Thursday, 31 December 2020

शाकद्वीप के मग ब्राह्मण

शाकद्वीप के मग ब्राह्मण

द्वीप क्या है?
द्वीप यानी चारो ओर से पानी से घिरा हुआ फलद्रुप क्षेत्रीय प्रदेश।

सात द्वीप के नाम एवम वर्णन विशिष्ठ रूप से ही है।
प्लक्ष द्वीप
जम्बू द्वीप
शाक द्वीप
शाल्मल द्वीप
कुश द्वीप
क्रौंच द्वीप
पुष्कर द्वीप

हमे बात करनी है शाक द्वीप ओर मग ब्राह्मण की जो सूर्योपासना, सूर्ययाग, सूर्य यज्ञ ओर सूर्य मंदिर की पूजा तक वही करते है। शाक द्विप कि चंद्रभागा नदी भी विशिष्ट है। मग ब्राह्मण शाक द्वीप में रहते थे।

शाक यानी क्षेत्रीय रूपसे एक ऐसे व्यक्तिक चयन करने योग्य का रहने का स्थल या उसे श अक या अश्क जो शरीर मे अश्रु क्षार युक्त होते हैं उससे भी जोड़ा जा सकता है। यानी अंक नही लेकिन श अक जिसेबादमे शाह यानी जो अग्नि काया में है उसका बहावकरने वाला के रूप में भी नवाजा जा सकता है।

वेदों में आंखको सूर्य चन्द्र के तेज के साथ जोड़ा ही है। 12 आदित्य है और शरीर के 12 मल रूपी कचरे का प्रावधान भी विशिष्ट है।

मग ब्राह्मण क्या है?

कृष्ण के पुत्र साम्ब को जब चर्म या त्वक रोग हुआ था तो मग ब्राह्मण ने ही वह रोग पीली मिट्टी एवम पानी के गुण औषध से मिटाया था।

क्षेत्रीय रूपसे अफ़ग़ानिस्तानके मुल्तान का इलाका पीली मीटी वाला है। और उसके पास में पीली जांयवाले व्यक्तियों का प्रदेश यूरोप को प्लक्ष द्वीप कहा है।


अगर आप वीडियो लिंक देखेंगे तो कृष्ण पुत्रसाम्ब जो जाम्बवती का भी पुत्र था और जाम्बवान जीस्का नाना था वह वार्ता पता चलेगी।

https://youtu.be/yLfjLHwZhTY

जय गुरुदेव दत्तात्रेय

जय हिंद

जिगर महेता / जैगीष्य

Wednesday, 30 December 2020

Weight and Unit of fire, A Concept

Question is not asked as "what is I full name?" but asked as "What is my full name?"
And answer is as according that...
My full name is Jigar Gaurangbhai Mehta...

I have question on my self inner fire and henceforth written same...

What is atikram, past, present, & future tense

J is only atikram  
Jigar is future tense  
Jigar Mehta is past tense  
Jigar Gaurangbhai Mehta is present tense

Each and every ladies are respected.

That is different that lady is crushed by lady only.

Jay Gurudev Dattatreya

Jay Hind

More importantly arising question is what is weight of fire as if the scientists are found fourth dimension than definitely there are such object kind things spear as according and henc6we are getting feelings.. by spaa...

Purity and impurities are combined ... 

when we find of separate purities from anything.... henceforth need to find the weight of pure  fire, which know as Param dhishni in sky with two colours, yellow reduction flame and blue as oxidation flame...  Basically scientists are denied this job... As NO... About weight of fire...


My personal experience is unique for fire... as like as i feel the body of fire is available as per capacity, while making hot inhaler with divel for nose...and passing finger from fire flame... or getting healing from the lamp's fire... For savings self from cold and coughing...

... "I can feel the fire as an object" ....

When we would like to speak sometime something, but we can't, that Hard time if it is, then there are people making JOKE on us but I feel that we need to find the weight of fire as fire has two faces... As per Purana and picture... 

In depth the puran has sentences that how can we speak...

.....

I know that Mr Kamlesh thakkar told me about piruz khambhata that he has two face .. one for yes one for no for same matter....for easy understanding here briefing....

That time I taken the matter as granted things, but this time after reading and writing, thinking that if there are nothing than who speaks or who changing our intend to pretend words from our mouth????

According to my personal experience of related speaking with someone, I feel that the "WA" is the first based unit for feeling the fire...  WAA is the unit of fire where not prescribed moving air as symbol of H ... As HAWA is the name of air... 

In old Latin language the alphabet W is used to for mentioned as something jointly attached as or v and v are speaking double time to specify that word's  importance level as covered things... Or hidden process as like sanskrut...

As per alphabetical order number of same are as according...
W A 
23 1 

Means there are not zero or sifer or shunya but it's moving go ahead with or that place, where something happens... And the process started from there as not new but as consider as old establishment is moving further go ahead.........................

If you want to know how can we speak by the kaayastha Agni please read the following page of Agni Purana chapter 336 shiksha nirupan as according page numbers mentioned in red colour...


It's little hard to understand but interesting...

For further read the first shlok of rugved Agni Sukt Agni mile means if available than only we can get... And if getting than definitely it has volume and that has knowing as it's Maas's or quantum...

अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम् । 
होतारं रत्नधातमम्॥१॥

अग्निः पूर्वेभिर्ऋषिभिरीड्यो नूतनैरुत । 
स देवाँ एहवक्षति॥२॥
अग्निना रयिमश्नवत्पोषमेव दिवेदिवे । 
यशसंवीर वत्तमम्॥३॥
अग्ने यं यज्ञमध्वरं विश्वतः परिभूरसि । 
स इद्देवेषु गच्छति॥४॥
अग्निहॊता कविक्रतुः सत्यश्चित्रश्रवस्तमः । 
देवो देवेभिरा गमत्॥५॥
यदङ्ग दाशुषे त्वमग्ने भद्रं करिष्यसि ।
तवेत्तत्सत्यमङ्गिरः॥६॥
उप त्वाग्ने दिवेदिवे दोषावस्तर्धिया वयम् । 
नमो भरन्त एमसि॥७॥
राजन्तमध्वराणां गोपामृतस्य दीदिविम् । 
वर्धमानं स्वे दमे॥८॥
स नः पितेव सूनवेऽग्ने सूपायनो भव । 
सचस्वा नः स्वस्तये॥९॥   III

Little fast translation by application maybe there is must mistake but tried to getting the point of view of the weight of fire...

हम अग्निदेव की स्तुति करते हैं । (कैसे अग्निदेव ?)
जो यज्ञ (श्रेष्ठतम पारमार्थिक कर्म) के पुरोहित (आगे
बढ़ाने वाले), देवता (अनुदान देने वाले), ऋत्विज्
(समयानुकूल यज्ञ का सम्पादन करने वाले), होता (देवों
का आवाहन करने वाले) और याजकों को रत्नों से
(यज्ञ के लाभों से) विभूषित करने वाले हैं॥१॥

जो अग्निदेव पूर्वकालीन ऋषियों (भृगु, अंगिरादि) द्वारा
प्रशंसित हैं । जो आधुनिक काल में भी ऋषि कल्प
वेदज्ञ विद्वानों द्वारा स्तुत्य हैं, वे अग्निदेव इस यज्ञ में
देवों का आवाहन करें॥२॥

(स्तोता द्वारा स्तुति किये जाने पर) ये बढ़ाने वाले
अग्निदेव मनुष्यों (यजमानों को प्रतिदिन विवर्धमान
(बढ़ने वाला) धन, यश एवं पुत्र-पौत्रादि वीर पुरुष
प्रदान करने वाले हैं॥३॥

हे अग्निदेव ! आप सबका रक्षण करने में समर्थ हैं।
आप जिस अध्वर (हिंसारहित यज्ञ) को सभी ओर से
आवृत किये रहते हैं, वही यज्ञ देवताओं तक पहुँचता
है॥४॥

हे अग्निदेव ! आप हवि -प्रदाता, ज्ञान और कर्म की
संयुक्त शक्ति के प्रेरक, सत्यरूप एवं विलक्षण रूप युक्त
हैं। आप देवों के साथ इस यज्ञ में पधारें॥५॥

हे अग्निदेव ! आप यज्ञ करने वाले यजमान का धन,
आवास, संतान एवं पशुओं की समृद्धि करके जो भी
कल्याण करते हैं, वह भविष्य में किये जाने वाले यज्ञों
के माध्यम से आपको ही प्राप्त होता है।।६।।

हे जाज्वल्यमान अग्निदेव ! हम आपके सच्चे उपासक
हैं । श्रेष्ठ बुद्धि द्वारा आपकी स्तुति करते हैं और
दिन-रात, आपका सतत गुणगान करते हैं । हे देव !
हमें आपका सान्निध्य प्राप्त हो॥७॥

हम गृहस्थ लोग दीप्तिमान्, यज्ञों के रक्षक,
सत्यवचनरूप व्रत को आलोकित करने वाले, यज्ञस्थल
में वृद्धि को प्राप्त करने वाले अग्निदेव के निकट
स्तुतिपूर्वक आते हैं।।८॥

हे गार्हपत्य अग्ने ! जिस प्रकार पुत्र को पिता (बिना
बाधा के) सहज ही प्राप्त होता है, उसी प्रकार आप भी
(हम यजमानों के लिये) बाधारहित होकर सुखपूर्वक
प्राप्त हों। आप हमारे कल्याण के लिये हमारे निकट
रहें॥९॥

The words हे गार्हपत्य अग्ने has so many sense... 
"...Which is acceptable is coming to us or me.... " is the meaning of graahyapatya

And there are volume or objects than only justify by names... See the blog about name of fire family members


Further see the video of fire in without gravity.. given after photos...

we can still not define it volume based weight or Maas's theory and making new sun in laboratory today's news paper has proof of same... See the photos

South Korea made sun for 20 seconds


China trying to make sun in laboratory...


