सम्पूर्ण ग्रंथ ‘बृहत्पराशरहोराशास्त्र’ नाम से उपलब्ध हैं। अन्य प्रवर्तक ऋषियों के वचन तो इतस्ततः मिलते हैं, लेकिन किसी सम्पूर्ण ग्रंथ के अद्यावधि दर्शन नही होते हैं। यह बात पराशर के मत की सर्व व्यापकता व सार्वभौमिकता का एक पुष्कल प्रमाण है। ‘पराशरहोराशास्त्र’ की गुणग्रहिता व सम्पूर्णता के कारण ही इनकी यह रचना सर्वत्र प्रचलित है।
★ ज्योतिष शास्त्र के सभी ग्रंथों पर यदि दृष्टि डाली जाये तो अनुभव होता है कि परवर्ती आचार्यों के मंतव्यों की मूल भित्ति पराशरीय विचार ही हैं। एक प्रकार से पराशर के ज्योतिषीय विचारों का प्रस्तार ही अवान्तर ग्रंथों में न्यूनाधिक रूप से देखने में आता है। अतः कहा भी गया है –
तीर्थोदकं च वह्निश्च नान्यतः शुद्धिमर्हतः॥ – (भवभूति)
अर्थात – जिस प्रकार वेदों का स्वयं प्रमाण स्वतः सिद्ध है, तीर्थ का जल व अग्नि स्वयं शुद्ध है, उन्हें शुद्ध करने, प्रमाणित करने व ग्राह्य बनाने के लिए किसी पवित्रीकरण की आवश्यकता नही होती उसी प्रकार पराशर के वचनों को प्रमाण रूप में उद्धृत करने की सर्वत्र परिपाटी है। पराशरीय कथनों व निर्णयों को प्रमाणित करने के लिए किसी अन्य ऋषि वाक्यों की आवश्यकता अकिंचित्कर ही है।
★ पराशर सम्प्रदाय या पराशरीय विचारधारा, विचारों की उस गंगा के समान है, जो समस्त भारत भूमि को अपने अमृत से आप्लावित करती हुई अपनी चरम गति या मंजिल पर पहुंचती है और अवान्तर अनेक विचारधारा रूपी नदियों को भी अपने भीतर समेटती चलती है। अतः ‘पराशर मत्त’ गंगानद है तो अन्य विचारधाराएं या मत्त नदियाँ ही है। यह एक अविच्छिन्न रूप से बहने वाली, सदानीरा नदी है। इस दृष्टि से देखने पर महर्षि पराशर का स्थान जैमिनी मुनि से ऊँचा ही सिद्ध होता है। जैमिनीय मत्त के पोषण की परंपरा हमें अवान्तर काल में अट्टू रूप में नही मिलती है।
जैमिनीय मत्त की सभी बातें पराशर सम्प्रदाय में सर्वतोभावेन समाहित हो गयी है, इसका आभास पराशरहोराशास्त्र को देखने से मिल जाता है।
★ वराहमिहिर जैसे आचार्य भी पराशर के सिद्धांतों के सामने नतमस्तक हैं। वे अपने ग्रंथों में बहुत पराशर मत्त का उल्लेख करके उसका अंगीकरण करते हैं। अतः पराशर सम्प्रदाय सम्पूर्ण भारत में चतुर्दिक, पुष्पित व पल्लवित होता रहा है तथा ज्योतिष के विषय में उनके द्वारा रचित ‘बृहदपराशरहोराशास्त्र’ अंतिम निर्णायक ग्रंथ माना जाता है। पराशर, ‘फलित ज्योतिष’ के आधार स्तंभ हैं इसमें कोई संदेह नही है।
- महर्षि_पराशर_का_काल –
