किसीभी देश की उन्नति का स्त्रोत नए हकरात्मक विचार का प्रादुर्भावित चलाय मान स्थिति का परम स्वरूप का सचोट निष्कर्षका फल होता है।
विचार नावीन्य का उत्पन्न होना पढ़ाई से, किसी भी नई बात को नए सिरे से सोचने के बाद लिखने पर किसी ओर के पढ़ने से होता है।
उसमे अगर नए जोड़े के लग्न के विस्तार स्वरूप में हकरात्मक सोच आये तो अच्छे विचारों से उन्नत होती नई पीढ़ी की तासीर बखूबी सुंदर होगी ही होगी।
दाम्पत्य जितना खुश होगा, देश उतना सुदृढ़ हॉगा। क्योकि पढ़ी हुई हेतुलक्षी प्रजा का कार्यभार सुनिश्चित रूप से व्यवस्थित अपनी व्यवस्था अपना लेने की स्थितिमे तैयार होगा।
दाम्पत्य में महत्तम अलग सोच यातो बेडरूम से या फिर स्वाभिमान से होती है। बेडरूम में शारीरिक संतोष का कम होना या तो स्वभिमान में मगरूरी से किसीको अक्कल होते हुए भी नीचा दिखाने से होने वाली गलत बात को प्रेम से जोड़ने की चेष्टा करने वाले मेरे दिमाग ने कई तरह के गम झेले है, फिर मैं यह लिखने से समाज के नए दाम्पत्य युग्म द्वारा देशोन्नति की बात सोच रहा हु।
जो कतई गलत नही है।
अगर थोड़ा मन मोटाव हो पर बिछड़ने की बात सोचे बिना आगे की सोच अच्छी रखोगे तो नई पीढिभी शायद मातापिता के बारे में अच्छा जानकर अभिमान न रखकर अपने बच्चों को एकजुट रहने की हीदायत दे सके।
जहा तक रुपये पेसो का सवाल है, भले ही एक रोटी हो, पर प्रेम है तो 10 के बरोबर रहेगी। महेनत करना अच्छा है पर संविधानिक तौर पर शरीर पांच महाभूत अवस्था मे होना चाहिए। जुड़ा हुआ मन यद्यपि चाहे तो कई लोगों का अच्छा कर सकता है।
सुखी सफल दाम्पत्य जीवन देशोत्कर्ष शत प्रतिशत कर सकता है।
जिगर महेता / जैगीष्य
जय गुरुदेव दत्तात्रेय
विचार नावीन्य का उत्पन्न होना पढ़ाई से, किसी भी नई बात को नए सिरे से सोचने के बाद लिखने पर किसी ओर के पढ़ने से होता है।
उसमे अगर नए जोड़े के लग्न के विस्तार स्वरूप में हकरात्मक सोच आये तो अच्छे विचारों से उन्नत होती नई पीढ़ी की तासीर बखूबी सुंदर होगी ही होगी।
दाम्पत्य जितना खुश होगा, देश उतना सुदृढ़ हॉगा। क्योकि पढ़ी हुई हेतुलक्षी प्रजा का कार्यभार सुनिश्चित रूप से व्यवस्थित अपनी व्यवस्था अपना लेने की स्थितिमे तैयार होगा।
दाम्पत्य में महत्तम अलग सोच यातो बेडरूम से या फिर स्वाभिमान से होती है। बेडरूम में शारीरिक संतोष का कम होना या तो स्वभिमान में मगरूरी से किसीको अक्कल होते हुए भी नीचा दिखाने से होने वाली गलत बात को प्रेम से जोड़ने की चेष्टा करने वाले मेरे दिमाग ने कई तरह के गम झेले है, फिर मैं यह लिखने से समाज के नए दाम्पत्य युग्म द्वारा देशोन्नति की बात सोच रहा हु।
जो कतई गलत नही है।
अगर थोड़ा मन मोटाव हो पर बिछड़ने की बात सोचे बिना आगे की सोच अच्छी रखोगे तो नई पीढिभी शायद मातापिता के बारे में अच्छा जानकर अभिमान न रखकर अपने बच्चों को एकजुट रहने की हीदायत दे सके।
जहा तक रुपये पेसो का सवाल है, भले ही एक रोटी हो, पर प्रेम है तो 10 के बरोबर रहेगी। महेनत करना अच्छा है पर संविधानिक तौर पर शरीर पांच महाभूत अवस्था मे होना चाहिए। जुड़ा हुआ मन यद्यपि चाहे तो कई लोगों का अच्छा कर सकता है।
सुखी सफल दाम्पत्य जीवन देशोत्कर्ष शत प्रतिशत कर सकता है।
जिगर महेता / जैगीष्य
जय गुरुदेव दत्तात्रेय
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