Happy moments

Jay Gurudev Dattatreya

Jay Hind

Jigar Mehta / Jaigishya

Sunday, 27 December 2020

त्रिपादूर्ध्व

त्रिपादूर्ध्व उद ऐत पुरूष: पादो अस्य इह अ भव: पूनः।।
ततो विश्वम व्य क्रमत: साशनानशने अभि।। 4।।




संस्कृत में अ काररूपी निर्देशित व्यक्ति विशेष सीधा स्वीकृत है। लगभग हर जगह ऐसाही देखाहै। इस लिए वह व्यक्ति, जो व्यक्ति, जिस व्यक्ति को भाषान्तर में समझने के लिये लिखा जाता है।

त्रिपाद उर्ध्व  यानी पैर नही लेकिन अ कार रूपी सजीव की तीन पद की अवस्था  जो उल्टी हो मतलब पुराने ज़माने में यज्ञ के द्वारान यूप रखे जाते थे। जिसका चित्ररण नीचे दिया है।

बर्बरीक का सिर्फ मुह कहा है शरीर का दाह संस्कार नही पढा अभी तक मैंने। अगर आपनेपढ़ा हो तो मुझे बताना।


जो क्षेत्र एवम क्षेत्रग्न है वह अष्ट प्रकृति का स्वामी कृष्ण कहलाया है।


तीन अवस्था यानी भूत, वर्तमान भविष्य की स्थिति।


उर्ध्व यानी सरल समझ मे वेताल की पेड़ पर लटकाये जाने वाली अवस्था जिसमें उल्टा देख सकता है, उल्टा होने की वजह से वह हाथ नीचे पृथ्वी तरफ रख कर अपने दोनों पैर को पेड़ पर शाखा की तरह तिंगा सकता है और सजीव पेड़ के जीवन की मुख्य ऊर्जा पानी को भी अपने मस्तिष्क तक पैरो से उपरसे नीचे ऊर्ध्व लेजा सकता है।


दोनो तस्वीर ध्यान से देखे।







पुराण वेदमे अश्वथामा च अश्वत्थवृक्ष का उल्लेख है। वृक्ष की लकड़ी को काष्ठ कहा है जो यूरोप में अंग्रेजी के कास्ट शब्दसे प्रचलित कई जाती प्रजाति, ज्ञाति के रूपमे पृथ्वी पर कई जगह कई किस्म के कर्म करती करातीहै।


महेसाणा गुजरात मे आगिया बैतालका मन्दिरभी है।


आग या अग्नि के प्रावधान रूपमे मेर मेरैयू , रूपाल की पालकी या पल्ली, हथियाथाथु प्रसिद्ध है।


उद ऐत पुरूष: यानी जो उदर या उत होने वाला है और जो "द" को विशिष्ट रूप से प्रावधानित करता है । यहां द यानी ब्रह्मा का दिया हुआ अक्षर।  वह पुरुष ....


पादो अस्य इह अ भव: पूनः


वह या उस पुरुष का अ काररूपी स्वरूपित पद यानी पैर जो किसीको अचेतन या अवचेतन रूपसे रखे हुए है उसका या उसके चेतन तत्व से इच्छा वाला एक यानी अ भव यानी जन्म पुनः यानी दोबारा यानी  फिरसे हो।


ततो विश्वम व्य क्रमत: साशनानशने अभि।


ऐसे या इस प्रकार के रहे हुए का (जो भी कोई हो) उसका विश्व मे व्य यानी विचारका फेलावा तल पर क्रम में यानी one by one सुंदर रूप से


साशनानशने अभि।


साशन यानी सूंदर "शं" के प्रावधान यानी जिसे हम शंकर कहते है उसके प्रावधान यानी भूत भविष्य वर्तमान मेसे वर्तमानरूपी प्रावधान का शंकर रूपी सजीव का अस्तित्व

अनशने अभि  यानी भूख प्यास बगैर जिस तरह रहे है वैसे अभि यानी अ कार रूपी अग्नि वाले सजीव तत्व की उपस्थिति में हो।

जय गुरुदेवदत्तात्रेय

जय हिंद

जिगर महेता / जैगीष्य


Why chandrayaan calopsed on moon's pole

Why chandrayaan calopsed on moon's pole... See the parts of Indian chandrayaan calopsed on moon's pole showing in the photos..


A big bang theory... How.  See ... Let's discuss few points on same in short while...

Sun planetary systems has its own magnetic field

As each all has, earth has also it's own magnetic field along with moon

SUN and the whole solar planetary systems moving forward in universe with fixed speed limit...

Earth and other planets are also moving forward and surroundingly moving to sun.. with according speed limit...

The only sub planet of earth's Moon, is also moving surrounding way to earth with it's own speed limit...

Each and all are related with and attached with such fixed magnetic field force...

Now read the blog about space debris as mentioned here under...

http://jaigishya.blogspot.com/2020/12/space-debris-and-changing-earths-pole.html



Or

Space debris started from 1955 and increased day by day as according the earth's expansion of rocket science and curiosity of human to know about universal structure mode made by whom.... and the north pole changing processes started since 1500 but that time it's worked very slowly as per sun and the whole planetary systems moving in universe but it's speed limit changing from 1990 as so many space junk incredible way increased in earth orbit by Human...


... The north pole is forwarding from Canada to Russia side... See the photos references from AFP.....
iSRO us doing best but the technical way we hitter hard by natural ways...


See the other sources of sun's black spot theory and magnetic field force changing processes... References by NASA...



See the additional important video for understanding the loosing magnetic field of such object on moon... And main things is about not worked at moon's pole...


I have few words and sentences which meaning are unique way... As like raghvadiyam poem read left to right is krushna kathaa and right to left raam kathaa...

See

Natu natu baaree maa Jo...
નટુ નટુ બારી માં જો

Jo maaree baa tun tun...
જો મારી બા ટુન ટુન


લીમડી ગામે ગાડી મલી
The other is unique definitely different way. Read left to right or right to left ... Both are common...

Our planetary systems has same unique mode... When getting different places several times as other are also getting changing places as time is the unique factors with the distance mode...

I believe that the earth's moon and earth it self has not more changes but the other field force may be giving changes to the magnetic field force... For chandrayaan of India...

I surprised now why any of one agency mentioned here under are not declared the truth reason behind Indian chandrayaan calopsed story...

• ASI (Agenzia Spaziale Italiana)
• CNES (Centre National d'Etudes Spatiales)
• CNSA (China National Space Administration)
•CSA (Canadian Space Agency)
• DLR (German Aerospace Center)
ESA (European Space Agency)
ISRO (Indian Space Research Organisation)
JAXA (Japan Aerospace Exploration Agency)
KARI (Korea Aerospace Research Institute)
• NASA (National Aeronautics and Space Administration)
.ROSCOSMOS (Russian Federal Space Agency)
•SSAU (State Space Agency of Ukraine)
.UK Space Agency


Jay Gurudev Dattatreya

Jay Hind

Jigar Mehta / Jaigishya 










Saturday, 26 December 2020

Space Debris and Changing Earth's Pole

... About more than 8000 tone debris are in surrounding of earth's as Sky junk or scrap or useless material moving...

Space debris is unique and most importantly arising question nowadays in world... As world getting changes its pole places... 

See the effect of accidentally received by Space crafts panel... References by NASA...


The solar planet has so many asteroidd but the Space junk is unique way flying surrounding earth as so many setelite demolished by natural ways or immaturity kind non natural way and those scrap are in the sky, which is may be harmful to our new latest setelite or the rocket science, which are in process of finding new sky's limit of human races and world's country's political leaders races...

Link of video about the sky scrap or sky junk...

I here producing few links for understanding this matter which is important...

Link 1 is very easy to understand as how the scrap moving surrounding way of earth's orbit and showing that it's constant increase and how our earth is getting different Polaris effects by that... And constant getting different positions of the pole and related The same India lost its moon mission as due to same I mean to say the scrap or debris, the moon connection or connectivity is also effected and henceforth India can not put his chandrayaan at moon's pole... As all calculation are having different technical glitches...

... The reference is from Mr Stuart Gray YouTube channel episode five.. it's record showing as visualization effects since 1955 to 2016...


Link two YouTube video is for understanding as how it's created by us Or how we can manage... it but mostly hard to manage as according...

But references are good FROM YouTube channel... 

ESA .....
https://youtu.be/wkJ3vEUiC9g

Curiosity elephant....
https://youtu.be/Ctvzf_p0qUA

For understanding of this blog details need to watch same video and few more which are not added herewith but truth is there...


Here we all know that a little magnet if covered by iron, after at such covered limit, it's lost its magnetic field ... Same rules are available in space debris... Henceforth we need to understand the nature of law...