★ पराशर का काल महाभारत काल के लगभग होना अनुमित है। कलियुग नामक कालखण्ड के प्रारम्भ में होने के कारण उत्तरोत्तर बलियस्त्व के सिद्धांत से कलियुग में पराशर मत्त की सर्वोपरि मान्यता स्पष्ट है।
★ कौटिल्य के अर्थशास्त्र के एक या दो स्थानों पर ऐसा आभास मिलता है कि उस समय वशिष्ठ व पितामह सिद्धान्त का प्रचार था अतः नारद, वशिष्ठ, पितामहादि ज्योतिष प्रवर्तकों के पश्चात पराशर का समय मानने से परम्परया इनका अस्तित्व कलियुग के आदि में प्रतीत होता है।
★ पराशरः का सृष्टि तत्व निरूपण सूर्य सिद्धांत के तदीय प्रकरण से मेल खाता है। अतः पौराणिक काल में आधुनिक मत्त से पाणिनि से पहले, चाणक्य से भी पहले, वैदिक रचना काल के बाद, पुराण युग में, महाभारत युद्ध की घटना के आसपास पराशर विद्यमान थे।
★ अर्थशास्त्र में पराशर का नामोल्लेख पाया जाता है। गरुड़ पुराण में पराशरस्मृति के श्लोकों का संग्रह किया गया है।
★ बृहदारण्यकोपनिषद व तैत्तिरीयारण्यक में व्यास व पराशर के नाम आते हैं।
★ यास्क ने अपने ‘#निरुक्त’ में पराशर के मूल का भी उल्लेख किया है। ये कृष्णद्वैपायन व्यास के पिता थे तथा इनके पिता का नाम ‘शक्ति’ था। वराह ने पराशर को शक्तिपुत्र या शक्ति पूर्व कहा है।
★ अग्निपुराण में स्पष्टतया इन्हें शक्ति का पुत्र ही कहा है। यही पराशर मत्स्यगंधा सत्यवती पर मोहित हुए थे तथा सत्यवती के गर्भ से पराशर पुत्र कृष्णद्वैपायन व्यास उत्पन्न हुए थे, यह सुविदित ही है।
★ इन्ही पराशर ने कलियुग में व्यवस्था बनाये रखने के लिए ‘पराशरस्मृति’ या ‘द्वादशाध्यायी’ धर्मसंहिता की रचना की थी।
कृते तु मानवो धर्मस्त्रेतायां गौतमः स्मृतः। द्वापरे शंखलिखितः कलौ पराशरः स्मृतः॥
★ कृष्णद्वैपायन व्यास जी जब कुछ मुनियों को बदरिकाश्रम(बद्रीनाथ तीर्थ)में स्थित अपने पिता पराशर के पास ले गए थे तब पराशर ने उन्हें वर्णाश्रम धर्म व्यवस्था परक ज्ञान दिया था।
★ वराह ने इन्ही शक्तिपुत्र पराशर को होराशास्त्र का प्रवक्ता भी माना है।वराहमिहिर पांचवी सदी में हुए हैं, ऐसा माना जाता है। अतः प्रत्येक परिस्थिति में आज से लगभग 2000 वर्ष पूर्व पराशर के समय की निचली सीमा है।
★ श्रीमद् भागवत में एक स्थान पर विदुर व मैत्रेय का वार्तालाप उल्लिखित है। इससे भी #मैत्रेय, #पराशर व #महाभारत की कड़ियाँ मिलती प्रतीत होती है। मैत्रेय को होराशास्त्र बताने वाले महर्षि पराशर महाभारत काल में वृद्धावस्था या चतुर्थाश्रम प्राप्त ऋषि थे। महाभारत का समय परम्परया कम से कम 3000 वर्ष पूर्व माना जाता है। अतः पराशर 2-3 सहस्त्राब्दियों पूर्व भारत में हुए थे।
