।

आसुरी सम्पदा श्लोक 7 to 20
यह श्लोकों को लेकर कृष्ण ने जो असुर होते है, उनका खुद का प्रभाव, जो एक ठहराव से जीवन जीने में क्या होता है, वह तर्क से उचित और समुचय तौर से विवरण देके जताया है।

असूर्य मतलब जो किसी एक रूप या गुन से किसीमें सत तत्व है वह सजीव तेजोमय बड़ा रक्षक।

और

असुर्य मतलब जो किसी एक जगह असमयी जगत में अटका हुआ है वैसा छोटा तेजोमय रक्षक।

जय गुरुदेव दत्तात्रेय

जय हिंद

जिगर महेता / जैगीष्य

Sunday, 10 May 2020

सूर्य अथर्वशीर्ष और माँ

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कर्दम = क: + द (half) + अम

देव : + उत + इ = देवहूति (स्त्री)

पुत्रक कपिल = क + प + इल (इ+ल) ...

...महद एव सत तत्व में से...(देवीभागवत रूपसे) किसी एक पुरुष, जिसको पिंड में चिह्नित किया है, वैसे देव की "द"मनसे ऊपर चढ़ती इच्छा से एक पंचमहाभूत शरीर वाला पुत्र का होना, जीसमेंभी प्रजनन इच्छा के गुण का प्रावधान होना।

रावण मतलब बच्चों की टेलीफोन की रमत का माहीर। दस सिर होने के बावजूद हर सिर एक ही बात बोलेगा।

राम मतलब टेलीफोन की रमत में वायरस के साथ बनने वाला नया चेम्पियन। जिसका भाई शत्रुघ्न लवण असुर का हनन करता है।

लवण यानी नमक या शारीरिक 12 प्रकारके कचरे के प्रकार।

Seriously effective

Any excuse please contact...

My question is "Where is Original One?"

सूर्य शब्द का रिवर्स होता है।

"यरुस" कही कही "ज" को "य" कहते है।

हिंदी में सूर्य को सूरज भी कहते है।

यरुसलम नामक प्रान्त है।

जिसे जेरुसलम भी कहते है। साम विद्या में "अरुण भी सूर्य" के नामका प्रावधान है।

"अरुण" जिसका मतलब रुका हुआ या असमयी सूर्य है।

मेरी माँ।

किसीकी भी माँ जो पढ़ीलिखी हो या न हो, वह कैसी भी हो, पर बच्चे को शायद ही असमय में रखेगी।

अथर्वशीर्ष मतलब स्थित, अच्युत, अचल रहे हुए सजीव, जब तक जीवित था तब तक का, सत तत्व का पूरा ज्ञान।

महाभारत का बर्बरीक उसका सामान्य उदाहरण है। जिसे लोग गुजरातमें बलिया देव कहते है।

वैश्विक मातृदिन स्मरण।

जय गुरुदेव दत्तात्रेय

जय हिंद

जिगर महेता / जैगीष्य