NASA, ESA, China Space agency and many mor are giving few money to UNO for as making space debris but it's not fair...

We must need to do hard decision or policy decisions on such higher inner privet destination goals expansion for any country's leadership...

These all are agencies need to worry on same...
• ASI (Agenzia Spaziale Italiana)
• CNES (Centre National d'Etudes Spatiales)
• CNSA (China National Space Administration)
•CSA (Canadian Space Agency)
• DLR (German Aerospace Center)
ESA (European Space Agency)
ISRO (Indian Space Research Organisation)
JAXA (Japan Aerospace Exploration Agency)
KARI (Korea Aerospace Research Institute)
• NASA (National Aeronautics and Space Administration)
.ROSCOSMOS (Russian Federal Space Agency)
•SSAU (State Space Agency of Ukraine)
.UK Space Agency


Jay Gurudev Dattatreya

Jay Hind

Jigar Mehta/Jaigishya


Wednesday, 23 December 2020

Purush Sukt

Here producing Purush Sukt's different types of era as 
Type one
Type two
Type three
For understanding better the words and meaning....

Type one

These are as per stotra's one word meaning base line to line

सहनशीर्षा पुरुषः । 
सहशाक्षः सहसपात्।
स भूमिं विश्वतो वृत्वा । 
अत्यतिष्ठहशाणुलम् ।।
पुरुष एवेव सर्वम् । 
यद्भूतं यच्च भव्यम् ।
उतामृतत्व स्वेशानः । 
यदन्नेनातिरोहति ।।
एतावानस्य महिमा । 
अतो ज्यावाग् श्च पूरुषः ।
पादोस्य विश्वा भूतानि । 
त्रिपादस्थामृतं दिवि ।।
त्रिपादूव उदैत्पुरुषः । 
पादोस्वेहाभवात्पुनः ।
ततो विष्वण-व्यक्रामत् । 
साशनानशने अभि ।।
तरमाद्विराडजायत । 
विराजो अधि पूरुषः ।
स जातो अत्यरिच्यत । 
पश्चाद्-भूमिमथो पुर।।
यत्पुरुषेण हविषा । 
देवा यज्ञमतन्वत।
वसन्तो अस्यासीदाज्यम् । 
शीष्म इध्मश्शरध्यविः ।।
सप्तास्यासन्-परिचयः । 
त्रिः सप्त समिधः कृताः ।
देवा यघशं तन्वानाः । 
अबध्नन्-पुरुष पशुम् ।।
तं यज्ञं बहिषि प्रौक्षन् । 
पुरुषं जातमातः ।
तेन देवा अवजन्त । 
साध्या ऋषयश्च ये ।।
तरमाधशात्-सर्वहुतः । 
सम्भृतं पृषदाज्यम् ।
पशू-स्ताश्चरर वायव्यान् ।
आरण्यान्-शाम्याश्च ये ।।
तरमाधशात्सर्वहुतः। 
ऋचः सामानि जशिरे।
छन्दासि जज्ञिरे तस्मात् । 
यजुस्तरमादजायत ।।
तरमादश्वा अजायन्त । 
ये के चोभयादतः ।
भावोह जज्ञिरे तस्मात् । 
तस्माज्जाता अजावयः ।।
यत्पुरुष व्यदधुः। 
कतिथा व्यकल्पयन् ।
मुखं किमस्य को बाहू। 
कावूरू पादावुच्यते ।।
ब्राह्मणोस्य मुखमासीत् । 
बाहू राजन्यः कृतः ।
ऊरू तदस्य यद्वैश्यः। 
पझ्याम् शूद्रो अजायतः ।।
चन्द्रमा मनसो जातः । 
चक्षोः सूर्यो झज्जायत ।
मुखादिन्द्रश्चाग्निश्च । 
प्राणाद्वायुरजायत ।।
जाभ्या आसीदन्तरिक्षम् । 
शीणो धौः समवर्तत।
पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्रात्।
तथा लोकाठम् अकल्पयन् ।।
वेदाहमेतं पुरुषं महान्तम् ।
आदित्यवर्ण तमसस्तु पारे।
सर्वाणिपाणि विचित्य धीरः ।
जामानि कृत्वाभिवदन्, यदास्ते॥
धाता पुरस्ताघमुदाजहार।
शक्रः प्रविद्वान्-प्रदिशश्चतः।
तमेवं विद्वानमृतइह भवति ।
नान्यः पन्था अयनाय विद्यते।
यझेन यज्ञमयजन्त देवाः ।
तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् ।
तेह नाकं महिमानः सचन्ते ।
यत्र पूर्वे साध्यास्सन्ति देवाः ।।
अद्भ्यः सम्भूतः पृथिव्यै रसाच्च ।
विश्वकर्मणः समवर्तताधि ।
तस्थ त्वष्टा विदधपमेति।
तत्पुरुषस्य विश्वमाजानमजे ।
वेदाहमेतं पुरुषं महान्तम् ।
आदित्यवर्ण तमसः परस्तात् ।
तमेवं विशनमृत इह भवति ।
नान्यः पन्था विद्यतेयनाथ ।।
प्रजापतिश्चरति गर्ने अन्तः ।
अजायमानो बहुधा विजायते।
तस्य धीराः परिजानन्ति योनिम्।
मरीचीनां पदमिच्छन्ति वेधसः ।।
यो देवेभ्य आतपति । 
यो देवानां पुरोहितः ।
पूर्वो यो देवेभ्यो जातः । 
नमो रुचाय ब्राह्मये ।।
रुचं ब्राह्म जनयन्तः । 
देवा अटो तदब्रुवन् ।
यस्त्वैवं ब्राह्मणो विधात् । 
तस्य देवा असन् वशे॥
हीश्च ते लक्ष्मीश्च पत्न्यो । 
अहोरात्र पावे।
नक्षत्राणि रूपम् । 
अश्विनौ व्यात्तम् ।
इष्टं मनिषाण। 
अमु मनिषाण । 
सर्व मनिषाण ।।

ॐ शांति: शांति: शांति: 


Type two

Now as per shloka paath individual mantras line description...

सहनशीर्षा पुरुषः । सहशाक्षः सहसपात्।
स भूमिं विश्वतो वृत्वा । अत्यतिष्ठहशाणुलम् ।।

पुरुष एवेव सर्वम् । यद्भूतं यच्च भव्यम् ।
उतामृतत्व स्वेशानः । यदन्नेनातिरोहति ।।

एतावानस्य महिमा । अतो ज्यावाग् श्च पूरुषः ।
पादोस्य विश्वा भूतानि । त्रिपादस्थामृतं दिवि ।।

त्रिपादूव उदैत्पुरुषः । पादोस्वेहाभवात्पुनः ।
ततो विष्वण-व्यक्रामत् । साशनानशने अभि ।।

तरमाद्विराडजायत । विराजो अधि पूरुषः ।
स जातो अत्यरिच्यत । पश्चाद्-भूमिमथो पुर।।

यत्पुरुषेण हविषा । देवा यज्ञमतन्वत।
वसन्तो अस्यासीदाज्यम् । शीष्म इध्मश्शरध्यविः ।।

सप्तास्यासन्-परिचयः । त्रिः सप्त समिधः कृताः ।
देवा यघशं तन्वानाः । अबध्नन्-पुरुष पशुम् ।।

तं यज्ञं बहिषि प्रौक्षन् । पुरुषं जातमातः ।
तेन देवा अवजन्त । साध्या ऋषयश्च ये ।।

तरमाधशात्-सर्वहुतः । सम्भृतं पृषदाज्यम् ।
पशू-स्ताश्चरर वायव्यान् । आरण्यान्-शाम्याश्च ये ।।

तरमाधशात्सर्वहुतः। ऋचः सामानि जशिरे।
छन्दासि जज्ञिरे तस्मात् । यजुस्तरमादजायत ।।

तरमादश्वा अजायन्त । ये के चोभयादतः ।
भावोह जज्ञिरे तस्मात् । तस्माज्जाता अजावयः ।।

यत्पुरुष व्यदधुः। कतिथा व्यकल्पयन् ।
मुखं किमस्य को बाहू। कावूरू पादावुच्यते ।।

ब्राह्मणोस्य मुखमासीत् । बाहू राजन्यः कृतः ।
ऊरू तदस्य यद्वैश्यः। पझ्याम् शूद्रो अजायतः ।।

चन्द्रमा मनसो जातः । चक्षोः सूर्यो झज्जायत ।
मुखादिन्द्रश्चाग्निश्च । प्राणाद्वायुरजायत ।।

जाभ्या आसीदन्तरिक्षम् । शीणो धौः समवर्तत।
पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्रात्। तथा लोकाठम् अकल्पयन् ।।

वेदाहमेतं पुरुषं महान्तम् ।
आदित्यवर्ण तमसस्तु पारे।
सर्वाणिपाणि विचित्य धीरः ।
जामानि कृत्वाभिवदन्, यदास्ते॥

धाता पुरस्ताघमुदाजहार।
शक्रः प्रविद्वान्-प्रदिशश्चतः।
तमेवं विद्वानमृतइह भवति ।
नान्यः पन्था अयनाय विद्यते।l