★ ‘पराशर तन्त्र’ का उल्लेख #भट्टोत्पल ने अनेक स्थानों पर किया है। उन्होंने #बृहज्जातक की टीका में ‘पाराशरी संहिता’ देखने व पढ़ने की बात स्वीकार की है। ‘पराशर तन्त्र’ नाम से जो उद्धरण दिए गए हैं, उनका विषय तन्त्र अर्थात सिद्धांत ज्योतिष से कम व संहिता से अधिक मेल खाता है।
- शिव-#भक्त_पराशर”/ “#वेदव्यास #पराशर” –
★ भगवान ब्रह्मा जी नारद जी से कहते हैं-
ब्रह्मा जी बोले – हे नारद ! अब हम् शिवजी के छब्बीसवें अवतार की कथा कहते हैं, तुम मन लगाकर सुनो।
★ भगवान शिव का छब्बीसवाँ अवतार –
छब्बीसवें द्वापर में #पराशर ने व्यास का जन्म लिया, जो हमारे #प्रपौत्र थे तथा #शक्ति से उत्पन्न हुए थे। #उनके_समान_शिव-#भक्त #कोई_नही_हुआ। उन्होंने वेद के १. ऋक् २. यजु ३. साम एवं ४. अथर्वण ये चार भाग किये तथा उनकी शाखाओं को बढ़ाया। तत्पश्चात अठारह पुराण बनाये, क्योंकि कलियुग के प्रवेश से सांसारिक जीवों की बुद्धि नष्ट हो गयी थी। उन्होंने वेद की रीतियाँ युक्ति पूर्वक पुराणों में इस प्रकार मिला दी, जिससे लोग प्रसन्न हो। जिस प्रकार की कोई वैद्य कड़वी औषधि न देकर मीठी औषधि द्वारा रोगी को प्रसन्न करता है।उन्होंने अन्य व्यासों की अपेक्षा जो कि पहले हुए थे, अधिक अच्छे पुराण बनाये। यद्यपि हमने तथा #व्यास(#पराशर) ने अनेकों प्रकार के प्रयत्न किए, जिससे कि व्यासमत्त प्रसिद्ध हो परंतु हमारा यत्न निष्फल हुआ और किसी ने भी पुराणों को न पढ़ा। तब #व्यास_पराशर ने चिंतित होकर शिवजी का ध्यान किया तथा स्तुति करते हुए उनसे कहा कि हे प्रभो ! द्वापर युग व्यतीत हो गया तथा कलियुग आ गया। यद्यपि मैंने वेद के आशय पुराणों में प्रकट कर दिए, परंतु कलियुग के प्रभाव से इन्हें कोई नही समझता, प्रबृत्ति मार्ग को बढ़ रहा है, परंतु निब्रति की समाप्ति हो रही है। हे प्रभो ! हे भक्तवत्सल ! किसी ने भी पुराणों को नहीं छूआ, अतः मेरा मत्त प्रसिद्ध नही होता इसलिए आप मेरी प्रार्थना सुनकर सहायता कीजिये तथा मेरे धर्म को दृढ़ कीजिये।आप अवतार लेकर मेरे मत की वृद्धि करें। हे नारद ! #मेरे_प्रपौत्र_व्यास_पराशर की इस प्रार्थना को #शिवजी ने स्वीकार कर लिया तथा छब्बीसवें द्वापर के अंत में और कलियुग के प्रारंभ में “#सहिष्णु” नामक अवतार ग्रहण कर लिया तथा १. उलूक २. विद्युत ३. सम्बल तथा ४. अश्वलायन ये चार शिष्य उत्पन्न किये तथा उन्हें योग का ज्ञान सिखाया तथा उन्होंने योग को प्रकट किया।उस योग को संसारी जीवों ने बड़े यत्न से सीखा। फिर उन्होंने वेद एवं पुराणों से अच्छे धर्म एवं मत्त प्रकट किए। शिवजी के ये चार शिष्य आश्रम जानने वाले, योगाभ्यासी तथा निष्पाप हुए। हे नारद ! इस प्रकार भगवान शिव ने अपने इन चार शिष्यों सहित योग को प्रकट कर पुराणों को प्रसिद्ध किया तथा व्यास(#पराशर)जी को प्रसन्न किया।
