जब पहले पुश बटन नहिथे तब डायल की आवाज़ की टिकटिक की उल्टी गिनती से नंबर याद रखे जाते थे। डिटेक्टिव बातो के लिए तकनीक थी।
फिर पुश बटन आयी तो वहाँ रीडायल बटन आ गया।
तो जो डायल पेड़ से आवाज़ जाहिर होती थी वह कानो में सुनके नंबर याद रखनेकी तकनीक आयी।
तो जो डायल पेड़ से आवाज़ जाहिर होती थी वह कानो में सुनके नंबर याद रखनेकी तकनीक आयी।
यहाँ तक कि क्रेडल को दबाने वाली पिन को नंबर के हिसाबसे गतिके साथ दबाने से भी नंबर डायल कर सकते है
अब तो स्मार्ट फोन आ गये।
लेकिन अगर चाहे तो सॉफ्टवेर की मदद से ही नंबर जानते है डिटेक्टिव कामोमे।
Translation
When the first push button was not there, numbers were remembered by the countdown to the voice tick tick of the dial. There was technology for detective talk.
Then came the push button, there came the redial button. So the voice that came out from the dial pade was the technique of memorizing the numbers after listening in the ears.
Even you can dial the number without push the button, by clicking on the pin in speed with, you dial the number...
Now smart phones have arrived.
But if you want to know the number from smartphone, with the help of software only ditective work would be done...
Jigar Mehta / Jaigishya
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