Thursday 14 November 2019

अधूरा, पर मधुरा बचपना

बचपन तो है बचपना नही।
बचपने से बाकात कोई नही।
अपने आप को पनपने के लिये
बचपनकी यादोंका पानी काफी है।
मोबाइल कितना कुछ खा गया
यहाँ तक कि अंगुलिके टेरवे के कोषभी गर्माहट से खा गया।
लेकिन मित्रों को याद करने कराने के तरीको से निजात न दिला सकता था।
हाथ अपने आप चले पोस्ट कार्ड पर पेन से
दिलकी शुभकामनाएं सीधी आ गयी।
हस्ताक्षर करनेकी जरूरत ना रही
जब टेढ़े मेढ़े हर अक्षरसे बने शब्दको
स्वर व्यंजनका सहारा मिला।
अधूरा फिरभी मधुरा।
जय गुरुदेव दत्तात्रेय
जय हिंद
जिगर महेता / जैगीष्य

From WhatsApp copy pasted under mentioned lines…

ए उम्र,
माना कि तू बडी हस्ती है।
जब चाहे मेरा बचपन छीन सकती है।
पर गुरूर मत कर अपनी हस्ती पर।
मुझे भी नाज है अपनी मस्ती पर।
है अग़र दम तो इतनी सी कर खता।
बचपन तो छीन लिया, बचपना छीन कर बता…


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