- भगवान_श्री _पराशर_दोहा –
- वशिष्ठ जैगीषव्य नामा, देवल कपिल रहे सुखधामा।
सनंदन सनातन हि कहेउ वोढु पंचशिख नाम रहेऊ ॥११॥ शुक्र चवन नर शक्रि हि, #पराशर हि व्यास।
- शुकदेव जैमिनी ऋषि, मार्कण्डेय हरिदास ॥१३॥
पौलस्त्य शरद्वान, अगस्त्य अरिष्टनेमि हि। शमीक हि बुद्धिमान, मांडव्य पैल पाणिनी यह ॥१५॥ भागुरि याज्ञवल्क्य हि कहाये, #द्वैपायन पिप्पलाद रहाये।
- मैत्रेय करख उपमन्यु जेहा, गोरमुख अरुणि और्व तेहा ॥१६॥
कक्षिवान् भरद्वाज कहिजे, वेदशिर शंकुवर्ण लहीजे। शौनक #परशुराम कहावे, इंद्रप्रमद और्व कवष रहावे ॥१८॥
– #श्रीहरिचरित्रामृतसागर
नमो वसिष्ठाय महाव्रताय पराशरं वेदनिधिं नमस्ये। नमोऽस्त्वनन्ताय महोरगाय, नमोऽस्तु सिद्धेभ्य इहाक्षयेभ्यः ॥१०॥ नमोऽस्त्वृषिभ्यः परमं परेषां देवेषु देवं वरदं वराणाम् । सहस्त्रशीर्षाय नमः शिवाय सहस्त्रनामाय जनार्दनाय ॥११॥
अर्थात – (यह मंत्र इस प्रकार है) – महान व्रतधारी #वसिष्ठ को नमस्कार है, वेदनिधि पराशर को नमस्कार है, विशाल सर्प-रूपधारी अनन्त(शेषनाग)को नमस्कार है, अक्षय सिद्धगण को नमस्कार है, ऋषि वृन्द को नमस्कार है तथा परात्पर, देवाधिदेव, वरदाता परमेश्वर को नमस्कार है एवं सहस्त्र मस्तक वाले शिव को और सहस्त्रों नाम धारण करने वाले भगवान जनार्दन को नमस्कार है।
– महाभारतम्
तपोनिधि, तपोमूर्ति भक्तवत्सल पराशर का आश्रम – बद्रिकाश्रम
ततस्ते ऋषयः सर्वे धर्मतत्वार्थकांक्षिणः । ऋषिं व्यासं पुरस्कृत्य गता बदरिकाश्रमं ॥५॥ नानापुष्पलताकीर्णम् फलपुष्पैरलंकृतम्। नदिप्रस्त्रवणोपेतं पुण्यतीर्थोपशोभितम् च॥६॥ मृगपक्षिनिनादाढ़यं देवतायनावृतम् । यक्षगन्धर्वसिद्धैश्च नृत्यंगीतैरलंकृतम् ॥७॥ तस्मिन्नृषिसभामध्ये शक्तिपुत्रं पराशरम्। सुखासीनं महातेजा मुनिमुख्यगणावृतम् ॥८॥ कृतांजलिपुटो भूत्वा व्यासस्तु ऋषिभि: सह। प्रदक्षिणाभिवादैश्च स्तुतिभि: समपूज्यत्॥९॥
अर्थात – तब धर्म के तत्व की अभिलाषा करने वाले वह सम्पूर्ण ऋषि यह सुनकर श्री व्यास जी को आगे कर #बदरिकाश्रम को गये।#यह #आश्रम अनेक भाँति पुष्पों_की_लताओं_से_पूर्ण, #फल-#पुष्पों से शोभायमान, #नदी_और_झरनों से विभूषित, #पवित्र_तीर्थों से शोभायमान, #मृग_और_पक्षियों के शब्द से शब्दायमान, #देवमन्दिरों से आवृत, #यक्ष_और_गंधर्वों के नृत्यगान से #शोभायमान, और #सिद्धगणों से अलंकृत था। #उस_आश्रम में #शक्ति_ऋषि के पुत्र #मुनिवर_पराशर #प्रधान_प्रधान_मुनियों_से_युक्त_होकर
