द्वैपायन पुत्र शुकजी या शुकदेव है।
वर्तुल का व्यास, जिसे दूसरे आयाम से देखने पर यिन येंग का भी पता चलता है और नये जीव के प्रादुर्भाव को सराहने के लिये यानी दूसरे नये वर्तुल की संरचना को ध्यानमे रखें तो या फिर सम्भावना का उदाहरण ध्यान रखे तो उसे बिंदु शब्दोल्लेख से प्रबोध किया है।
मैं अंगत तौर से दूरदर्शन के सिंबल को तय करने कराने वाले का आभारी हूं।
शूक्र होगा तभी आचार्य बनेगा।
और हम सब “शक ” संवत से नये साल का स्वागत करते है ऐसा कहा गया है।
पुरुषसूक्त में “शक्र” शब्दोल्लेख है।
मतलब “श” का क्रमित (क्रम + इत) चयन। मतलब पुराने से नये क्रम में आना।
हर जगह “र” बरोबर घूमता रहता है।
आधा “र” या पूरा “र” पर घूमता जरूर है।
पार्थ, राष्ट्र, ऋषि, पृथु, सहस्त्र उदाहरणीय है।
जिगर महेता / जैगीष्य
Good
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