यझेन यज्ञमयजन्त देवाः ।
तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् ।
तेह नाकं महिमानः सचन्ते ।
यत्र पूर्वे साध्यास्सन्ति देवाः ।।

अद्भ्यः सम्भूतः पृथिव्यै रसाच्च ।
विश्वकर्मणः समवर्तताधि ।
तस्थ त्वष्टा विदधपमेति।
तत्पुरुषस्य विश्वमाजानमजे ।l

वेदाहमेतं पुरुषं महान्तम् ।
आदित्यवर्ण तमसः परस्तात् ।
तमेवं विशनमृत इह भवति ।
नान्यः पन्था विद्यतेयनाथ ।।

प्रजापतिश्चरति गर्ने अन्तः ।
अजायमानो बहुधा विजायते।
तस्य धीराः परिजानन्ति योनिम्।
मरीचीनां पदमिच्छन्ति वेधसः ।।

यो देवेभ्य आतपति । यो देवानां पुरोहितः ।
पूर्वो यो देवेभ्यो जातः । नमो रुचाय ब्राह्मये ।।

रुचं ब्राह्म जनयन्तः । देवा अ तदब्रुवन् ।
यस्त्वैवं ब्राह्मणो विधात् । तस्य देवा असन् वशे ।।

हीश्च ते लक्ष्मीश्च पत्न्यो । अहोरात्रे पावि।
नक्षत्राणि रूपम् । अश्विनौ व्यात्तम् ।l

इष्टं मनिषाण । 
अमु मनिषाण । 
सर्व मनिषाण ।।

ॐ शांति: शांति: शांति: 



Type three

Now as per purush sukt stotra...

॥ अथ शुक्लयजुर्वेदीय पुरुषसूक्तः॥

हरिः ॐ सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात् ।
स भूमिꣳ सर्वत स्पृत्वाऽत्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम् ॥ १॥

पुरुष एवेदꣳ सर्वं यद्भूतं यच्च भाव्यम् ।
उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति ॥ २॥

एतावानस्य महिमातो ज्यायाँश्च पूरुषः ।
पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि ॥ ३॥

त्रिपादूर्ध्व उदैत्पुरुषः पादोऽस्येहाभवत् पुनः ।
ततो विष्वङ् व्यक्रामत्साशनानशने अभि ॥ ४॥

ततो विराडजायत विराजो अधि पूरुषः ।
स जातो अत्यरिच्यत पश्चाद्भूमिमथो पुरः ॥ ५॥

तस्माद्यज्ञात् सर्वहुतः सम्भृतं पृषदाज्यम् ।
पशूँस्ताँश्चक्रे वायव्यानारण्या ग्राम्याश्च ये ॥ ६॥

तस्माद्यज्ञात् सर्वहुतः ऋचः सामानि जज्ञिरे ।
छन्दाꣳसि जज्ञिरे तस्माद्यजुस्तस्मादजायत ॥ ७॥

तस्मादश्वा अजायन्त ये के चोभयादतः ।
गावो ह जज्ञिरे तस्मात्तस्माज्जाता अजावयः ॥ ८॥

तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन् पुरुषं जातमग्रतः ।
तेन देवा अयजन्त साध्या ऋषयश्च ये ॥ ९॥

यत्पुरुषं व्यदधुः कतिधा व्यकल्पयन् ।
मुखं किमस्यासीत् किं बाहू किमूरू पादा उच्येते ॥ १०॥

ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद्बाहू राजन्यः कृतः ।
ऊरू तदस्य यद्वैश्यः पद्भ्याꣳ शूद्रो अजायत ॥ ११॥

चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत ।
श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत ॥ १२॥

नाभ्या आसीदन्तरिक्षꣳ शीर्ष्णो द्यौः समवर्तत ।
पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्रात्तथा लोकाँऽकल्पयन् ॥ १३॥

यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतन्वत ।
वसन्तोऽस्यासीदाज्यं ग्रीष्म इध्मः शरद्धविः ॥ १४॥

सप्तास्यासन् परिधयस्त्रिः सप्त समिधः कृताः ।
देवा यद्यज्ञं तन्वाना अबध्नन् पुरुषं पशुम् ॥ १५॥

यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् ।
ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ॥ १६॥

॥ इति शुक्लयजुर्वेदीयपुरुषसूक्तं सम्पूर्णम्॥


There are little variable and variations in sanskrut as different samhita but the knowledgeable person can definitely defined the very nominal difference...

purush sukt has so many eye open words if we read proper as per Sanskrut matruka level…
“Tripad Urdhva” when done… You got YUP conditions for yagna mandap for your own leg for those body which is you consider as small in comparison of your presence… And you are doing yagna for your fourth leg…on that ways consider as havi and hut dravya, is your whole legs material. As same way your present body is taking as purusha’s skin, mussels, bones, blood, sirum, etc as dravya for yagna…
Very hard to understand but Sanskrut is not easy to understand exact proper way…

I several ways understand that the HOTA of  yagna is speaking kha instead of sha in purush Sukt... It's really very interesting but for that need to understand the sandhi and matruka level of the words...

PURUSHA

WHILE SPEAKING THE AIR IS MOVING OUTSIDE FROM THE TEETH AND TOUNGE 

AND THE SYMBOL OF SHA IN SANSKRUT IS SHOWING MEANING AS IT'S SOMETHING WOULD BE NOT FINISHED EVER IN LIFETIME...

Sha is the third level of alphabet in sanskrut as like as SA, sha and shaa स, श, ष


PURUKHA

WHILE SPEAKING THE AIR IS MOVING OUTSIDE FROM THE NICK OR THROATS INNER SIDE to mouth as MEANS IT'S GIVING VIBRATION to the ORULA... Means savings self and used of the hidden era or ora of to the main HOTA...


Little hard to explain as language base I have...

See the YouTube video link of purusha Sukt but speaking as purukha Sukt... 

When you listen the same would be understand better...

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Jay Gurudev Dattatreya

Jay Hind

Jigar Mehta / Jaigishya

Tuesday, 22 December 2020

क्षेत्रीय वार्ता:

भाषा ना जानामि!!!! 
किम उपाये निश्चित उत्तर प्राप्यामि?
अत्र तत्र सर्वत्र समुच्चय जगद्भासयते अखिलं, समान चेष्ठा दर्शयामि, तृषा च भोक्ष्यान्वित समये। 
यदाकदा पिताजी उवाच,
हस्त अंगुष्ठ मात्र मुख समीपे तृषा क्रिया सूचयन्ति।  
हस्त अंगुष्ठ च अंगुली समन्वय मुख समीपे क्षुधा क्रिया सूचयन्ति।  
बुद्बुदास्य दुर्ग लाभान्वित खचित एकदा।  
मात्र दुर्ग क्षेत्र नास्ति समीपे।
वसिष्ठ: नामेन हिनोक्ति प्रचलित, "गणिकास्य पुत्र वसिष्ठ:"।
विशेषत: मामका पत्नीस्य विशेष शब्द सूची प्रयोगे नामकरण: लब्धित जातवेदे।  
जैगीष्य अलुभान।  
जैगीष्य आलंबयान।  
भारतीय प्राचीन आर्य गोत्र "आलंबयाँन", अर्वाचीन अपभ्रंशत:  शब्दनुभानय: "आलुभान"????
मातस्य पुत्र जिगर उपनामित ****_जैगीष्य_**** ।
जय गुरुदेव दत्तात्रेय
जय हिंद
जिगर महेता / जैगीष्य

Friday, 18 December 2020

Moon

**Mercury and Venus**  

Up first are Mercury and Venus. Neither of them has a moon.

  Earth

Up next is Earth, and of course we have one moon.

  
**Mars**

Mars has two moons. Their names are Phobos and Deimos.

**Jupiter**

Next are the giant outer planets. They have lots of moons. Jupiter, for instance, has 79 known moons!

The most well-known of Jupiter's moons are Io (pronounced *eye-oh*), Europa, and Callisto. Jupiter also has the biggest moon in our solar system, Ganymede.

  
**Saturn**

Saturn has 53 moons that have been named. Saturn also has 29 moons awaiting confirmation. They’re unconfirmed because we’re waiting to get more information about them. If all of these moons get confirmed, Saturn will have 82 moons. And that’s not counting Saturn’s beautiful rings.

Saturn’s moons have great names like Mimas, Enceladus, and Tethys. One of these moons, named Titan,  


**Uranus and Neptune**

Uranus has 27 moons that we know of. Some of them are half made of ice.

Neptune urf VARUNA Has 14 moon..

Thursday, 17 December 2020

Sun and black spot with Corona

Matter of inner recreation or kind of making self saving from hybreed form material ... the complete graph of sun and it's black spot increase and decrease story... reference by NASA tweet and video...


The important is as constantly changing places with lost on record is mostly priority based things on this first purvadharanaa... 

For sun's black spots...

It's beautiful way decrease counts... 

But recreation of same and getting count near by 250 to 300 is also unique...
We need not to forget that Along with same earth facing changes in pole places too... 

And even more Mars has two deep hole with lines since long and recent days or months Neptune has getting white to black spot or clouds within record time ... NASA has reported on same earlier... They made purvadharanaa or believe that as universal electricity is responsible for same...


Neptune has unique name in sanskrut and that is VARUNA... Means covered water...