- ऋषियों_की_सभा_में_सुखपूर्वक_बैठे_थे। इस समय में #व्यास जी ने ऋषियों के साथ जाकर हाथ जोड़कर उनकी #प्रदक्षिणा_कर #प्रणामपूर्वक_स्तुति_करके_पूजन_किया।
– पराशर स्मृति
■ संस्कृत साहित्य में ‘पराशर’ यह नाम आदरणीय ही नही अपितु अत्यंत प्राचीन भी है। संसार की प्राचीनतम पुस्तक ऋग्वेद में वशिष्ठ, शतायु के साथ पराशर का भी नाम आया है।
◆ प्रये गृहात् ममदुस्त्वाया पराशरः शतायुर्वशिष्ठ ।।
● संदर्भ – द्वितीय खंड ऋग्वेद मंडल 7, अध्याय 2 सूक्त 18, मंत्र 21)
● इन तीनों ने राजा सुदास की विजय कामना के लिए इंद्र से प्रार्थना की थी।
■ ऋग्वेद के प्रथम खंड, प्रथम मंडल, पंचम अध्याय सूक्त 65-73 (पृष्ठ 121 से 133 तक) तक के सूक्तों के द्रष्टा (निर्माता), दिव्य द्रष्टा, वैदिक द्रष्टा,भविष्य द्रष्टा अधभूतकर्मा भगवन् महर्षि पराशर ही माने जाते है।
■ एक अन्य उल्लेख के आधार पर पराशर नाम वाली एक वेद शाखा भी है। ● संदर्भ – काठक अनुक्रमणिका, ‘इस्तु’ 3/460, पृष्ठ 7
■ निरुक्त में पराशर के मूल पर लिखा पाया जाता है।
◆ द्वात्रिंशच्छ्तपदेषु पराशरः ● संदर्भ – निरुक्त (निघण्टु) 4/3
■ पाणिनि मुनि ने अपने व्याकरण शास्त्र में ‘पराशर’ को भिक्षु-सूत्र प्रणेता के रूप में उद्धृत कर पाराशर्यों का भी उल्लेख किया है।
◆ “पाराशर्येण प्रोक्तं भिक्षु-सूत्रमधीयते। पाराशरिणो भिक्षवः। तथा ‘पाराशर्यशिलालिभ्यां भिक्षुनट सूत्रयोः’। ● संदर्भ – अष्टाध्यायी – 4/3/110
■ रामायण – वाल्मीकि रामायण में वशिष्ठ के पौत्र तथा शक्ति के पुत्र के रूप में पराशर की चर्चा हुई है। ■ महाभारत – आदिपर्व, शांतिपर्व, अनुशासन पर्व में पराशर को लेकर पर्याप्त उल्लेख मिलता है। महाभारत में ही शक्ति पुत्र(शाक्तेय) पराशर के साथ पराशर नामक एक सर्प की भी चर्चा की गई है। ◆ पराशरस्तरुण को मणि: स्कंधस्तारुणि:। इति नामा….। ● संदर्भ -(महाभारत आदिपर्व, अध्याय 57, श्लोक 19)
■ कौटिल्य अर्थशास्त्र – कौटिल्य अर्थशास्त्र में पराशर एवं पाराशर्य नाम से छः बार उल्लेख हुआ है। ◆ ‘साधारण एष दोष इति पराशरः’ ● संदर्भ – कौटिल्य अर्थशास्त्र – 1.8 पृ.34, तथा 1/15/59, 1/17/68, 2/17/119, 8/1/572, 8/3/583
■ ब्रह्मांडपुराण, मत्स्यपुराण, वायुपुराण, देवीभागवतपुराण और विष्णु आदि पुराणों में पराशर को एवं उनके मतों को अंकित किया गया।
