ब्रह्मचर्याश्रम, ब्रह्म को प्राप्त करने हेतुक विद्या की उपासना।
गृहस्थाश्रम, पारिवारिक संसर्ग हेतुक, व्यहवारिक आर्थिक कर्म उपार्जनवानप्रस्थाश्रम, जंगलमे जाके, जो भी काम कर्म गृहस्थ आश्रम में किये, उसके विचार हेतुक जोभी फल प्राप्त हो सकते है उस के कारण शरीरको शांत व्यहवारिक और वैचारिक तौरपे शांत करने हेतुक।
संन्यासाश्रम , उसी शांत शरीर के ऊपर न्यास विधि से खुदका प्रमाण बहुत मन सौंदर्य से समाज का भला करने हेतुक।
जिगर महेता / जैगीष्य
No comments:
Post a Comment