Since long we are also facing Naval Covid 19, Corona from SARS group based viruses and it's after treatment people facing fungus types sicknesses in nose and ears... as after therapy of Corona... Recent days medical terms put right sign on it... Gujarati language news agency report...
Sun has it self Corona structure... Which is is not cross by any one or any planet... The Parker doing better job but the sun or our planetary systems has unique attachments with our body either it's Human, animal or birds or insects...
In 1920 approximately the bird flu was done tremendous work out and after 100 years human facing Corona... With same SARS group... 

The body of human has got considaration as sun and Whole body has proverb...
Pinde te Brahmande... પિંડે તે જ બ્રહ્માંડે... Pine means body and Brahmande means at univers...

Let's hope for better and best for not only Human but for all animals, birds, insects and the earth along with the planetary systems...

For further about sun and black spot with Corona... you can see NASA's report posted tweets... Here giving link of same which has video graphics understanding...


In September, scientists announced that our Sun has entered a new cycle — a determination that relies on the work of scientists around the world, including hand-drawn sketches of the Sun’s surface and sophisticated models of the solar magnetic field.


YouTube video also available...


You can read the further information about Neptune urf VARUNA planet's white and black could history... which link is giving hereunder 



Jay Gurudev Dattatreya

Jay Hind

Jigar G Mehta / Jaigishya


Wednesday, 16 December 2020

Neptune urf VARUNA planet

Neptune urf VARUNA planet

For your information the here under photo is from NASA and from April 2020 and shows white clouds of Neptune... See carefully and then read other ...

Now NASA published black cloud photo...in December 2020...

NASA people worried about the darker spot seen at Neptune urf Varuna planet ...
Indian mythology admiring better name...

Varuna meaning is basically water but authentic way as per matruka and sandhi vigrah if we can see them the meaning us unique...

Va.. means it covered something hidden things

RU.. means URJA, energy of any kind of substances or object..

Na means shown yajan or extract of yajan on the surface whatever is jointly attached with us...

Nep means our that five or the potential of short or smaller substances..... it's like as power nep... Kind understand...

Tune pronouncing as chune as T is silent alphabet... means when you chewing such milky products you melting it in mouths as that ways understand better ... If it's Cadbury it's melting whole thing but if it's chewing gum than extract should be through out from mouth...

Where we find dark spots are may be hidden covered extract of that planet which would be trying to come out in space as since last long time the soler  system's Corona has unique heat and through out maximum different energy by sun super Nova effects in universes which is effectively attached with earth... And it's Polaris effects...

In rugved or any else Ved, Purana mentioned clearly that the Agni's Shalaakaa shaman by only Water... or the best friendship of FIRE and WATER .... Yin Yang is the best example to understand it's friendship...

Neptune urf Varuna is a family member of solar system... Though it's so far but a family member can give little effort to family for making bonding with eachother... That's our ancient technology Of 9 planets sun's system or family...

NASA people really appreciate on remarkable work of Hubble space telescope but every person needed little freedom in present days world... Why not making liberalness on few things of planetary systems????


See here produced the link of NASA's article...



Jay Gurudev Dattatreya

Jay Hind

Jigar Mehta / Jaigishya



Monday, 14 December 2020

Pine tree's flowers and my honey moon

Vikram Samvat 2077 Kartak amaavasyaa day put my memory which comes from other places of media portal...

see the life's live love symbol... and here I must remember the bhagavad Gita's chapter 15 First shlok...

This is my love style symbol and beautiful sign of pine tree's flowers...

it's speciality is .. if you gives water and wet it ...  it would be synchronised automatically as it's made from wooden style or type  material...

it's other speciality is...  it would be spread automatically when dryness comes in it...

The nature of God is unique or we can say the god must be crazy and this is my first honeymoon symbol of live love of mine to my wife, which is comes from Pachmadhee, Madhya Pradesh...

it's near Jabalpur's bedaghat... beautiful place...

there are richh cave means bear cave, paandav cave, upvan, beautiful small waterfalls for bathing, love point as it's a hill station... and echo point for human roar, sun set and sun rise point and many more natural super duper excited things for tracking....

India's tourism is best and MP has good accomodation facilities... with specious rooms, cleaning washing etcetera are good...

Jay Gurudev Dattatreya

Jay Hind

Jigar Mehta/Jaigishya

Video link from Jigar G Mehta


https://youtu.be/eIVGUXBSe54



who is a...
... father of Dwija J Mehta
... husband of VaIbhavi J Mehta
... son of Mrs and Mr Mehta





श्नथयो वैतसेनोत

त्रिः स्म माह्नः श्नथयो वैतसेनोत स्म मेऽव्यत्यै पृणासि । पुरूरवोऽनु ते केतमायं राजा मे वीर तन्वस्तदासीः॥५॥
- ऋग्वेदः
( उर्वशी कहती हैं ) हे पुरूरवा ! दिन ( सृष्टि के प्रारम्भ ) के समय आपने मुझे तीन बन्धनों ( त्रिगुणों) से बाँधा है। किसी अन्य कान्तिहीन या अप्रजननशील के साथ मेरी प्रतिद्वंद्विता नहीं थी, उसी भाव से मैं आपकी काया के अनुरूप आश्रय प्राप्त करती थी। उस समय शरीर पर मेरा ही शासन चलता था॥५॥
- ऋग्वेद as per Ved application

त्रिः स्म माह्नः श्नथयो वैतसेनोत स्म मेऽव्यत्यै पृणासि ।
पुरूरवोऽनु ते केतमायं राजा मे वीर तन्व१स्तदासीः ॥५॥
“હે પુરૂરવા ! તેં મને દિવસમાં ત્રણ વાર વૈતસ દંડ (પુરુષ પ્રજનનાંગ)થી આલોકિત કરી છે. સપત્નીઓ સાથે મારો કોઈ પ્રતિયોગ નથી તું મને અનુકૂળ બનીને મને સંતોષ
આપતો હતો. તે આશાથી જ હું તારા શરણમાં આવતી હતી. હે શૂરવીર ! તે સમયે તું મારા શરીરનો સ્વામી બનતો હતો.” as per bhaandevji

Ved has words like... ઋગ્વેદ 10, 95, 5
त्रिः स्म माह्नः श्नथयो वैतसेनोत स्म.... 

Shnathayo શિશ્ન માના શિ કાઢી માત્ર 'સ્થિર યજન' પ્રેરિત "શ્ન" ની વાત જૂગુપ્સઆ પ્રેરે છે...

Vaitsenot... પુરાણ માં વૈતરણી નદી ની વાત છે પણ વૈતસન ઉત (sandhi vigrah) શબ્દ એ પ્રજનન અંગ ની પરિભાષા માં મુકાયેલ છે...

And the whole thing is related to male sperm, means while eraction the path from vrushan to shishnagra, shishnagra to yoni and yoni to the female womb's inner andkosh, till falan...


Jay Gurudev Dattatreya

Jay Hind

Jigar Mehta / Jaigishya

छंद

छंद की सरल समजूति

विन्यासउदाहरण - टीका
अत्यष्टि६८१२+१२+८+८+८+१२+८ऋग्वेद ९.१११.३
अतिजगती५२११ + १० + १० + १० + ११ऋग्वेद ५.८७.१
अतिशक्वरी६०१६ +१६ + १२ +८ ८६.१५.६
अनुष्टुप३२८ +८ +८ +८३.५३.१२
अष्टि६४१६ +१६+ १६+ ८+ ८४.१.१, २.२२.१
उष्णिक्२८८+ ८+ १२३.१०.३
एकपदा विराट१०१०१०.२०.१, इसको दशाक्षरा भी कहते हैं क्योंकि एक ही पङक्ति में १० अक्षर होते हैं।
गायत्री२४८+ ८+ ८३.११.४, प्रसिद्ध गायत्री मंत्र
जगती४८१२+१२+१२+१२९.६८.१
त्रिष्टुप४४११ +११+ ११+ १११०.१.३
द्विपदा विराट२०१२ ८ १० १०
धृति७२१२+१२+ ८+ ८+ ८+ १६+ ८४.१.३
पंक्ति४०८+ ८+ ८+ ८+ ८५.६.२
प्रगाथ७२८+ ८+ ८+ १२+ १२+ १२+ १२३.१६.३
प्रस्तार पंक्ति४०१२+ १२+ ८+ ८६.९.७५
बृहती३६८+ ८+ १२+ ८३.९.१
महाबृहती४४८+ ८+ ८+ ८+ १२६.४८.२१
विराट४०१०+ १० +१०+ १०६.२०.७
शक्वरी५६८ +८+ ८+ ८+ ८+ ८+ ८५.२७.५