● ब्रह्मांडपुराण – खंड 2, अध्याय 32 श्लोक 115, 2/33/3, 2/35/24,29, 4/4/65-66, 1/1/9, 3/8/11, आदि। ● वायुपुराण – अध्याय – 23,59,61,65,77 ● मत्स्य-पुराण – अध्याय – 14,53,145 ● देविभागवतपुराण – प्रथम एवं द्वादश स्कन्ध
■ वराहमिहिर –
● भारतीय ज्योतिष-शास्त्र में आचार्य वराह-मिहिर का नाम अत्यंत महत्वपूर्ण है। इन्होंने अनेक पूर्ववर्ती आचार्यों के साथ अपनी संहिता में पराशर के नाम और सिद्धांतो को उद्धृत किया है। रोहिणी योग पर लिखते हुए उन्होंने गर्ग और कश्यप के साथ पराशर की चर्चा की है। वाराही संहिता के टीकाकार भट्टोत्पल ने पराशरीय संहिता को उद्धृत करते हुए लिखा है – धनिष्ठाद्यात् पौष्ठार्द्धांतं चरः शिशिरः। वसंत पौषणार्द्धात् रोहिणयाम्।सौम्यादाश्लेषार्द्धनतं ग्रीष्म:। प्रावृडाशलेषार्द्धत् हस्तान्तम्। चित्राद्यात ज्येष्ठार्द्धत् श्रवणांतम्।
● वराहमिहिर के टिकाकर भट्टोत्पल ने पराशर का ऋतु-अवस्थान विषय-पाठ उद्धृत किया है।
■ सिद्धेश्वर शास्त्री- सिद्धेश्वर शास्त्री चित्राव के अनुसार पराशर आयुर्वेदाचार्यों में आयुर्वेदशास्त्र प्रणेता हैं।
पृथिव्युवाच : –
तथानुकम्पमानेन यज्वनाथामितौजसा ।।७६।। पराशरेण दायादः सौदासस्याभिरक्षितः । सर्वकर्माणि कुरुते शूद्रवत् तस्य स द्विजः ।।७७।। सर्वकर्मेत्यभिख्यातः स माम रक्षतु पार्थिवः।।
अर्थात – पृथ्वी देवी कहती है – इसी प्रकार अमित शक्तिशाली यज्ञपरायण महर्षि पराशर ने दयावश सौदास के पुत्र की जान बचाई है, वह राजकुमार द्विज होकर भी शूद्रों के समान सब कर्म करता है। इसलिए ‘सर्वकर्मा’ नाम से विख्यात है। वह राजा होकर मेरी रक्षा करे।
– पृथ्वी देवी (महाभारत – शांति पर्व)
पराशर’ शब्द का अर्थ है – ‘पराशृणाति पापानीति पराशरः’ अर्थात् जो दर्शन-स्मरण करने से ही समस्त पापों का नाश करता है, वही पराशर है।
पराशातयिता यातुनाम् इति पराशरः।… परा परितः यातूनां… रक्षसाम्। …शातयिता विनाशकः॥३०॥(निरुक्त ६.३०)
परं मातुर्निमातुरनिजायायददरं तदयं यतः। ऋचमुच्चार्य निर्भिद्य निर्गात स पराशरः ।।१।।
अर्थात – यह माता के उदर से वेद ऋचाओं को बोलते हुए निकाला था, अतः इसका नाम पराशर रखा गया।
अर्थात – कामदेव के सम्मोहन, उन्मादन, शोषण, तापन, स्तम्भन, इन पांच बाणों का प्रभाव अपने पर न होने देने के यतन के कारण ऋषियों ने भी इन्हें “पराशर” ही कहा।
★★★ पराकृताः शरा यस्मात् राक्षसानां वधार्थिनाम्। अतः पराशरो नामः ऋषिरुक्तः मनीषिभिः।। पराशातयिता यातूनाम् इति पराशरः। ।।३,३१/२।।
अर्थात – वध की इच्छा रखने वाले राक्षसों के बाणों को इन्होंने परे कर दिया। अतः बुद्धिमानों ने इनका नाम “पराशर”नाम कहा।
