Saturday 9 January 2021

कनकवा ओर न्यास, मकर संक्रांति ओर कण्व ऋषि

आज विस्मय सा विषय चुना है कनकवा और न्यास

कई लोगों को अचरज होगा कि कनकवा क्या है ओर न्यास क्या है।

कनकवा यानी पतंग, काइट ... इस नाम की बहुत उच्च अर्थिय पर्याय है।

कनक यानी सोना ऑफ वा यानी लेफ्ट मतलब बाएं जिसे गुजरात में डाबा या डाबी बाजू कहते है।

यानी लेफ्ट साइड का गोल्ड, यानी सोना

Kite यानी काइट को काईत भी कह सकते है। मतलब कुछ उच्च रूपसे संस्कृत उच्चारण में बहुत खूबी से है।

का मतलब शक्ति
इत मतलब आगे की या उपरकी मतलब जो आपके आगे कुछ अच्छा है जो आपकी रक्षा करता है वह।

पतंग यानी पंच महाभूत स्वरूप (प) अंग जो तल (त) पर दिखाई दिया है वह, तल यानी पृथ्वी के बारेमे, या जो कुछ क्षेत्रमे कुछ आगे या ऊपर है वह।


मकर संक्रांति या सूर्य संक्रांति पर्व एक दिन का महात्म्य समजे तो कम होगा। बहुत विशिष्ट बात है। सूर्य का मकर राशि मर भ्रमण लेकिन वह सूर्य नीचे से ऊपर की तरफ जाने की तैयारी करेगा। यानी पूर्व से उत्तर दिशा की ओर।

महाभारत में भीष्म की अवधि का स्थानीय गमन को जिस दिनसे नवाज़ा है वह दिन भी सूर्य संक्रांति ही है। यानी नये विचार के साथ सूर्य का गठन जिस कीसीके भी साथ है वह ऊपर चढ़ेगा। 

मकर राशि है जिसमे ख ओर ज नामके शब्द वाले नाम आते है।

वेदोक्त रूपसे देखे तो कँ ब्रह्म ओर खँ ब्रह्म में से जो खँ ब्रह्म है उसका यजुर रूपसे देखी गई उर्जम स्वरूप का चयन जो समाजोत्कर्ष कार्य रूपरेखा में हो उसे ऊंचे चढ़ाना ओर वह भी न्यास रूपसे।

न्यास क्या है

एक श्वसन की अवधि को न्यास कहते है। योग में अनुलोम विनुलोम से प्रख्यात है।

जब आप पतंग चगाते है तो डोर को पकड़के तलीय स्थान से या किसीको छूट दिलाने वाली बात से सामने से पतंग को आकाश में गति देते है। जितनी डोर जाने देंगे उतना क्षेत्र का फेलावा ज्यादा होगा। 

यहां निरपेक्ष रूपसे निर्लेप भाव की महत्ता ही है।

हम सब जानते है कि ब्रह्म सर्व व्यापक है उसे ही या उसका जितना अच्छा न्यास उतना बढ़िया।

जब पतंग अवकाश में ऊपर होती है तो पृथ्वी तल से पतंग ओर पतंग पकड़ने वाले का त्रिकोण बनता है जिसे भूमिति में न्यास कहते है।

वर्तुलमे, सर्कल में, गोलाकार में केंद्र से किसीभी अंदर के रेखा खण्ड पर खींचा गया लम्ब पाद निश्चित रूपसे त्रिकोण बनाता है। ज्यादा नही लिखता। खुद समझे।

जिसे कनक से सोना कहते है उसे 'कण्व" नामसे भी ज़ंकृत करेंगे तो वह आवृत कण यानी ढका हुवा क्षेत्रीय तल में 50 प्रतिशत रूपसे त्रसरेणु का होना। वह व्याख्यायित हो जाता है। और वह अग्नि पुराण एकाक्षर कोष एवम मातृका ओर संधि विग्रह से जाना गया है।

ऋषि कण्व के बारेमे कुछ नोंध। जिनका सप्तऋषि में स्थानांकित पद है। लेकिन सप्तऋषियों किभी विभिन्न शाखा उपलब्ध है। क्योंकि उनका प्रमाण चयन शाक्लायं की विविध शाखाकीय विशेषता से ही है।

कण्व : माना जाता है इस देश के सबसे महत्वपूर्ण यज्ञ सोमयज्ञ को कण्वों ने व्यवस्थित किया। कण्व वैदिक काल के ऋषि थे। इन्हीं के आश्रम में हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला एवं उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ था।

103 सूक्तवाले ऋग्वेद के आठवें मण्डल के अधिकांश मन्त्र महर्षि कण्व तथा उनके वंशजों तथा गोत्रजों द्वारा दृष्ट हैं। कुछ सूक्तों के अन्य भी द्रष्ट ऋषि हैं, किंतु 'प्राधान्येन व्यपदेशा भवन्ति' के अनुसार महर्षि कण्व अष्टम मण्डल के द्रष्टा ऋषि कहे गए हैं। इनमें लौकिक ज्ञान-विज्ञान तथा अनिष्ट-निवारण सम्बन्धी उपयोगी मन्त्र हैं।

सोनभद्र में जिला मुख्यालय से आठ किलो मीटर की दूरी पर कैमूर श्रृंखला के शीर्ष स्थल पर स्थित कण्व ऋषि की तपस्थली है जो कंडाकोट नाम से जानी जाती है।

जय गुरुदेव दत्तात्रेय

जय हिंद

जिगर महेता / जैगीष्य


जो पिंड वही ब्रह्मंड , शरीर का न्यास क्षेत्र ओरा सहित  मन्दिर परिसर रूपमे।


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