Sunday, 13 December 2020

अविभक्त आत्मा

व्हॉट्स एप का आधार लेके कुछ अच्छी बातें।

1-अष्टाध्यायी               पाणिनी
2-रामायण                    वाल्मीकि
3-महाभारत                  वेदव्यास (18 पुराण)
4-अर्थशास्त्र                  चाणक्य
5-महाभाष्य                  पतंजलि
6-सत्सहसारिका सूत्र      नागार्जुन
7-बुद्धचरित                  अश्वघोष. 1
8-सौंदरानन्द                 अश्वघोष. 2
9-महाविभाषाशास्त्र        वसुमित्र
10- स्वप्नवासवदत्ता        भास
11-कामसूत्र                  वात्स्यायन
12-कुमारसंभवम्           कालिदास. 1
13-अभिज्ञानशकुंतलम्    कालिदास. 2
14-विक्रमोउर्वशियां        कालिदास. 3
15-मेघदूत                    कालिदास. 4
16-रघुवंशम्                  कालिदास. 5
17-मालविकाग्निमित्रम्   कालिदास. 6
18-नाट्यशास्त्र              भरतमुनि
19-देवीचंद्रगुप्तम          विशाखदत्त
20-मृच्छकटिकम्          शूद्रक
21-सूर्य सिद्धान्त           आर्यभट्ट
22- बृहद संहिता           बरामिहिर
23-पंचतंत्र।                  विष्णु शर्मा
24-कथासरित्सागर        सोमदेव
25-अभिधम्मकोश         वसुबन्धु
26-मुद्राराक्षस               विशाखदत्त
27-रावणवध।              भटिट
28-किरातार्जुनीयम्       भारवि
29-दशकुमारचरितम्     दंडी
30-हर्षचरित                वाणभट्ट। 1
31-कादंबरी                वाणभट्ट। 2
32-वासवदत्ता             सुबंधु
33-नागानंद                हर्षवधन  1
34-रत्नावली               हर्षवर्धन। 2
35-प्रियदर्शिका            हर्षवर्धन। 3
36-मालतीमाधव         भवभूति
37-पृथ्वीराज विजय     जयानक
38-कर्पूरमंजरी            राजशेखर  1
39-काव्यमीमांसा         राजशेखर  1
40-नवसहसांक चरित   पदम् गुप्त
41-शब्दानुशासन         राजभोज
42-वृहतकथामंजरी      क्षेमेन्द्र
43-नैषधचरितम           श्रीहर्ष
44-विक्रमांकदेवचरित   बिल्हण
45-कुमारपालचरित      हेमचन्द्र
46-गीतगोविन्द            जयदेव
47-पृथ्वीराजरासो         चंदरवरदाई
48-राजतरंगिणी           कल्हण
49-रासमाला               सोमेश्वर
50-शिशुपाल वध          माघ
51-गौडवाहो                वाकपति
52-रामचरित                सन्धयाकरनंदी
53-द्वयाश्रय काव्य         हेमचन्द्र

वेद-ज्ञान:-

प्र.1-  वेद किसे कहते है ?
उत्तर-  ईश्वरीय ज्ञान की पुस्तक को वेद कहते है।

प्र.2-  वेद-ज्ञान किसने दिया ?
उत्तर-  ईश्वर ने दिया।

प्र.3-  ईश्वर ने वेद-ज्ञान कब दिया ?
उत्तर-  ईश्वर ने सृष्टि के आरंभ में वेद-ज्ञान दिया।

प्र.4-  ईश्वर ने वेद ज्ञान क्यों दिया ?
उत्तर- मनुष्य-मात्र के कल्याण         के लिए।

प्र.5-  वेद कितने है ?
उत्तर- चार ।                                                  
1-ऋग्वेद 
2-यजुर्वेद  
3-सामवेद
4-अथर्ववेद

प्र.6-  वेदों के ब्राह्मण ।
        वेद              ब्राह्मण
1 - ऋग्वेद      -     ऐतरेय 
2 - यजुर्वेद      -     शतपथ
3 - सामवेद     -    तांड्य
4 - अथर्ववेद   -   गोपथ

प्र.7-  वेदों के उपवेद कितने है।
उत्तर -  चार।
      वेद                     उपवेद
    1- ऋग्वेद       -     आयुर्वेद
    2- यजुर्वेद       -    धनुर्वेद
    3 -सामवेद      -     गंधर्ववेद
    4- अथर्ववेद    -     अर्थवेद

प्र 8-  वेदों के अंग हैं ।
उत्तर -  छः ।
1 - शिक्षा
2 - कल्प
3 - निरूक्त
4 - व्याकरण
5 - छंद
6 - ज्योतिष

प्र.9- वेदों का ज्ञान ईश्वर ने किन किन ऋषियो को दिया ?
उत्तर- चार ऋषियों को।
         वेद                ऋषि
1- ऋग्वेद         -      अग्नि
2 - यजुर्वेद       -       वायु
3 - सामवेद      -      आदित्य
4 - अथर्ववेद    -     अंगिरा

प्र.10-  वेदों का ज्ञान ईश्वर ने ऋषियों को कैसे दिया ?
उत्तर- समाधि की अवस्था में। अग्नि पुराण एकाक्षर कोष एवम मातृका विद्या

प्र.11-  वेदों में कैसे ज्ञान है ?
उत्तर-  सब सत्य विद्याओं का ज्ञान-विज्ञान।

प्र.12-  वेदो के विषय कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-   चार ।
        ऋषि        विषय
1-  ऋग्वेद    -    ज्ञान
2-  यजुर्वेद    -    कर्म
3-  सामवे     -    उपासना
4-  अथर्ववेद -    विज्ञान

प्र.13-  वेदों में।

ऋग्वेद में।
1-  मंडल      -  10
2 - अष्टक     -   08
3 - सूक्त        -  1028
4 - अनुवाक  -   85 
5 - ऋचाएं     -  10589

यजुर्वेद में।
1- अध्याय    -  40
2- मंत्र           - 1975

सामवेद में।
1-  आरचिक   -  06
2 - अध्याय     -   06
3-  ऋचाएं       -  1875

अथर्ववेद में।
1- कांड      -    20
2- सूक्त      -   731
3 - मंत्र       -   5977
          
प्र.14-  वेद पढ़ने का अधिकार किसको है ?                  उत्तर-  मनुष्य-मात्र को वेद पढ़ने का अधिकार है।

प्र.15-  क्या वेदों में मूर्तिपूजा का विधान है ?
उत्तर-  बिलकुल भी नहीं। पर जो संस्कृति अनुसार भाषा का प्रावधान अक्षर से बने शब्द ऊर्जा से देव वायु, अग्नि, वरुण, व्योम अवनि का आह्वाहन कैसे करना है, वह जानने वाला सिर्फ अक्षर ऊर्जा के स्तोत्र से सीधा इन्द्रिय यम नियम, ग्रह निग्रह से ओर योगिक क्रिया से, इन्द्रादि देव का यजन एवम प्रार्थना कर सकता है।

प्र.16-  क्या वेदों में अवतारवाद का प्रमाण है ?
उत्तर-  नहीं।

प्र.17-  सबसे बड़ा वेद कौन-सा है ?
उत्तर-  ऋग्वेद।

प्र.18-  वेदों की उत्पत्ति कब हुई ?
उत्तर-  वेदो की उत्पत्ति सृष्टि के आदि से परमात्मा द्वारा हुई । (अर्थात 1 अरब 96 करोड़ 8 लाख 43 हजार वर्ष पूर्व । ) 

प्र.19-  वेद-ज्ञान के सहायक दर्शन-शास्त्र ( उपअंग ) कितने हैं और उनके लेखकों का क्या नाम है ?
उत्तर- 
1-  न्याय दर्शन  - गौतम मुनि।
2- वैशेषिक दर्शन  - कणाद मुनि।
3- योगदर्शन  - पतंजलि मुनि।
4- मीमांसा दर्शन  - जैमिनी मुनि।
5- सांख्य दर्शन  - कपिल मुनि।
6- वेदांत दर्शन  - व्यास मुनि।

प्र.20-  शास्त्रों के विषय क्या है ?
उत्तर-  आत्मा,  परमात्मा, प्रकृति,  जगत की उत्पत्ति,  मुक्ति अर्थात सब प्रकार का भौतिक व आध्यात्मिक  ज्ञान-विज्ञान आदि।

प्र.21-  प्रामाणिक उपनिषदे कितनी है ?
उत्तर-  केवल ग्यारह।

प्र.22-  उपनिषदों के नाम बतावे ?
उत्तर-  
01-ईश ( ईशावास्य )  
02-केन  
03-कठ  
04-प्रश्न  
05-मुंडक  
06-मांडू  
07-ऐतरेय  
08-तैत्तिरीय 
09-छांदोग्य 
10-वृहदारण्यक 
11-श्वेताश्वतर ।

प्र.23-  उपनिषदों के विषय कहाँ से लिए गए है ?
उत्तर- वेदों से।
प्र.24- चार वर्ण।
उत्तर- 
1- ब्राह्मण
2- क्षत्रिय
3- वैश्य
4- शूद्र

प्र.25- चार युग।
1- सतयुग - 17,28000  वर्षों का नाम ( सतयुग ) रखा है।
2- त्रेतायुग- 12,96000  वर्षों का नाम ( त्रेतायुग ) रखा है।
3- द्वापरयुग- 8,64000  वर्षों का नाम है।
4- कलयुग- 4,32000  वर्षों का नाम है।
कलयुग के  4,976  वर्षों का भोग हो चुका है अभी तक। 4,27024 वर्षों का भोग होना है। 

1728000
1296000
0864000
0432000
4320000 total 43 lac 20 thousands years

पंच महायज्ञ
       1- ब्रह्मयज्ञ   
       2- देवयज्ञ
       3- पितृयज्ञ
       4- बलिवैश्वदेवयज्ञ
       5- अतिथियज्ञ
   
स्वर्ग  -  जहाँ सुख है। Means your own efforts for yagna
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भगवान_शिव के  "35" रहस्य!!!!!!!!