★★★ परासुः स यतस्तेन वशिष्ठः स्थापितो मुनिः। गर्भस्थेन ततो लोके पराशर इति स्मृतः ।।४।। अर्थात – उस बालक ने गर्भ में आकर परासु (मरने की इच्छा वाले ) वसिष्ठ मुनि को पुन: जीवित रहने के लिये उत्साहित किया था; इसलिये वह लोक में “पराशर” के नाम से विख्यात हुआ।
★★★ पराशृणाती पापानीति पराशर: ।।५।। अर्थात – जो दर्शन स्मरण करने मात्र से ही समस्त पाप-ताप को छिन्न-भिन्न कर देते हैं वे ही पराशर हैं।
★★★ अतः प्राण-परित्याग करने की इच्छा वाले वशिष्ठ का आधार होने के कारण, या काम-बाण प्रभावों को परास्त करने के कारण, या फिर शरों से दूर ले जाकर इनका रक्षण करने के कारण अथवा शत्रुओं का पराभव करने वाला होने के कारण इस बालक का नाम #पराशर ही व्यवहार में आया। ॥
अर्थात – शत्रुओं के द्वारा अजेय, शत्रुओं को जीतने वाले, सदा आनन्दित रहने वाले, दयालु, पृथ्वी का पालन करने वाले, इंद्रियों के स्वामी, भक्तों के रक्षक #कलिकाल(कलियुग) के #मुनिश्रेष्ठ_पराशर अर्थात् कथा वाचकों के उत्पादक #महामुनि_पराशर ।
★ अथर्ववेद में ऋषिश्रेष्ठ पराशर का देवत्व निर्दिष्ट है। अथर्ववेद में वेदमूर्ति, तपोनिष्ठ, तपोनिधि, भगवान पराशर की गणना ऋषियों में न होकर देवताओं में कई गयी है।
★ ऋषि- अथर्ववेद के अधिकांश सूक्तों के ऋषि ‘अथर्वा'(अविचल, प्रज्ञायुक्त-स्थिरप्रज्ञ) ऋषि हैं। अन्य अनेक ऋषियों के सूक्तों के साथ भी अथर्वा का नाम संयुक्त है। जैसे अथर्वाचार्य, अथर्वाकृति, अथर्वाङ्गिरा, भृगवंगीरा ब्रह्मा आदि।
१. भृगु अर्थवण २. वशिष्ठ ३. अगत्स्य ४. अंगिरा ५. अथर्वा, ६. भृगु ७. जमदग्नि, ८. कश्यप ९. कण्व, १०. विश्वामित्र ….. आदि।
देवता – अथर्ववेद में देवताओं की संख्या अन्य वेदों की अपेक्षा दोगुनी से भी अधिक है।
१. अंश २. अग्नि ३. अग्नाविष्णु ४. अरुंधती नामक औषधि ५. अश्विनीकुमार ६. इन्द्र ७. कश्यप ८.चंद्रमा ९.धन्वंतरि १०. #पराशर
★ अथर्ववेद के इस मंत्र में #पराशर से प्रार्थना की गई है की वे शत्रु को नष्ट करें।
अर्थात – (शत्रु के) क्रोध एवं शस्त्रास्त्र दूर हों। शत्रुओं की भुजाएं अशक्त एवं मन साहसहीन हों। हे दूर से ही शर-संधान में निपुण देव (#पराशर)! आप उन शत्रुओं के बल को परांगमुख करके नष्ट करें तथा उनके धन हमें प्रदान करें।
When a ṛṣi (body fuel) dies he merges back into an element or an archetype.
When Sage Parashara was walking through a dense forest he and his students were attacked by wolves.
He was unable to get away in his old age with a lame leg he left this world merging into the wolves…