Wednesday, 24 April 2019

जिगर की चप्पलें

जिगर की चप्पल

कुछ नही बोलता था छोटा बच्चा।
एक दिन जिह्वा का जादू अनुभव किया।
दांतो के ववराट को महसूस किया।
स्पंदन पहचाना तो “उवाक से उवाच कहा”।
शुरुआत अ, आ, उ, ऊ, ई, इ, ए, ऐ, अम, अह से थी।
ओरुला से आगे बढ़ के कई व्यंजन सीखे।
बहोत कुछ परोसने के बाद सिर्फ खयाल रहा कि
लीग तो मिठाई तीन तरहसे आरोगते है।
सबसे पहले, या बीचमें या तो आखिरमें।
नई राह में देखा जो खाते, थे वह मुह पे लगाते थे।
तभी से जन्मदिनोत्सव दिख गया।
व्यापार बढ़ाने फ़ूड की कंपनी खोली।
शायद वेव्स नही मिली,
पापा को मिल से बाहर ऱखने की सोचमे
10~15 निजी कर्मचारी को बन्ध करवाया।
शायद मधु के पीछे छंद पहचाना
लेकिन न जाने क्यों जिस कारकुन से बन्ध कराया
उसके 10 साल का हिसाब जोड नही पाया।
दो और चार दांतो के हिसाब में चोकठा सही न कर पाया।
यहाँ तक कि कुत्ते, बिल्ली, हाथी तक को आत्मसात कर गया पर किसी की माफी न माग सका।
यही मनुष्य जीवन है?
बस कुछ और नही।
जन्मदिन मुबारक?
रोने परभी माता पिता की हंसी !!!!
दूरसे किसीने अनजान होकर वापस पूछा
क्या नाम है?
मोबाइल फोन की गुंजन में सही बताने की चेष्ठा टली
घुघरिवाला बावा द्विजा का पिता जिगर हो गया।
जिससे पाक (pak) ………….
समझ लो ………. चप्पलें कुछ अलग हो गई।

Jigar Mehta / Jaigishya

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