भगवान शिव अर्थात पार्वती के पति शंकर जिन्हें महादेव, भोलेनाथ, आदिनाथ आदि कहा जाता है।

*🔱1. आदिनाथ शिव : -* सर्वप्रथम शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें 'आदिदेव' भी कहा जाता है। 'आदि' का अर्थ प्रारंभ। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम 'आदिश' भी है।

*🔱2. शिव के अस्त्र-शस्त्र : -* शिव का धनुष पिनाक, चक्र भवरेंदु और सुदर्शन, अस्त्र पाशुपतास्त्र और शस्त्र त्रिशूल है। उक्त सभी का उन्होंने ही निर्माण किया था।

*🔱3. भगवान शिव का नाग : -* शिव के गले में जो नाग लिपटा रहता है उसका नाम वासुकि है। वासुकि के बड़े भाई का नाम शेषनाग है।

*🔱4. शिव की अर्द्धांगिनी : -* शिव की पहली पत्नी सती ने ही अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया और वही उमा, उर्मि, काली कही गई हैं।

*🔱5. शिव के पुत्र : -* शिव के प्रमुख 6 पुत्र हैं- गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा। सभी के जन्म की कथा रोचक है।

*🔱6. शिव के शिष्य : -* शिव के 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी। शिव के शिष्य हैं- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज इसके अलावा 8वें गौरशिरस मुनि भी थे।

*🔱7. शिव के गण : -* शिव के गणों में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय प्रमुख हैं। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है। 

*🔱8. शिव पंचायत : -* भगवान सूर्य, गणपति, देवी, रुद्र और विष्णु ये शिव पंचायत कहलाते हैं।

*🔱9. शिव के द्वारपाल : -* नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर और महाकाल।

*🔱10. शिव पार्षद : -* जिस तरह जय और विजय विष्णु के पार्षद हैं उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि शिव के पार्षद हैं।

*🔱11. सभी धर्मों का केंद्र शिव : -* शिव की वेशभूषा ऐसी है कि प्रत्येक धर्म के लोग उनमें अपने प्रतीक ढूंढ सकते हैं। मुशरिक, यजीदी, साबिईन, सुबी, इब्राहीमी धर्मों में शिव के होने की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। शिव के शिष्यों से एक ऐसी परंपरा की शुरुआत हुई, जो आगे चलकर शैव, सिद्ध, नाथ, दिगंबर और सूफी संप्रदाय में वि‍भक्त हो गई।

*🔱12. बौद्ध साहित्य के मर्मज्ञ अंतरराष्ट्रीय : -*  ख्यातिप्राप्त विद्वान प्रोफेसर उपासक का मानना है कि शंकर ने ही बुद्ध के रूप में जन्म लिया था। उन्होंने पालि ग्रंथों में वर्णित 27 बुद्धों का उल्लेख करते हुए बताया कि इनमें बुद्ध के 3 नाम अतिप्राचीन हैं- तणंकर, शणंकर और मेघंकर।

*🔱13. देवता और असुर दोनों के प्रिय शिव : -* भगवान शिव को देवों के साथ असुर, दानव, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, यक्ष आदि सभी पूजते हैं। वे रावण को भी वरदान देते हैं और राम को भी। उन्होंने भस्मासुर, शुक्राचार्य आदि कई असुरों को वरदान दिया था। शिव, सभी आदिवासी, वनवासी जाति, वर्ण, धर्म और समाज के सर्वोच्च देवता हैं।

*🔱14. शिव चिह्न : -* वनवासी से लेकर सभी साधारण व्‍यक्ति जिस चिह्न की पूजा कर सकें, उस पत्‍थर के ढेले, बटिया को शिव का चिह्न माना जाता है। इसके अलावा रुद्राक्ष और त्रिशूल को भी शिव का चिह्न माना गया है। कुछ लोग डमरू और अर्द्ध चन्द्र को भी शिव का चिह्न मानते हैं, हालांकि ज्यादातर लोग शिवलिंग अर्थात शिव की ज्योति का पूजन करते हैं।

*🔱15. शिव की गुफा : -* शिव ने भस्मासुर से बचने के लिए एक पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे फिर उसी गुफा में छिप गए। वह गुफा जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकूटा की पहाड़ियों पर है। दूसरी ओर भगवान शिव ने जहां पार्वती को अमृत ज्ञान दिया था वह गुफा 'अमरनाथ गुफा' के नाम से प्रसिद्ध है।

*🔱16. शिव के पैरों के निशान : -* श्रीपद- श्रीलंका में रतन द्वीप पहाड़ की चोटी पर स्थित श्रीपद नामक मंदिर में शिव के पैरों के निशान हैं। ये पदचिह्न 5 फुट 7 इंच लंबे और 2 फुट 6 इंच चौड़े हैं। इस स्थान को सिवानोलीपदम कहते हैं। कुछ लोग इसे आदम पीक कहते हैं।

रुद्र पद- तमिलनाडु के नागपट्टीनम जिले के थिरुवेंगडू क्षेत्र में श्रीस्वेदारण्येश्‍वर का मंदिर में शिव के पदचिह्न हैं जिसे 'रुद्र पदम' कहा जाता है। इसके अलावा थिरुवन्नामलाई में भी एक स्थान पर शिव के पदचिह्न हैं।

तेजपुर- असम के तेजपुर में ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित रुद्रपद मंदिर में शिव के दाएं पैर का निशान है।

जागेश्वर- उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर दूर जागेश्वर मंदिर की पहाड़ी से लगभग साढ़े 4 किलोमीटर दूर जंगल में भीम के मंदिर के पास शिव के पदचिह्न हैं। पांडवों को दर्शन देने से बचने के लिए उन्होंने अपना एक पैर यहां और दूसरा कैलाश में रखा था।

रांची- झारखंड के रांची रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर 'रांची हिल' पर शिवजी के पैरों के निशान हैं। इस स्थान को 'पहाड़ी बाबा मंदिर' कहा जाता है।

*🔱17. शिव के अवतार : -* वीरभद्र, पिप्पलाद, नंदी, भैरव, महेश, अश्वत्थामा, शरभावतार, गृहपति, दुर्वासा, हनुमान, वृषभ, यतिनाथ, कृष्णदर्शन, अवधूत, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, किरात, सुनटनर्तक, ब्रह्मचारी, यक्ष, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, द्विज, नतेश्वर आदि हुए हैं। वेदों में रुद्रों का जिक्र है। रुद्र 11 बताए जाते हैं- कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शंभू, चण्ड तथा भव।

*🔱18. शिव का विरोधाभासिक परिवार : -* शिवपुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर है, जबकि शिव के गले में वासुकि नाग है। स्वभाव से मयूर और नाग आपस में दुश्मन हैं। इधर गणपति का वाहन चूहा है, जबकि सांप मूषकभक्षी जीव है। पार्वती का वाहन शेर है, लेकिन शिवजी का वाहन तो नंदी बैल है। इस विरोधाभास या वैचारिक भिन्नता के बावजूद परिवार में एकता है।

*🔱19.*  ति‍ब्बत स्थित कैलाश पर्वत पर उनका निवास है। जहां पर शिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है।

*🔱20.शिव भक्त : -* ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवी-देवताओं सहित भगवान राम और कृष्ण भी शिव भक्त है। हरिवंश पुराण के अनुसार, कैलास पर्वत पर कृष्ण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। भगवान राम ने रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना की थी।

*🔱21.शिव ध्यान : -* शिव की भक्ति हेतु शिव का ध्यान-पूजन किया जाता है। शिवलिंग को बिल्वपत्र चढ़ाकर शिवलिंग के समीप मंत्र जाप या ध्यान करने से मोक्ष का मार्ग पुष्ट होता है।

*🔱22.शिव मंत्र : -* दो ही शिव के मंत्र हैं पहला- ॐ नम: शिवाय। दूसरा महामृत्युंजय मंत्र- ॐ ह्रौं जू सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जू ह्रौं ॐ ॥ है।

*🔱23.शिव व्रत और त्योहार : -* सोमवार, प्रदोष और श्रावण मास में शिव व्रत रखे जाते हैं। शिवरात्रि और महाशिवरात्रि शिव का प्रमुख पर्व त्योहार है।

*🔱24.शिव प्रचारक : -* भगवान शंकर की परंपरा को उनके शिष्यों बृहस्पति, विशालाक्ष (शिव), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज, अगस्त्य मुनि, गौरशिरस मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ आदि ने आगे बढ़ाया। इसके अलावा वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, बाण, रावण, जय और विजय ने भी शैवपंथ का प्रचार किया। इस परंपरा में सबसे बड़ा नाम आदिगुरु भगवान दत्तात्रेय का आता है। दत्तात्रेय के बाद आदि शंकराचार्य, मत्स्येन्द्रनाथ और गुरु गुरुगोरखनाथ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।

*🔱25.शिव महिमा : -* शिव ने कालकूट नामक विष पिया था जो अमृत मंथन के दौरान निकला था। शिव ने भस्मासुर जैसे कई असुरों को वरदान दिया था। शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था। शिव ने गणेश और राजा दक्ष के सिर को जोड़ दिया था। ब्रह्मा द्वारा छल किए जाने पर शिव ने ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया था।

*🔱26.शैव परम्परा : -* दसनामी, शाक्त, सिद्ध, दिगंबर, नाथ, लिंगायत, तमिल शैव, कालमुख शैव, कश्मीरी शैव, वीरशैव, नाग, लकुलीश, पाशुपत, कापालिक, कालदमन और महेश्वर सभी शैव परंपरा से हैं। चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और नागवंशी भी शिव की परंपरा से ही माने जाते हैं। भारत की असुर, रक्ष और आदिवासी जाति के आराध्य देव शिव ही हैं। शैव धर्म भारत के आदिवासियों का धर्म है।

*🔱27.शिव के प्रमुख नाम : -*  शिव के वैसे तो अनेक नाम हैं जिनमें 108 नामों का उल्लेख पुराणों में मिलता है लेकिन यहां प्रचलित नाम जानें- महेश, नीलकंठ, महादेव, महाकाल, शंकर, पशुपतिनाथ, गंगाधर, नटराज, त्रिनेत्र, भोलेनाथ, आदिदेव, आदिनाथ, त्रियंबक, त्रिलोकेश, जटाशंकर, जगदीश, प्रलयंकर, विश्वनाथ, विश्वेश्वर, हर, शिवशंभु, भूतनाथ और रुद्र।

*🔱28.अमरनाथ के अमृत वचन : -* शिव ने अपनी अर्धांगिनी पार्वती को मोक्ष हेतु अमरनाथ की गुफा में जो ज्ञान दिया उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। 'विज्ञान भैरव तंत्र' एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।

*🔱29.शिव ग्रंथ : -* वेद और उपनिषद सहित विज्ञान भैरव तंत्र, शिव पुराण और शिव संहिता में शिव की संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाई हुई है। तंत्र के अनेक ग्रंथों में उनकी शिक्षा का विस्तार हुआ है।

*🔱30.शिवलिंग : -* वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है, उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है। वस्तुत: यह संपूर्ण सृष्टि बिंदु-नाद स्वरूप है। बिंदु शक्ति है और नाद शिव। बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि। यही दो संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है। इसी कारण प्रतीक स्वरूप शिवलिंग की पूजा-अर्चना है।

*🔱31.बारह ज्योतिर्लिंग : -* सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ॐकारेश्वर, वैद्यनाथ, भीमशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वनाथजी, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, घृष्णेश्वर। ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति के संबंध में अनेकों मान्यताएं प्रचलित है। ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'। जो शिवलिंग के बारह खंड हैं। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।

 दूसरी मान्यता अनुसार शिव पुराण के अनुसार प्राचीनकाल में आकाश से ज्‍योति पिंड पृथ्‍वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेकों उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। भारत में गिरे अनेकों पिंडों में से प्रमुख बारह पिंड को ही ज्‍योतिर्लिंग में शामिल किया गया।

*🔱32.शिव का दर्शन : -* शिव के जीवन और दर्शन को जो लोग यथार्थ दृष्टि से देखते हैं वे सही बुद्धि वाले और यथार्थ को पकड़ने वाले शिवभक्त हैं, क्योंकि शिव का दर्शन कहता है कि यथार्थ में जियो, वर्तमान में जियो, अपनी चित्तवृत्तियों से लड़ो मत, उन्हें अजनबी बनकर देखो और कल्पना का भी यथार्थ के लिए उपयोग करो। आइंस्टीन से पूर्व शिव ने ही कहा था कि कल्पना ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है।

*🔱33.शिव और शंकर : -* शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है। लोग कहते हैं- शिव, शंकर, भोलेनाथ। इस तरह अनजाने ही कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताते हैं। असल में, दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं। शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है। कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है। अत: शिव और शंकर दो अलग अलग सत्ताएं है। हालांकि शंकर को भी शिवरूप माना गया है। माना जाता है कि महेष (नंदी) और महाकाल भगवान शंकर के द्वारपाल हैं। रुद्र देवता शंकर की पंचायत के सदस्य हैं।

*🔱34. देवों के देव महादेव :* देवताओं की दैत्यों से प्रतिस्पर्धा चलती रहती थी। ऐसे में जब भी देवताओं पर घोर संकट आता था तो वे सभी देवाधिदेव महादेव के पास जाते थे। दैत्यों, राक्षसों सहित देवताओं ने भी शिव को कई बार चुनौती दी, लेकिन वे सभी परास्त होकर शिव के समक्ष झुक गए इसीलिए शिव हैं देवों के देव महादेव। वे दैत्यों, दानवों और भूतों के भी प्रिय भगवान हैं। वे राम को भी वरदान देते हैं और रावण को भी।

*🔱35. शिव हर काल में : -* भगवान शिव ने हर काल में लोगों को दर्शन दिए हैं। राम के समय भी शिव थे। महाभारत काल में भी शिव थे और विक्रमादित्य के काल में भी शिव के दर्शन होने का उल्लेख मिलता है। भविष्य पुराण अनुसार राजा हर्षवर्धन को भी भगवान शिव ने दर्शन दिए थे,


अगस्त्य ऋषि
धनुष्य (धन च उष्य प्रावधान)
तीर, बाण (शर सन्धान प्रावधान)
अस्त्र
शस्त्र
प्रास 
पुंख
शक्ति
संवर्धन
बीज चन्द्र प्रावधान (धनुषी मध्ये स्थान)
पणछ चढ़ाने की त्वरित क्रिया



Saturday, 12 December 2020

The word UVAACH

What is the meaning of UVAACH???

Sanjaya, son of charioteer Gavalgana, is Dhritarashtra's driver and also his charioteer. Sanjaya was a disciple of sage Krishna Dwaipayana Veda Vyasa and was immensely devoted to his master, King Dhritarashtra. Sanjaya — who has the gift of seeing events at a distance (divya-drishti) right in front of him, granted by the sage Vyasa — narrates to Dhritarashtra the action in the climactic battle of Kurukshetra, which includes the Bhagavad Gita


Today while reading the Karna parava, read few words as vaishampayan UVAACH...

Means, in bhagavad Gita, there are so many people saying the word UVAACH..

Bhagwad Geeta's has four characters and they all are saying but the words is UVAACH...

And not only that the most important thing are all said different things but the common word ID is UVAACH...

Dhrutrashtra UVAACH
Sanjay UVAACH
Krushna UVAACH
Arjun UVAACH

And moreover there are vaishampayan is there and he also said somany words but narrated things are as UVAACH...

And above all the writer Maharshi Ved Vyas, Shri Dwaipayan himself written the word till end as UVAACH...

In Satya Narayan Kathaa there are few more characters and all are in sanskrut saying like

Sutji UVAACH
Shaunakaadi rushi UVAACH
Naarad UVAACH
VIshnu UVAACH...

They all are perspective way saying hidden massage and that is only UVAACH...

Little odd but in Ved and Purana all story or documentary has proof of here written words as hidden depth massage of single word UVAACH...

Dwaipayan Ved  vedvyas is the author of Mahabharata and he constantly written same words for all characters ... no one single character saying in Sanskrit as like as 
Krishna udbodhan 
Arjun udbodhan 
Sanjay udbodhan 
dhritrashtra udbodhan 
Vaishampayan udbodhan

they are not saying "udbodhan" or not saying "vadit" or "vidit"  and not saying even..
Sanjay varta:
Krushna varta:
Arjun varta:
Dhrutrashtra varta:

vastavik Pawan Prabha of energy of word maybe has unique identification of "UVAACH"


Sanskrut matruka sandhi vichar vistar of the word UVAACH is

उवाच

उ mean छोटा रक्षक या अनूप
वाच मतलब पढ़ा या लिखा हुआ पढ़ा ऐसे किन्तु वाच की संधि कुछ ऐसे है जैसेकि

वाच के दो खोडाक्षर च ओर च जुड़ने से पूर्ण च रखे तो 

अ व 【च + च】= वाच

"अ" कार रूपी देव या सत तत्व को वचन वाले शब्दों से व्याकरण के छंद अलंकार की परिभाषा में सजाने के लिये कहे गये या निर्देशन के रूपमे की वह तत्व ने कुछ कहा, ऐसे सिर्फ "वच" 

दूसरा खोडाक्षर च मतलब कुछ कम तत्व वाला (either positive or negative) पर फिरभी जुड़ा हुआ और उसका ज्ञान बांटने के लिए उत्सुक वह ऐसे।

अब समझे कि उवाच मतलब

सत तत्व को खत्म न होने देने की प्रेरणा से यूक्त सभी पात्र जो महाभारत में है उनसे परीक्षित के पुत्र जनमेजय तक कि वार्ता यानी जो भी कुछ कहा है , मरते दम तक , उसकी या उसके ज्ञान के अनुसार, वह अक्षर ऊर्जा का सारांश वही शब्द उवाच means UVAACH।

All people wanted to spread positive energy but the ways are unknown and henceforth whatever is front of you, you should consider as he or she or it is from future and you must try to save it for or as your new human generations... And consideration is as like the word SANSKRUTASYA SANSKAAR RUPI VRUKSHASYA NAVPALLIT  SHAKHAAYAAM ANUPAM FALAAFAL...
IS AS SHORT OF LONG UVAACH

Jigar Mehta/Jaigishya