त्रिपादूर्ध्व उद ऐत पुरूष: पादो अस्य इह अ भव: पूनः।।
ततो विश्वम व्य क्रमत: साशनानशने अभि।। 4।।
संस्कृत में अ काररूपी निर्देशित व्यक्ति विशेष सीधा स्वीकृत है। लगभग हर जगह ऐसाही देखाहै। इस लिए वह व्यक्ति, जो व्यक्ति, जिस व्यक्ति को भाषान्तर में समझने के लिये लिखा जाता है।
त्रिपाद उर्ध्व यानी पैर नही लेकिन अ कार रूपी सजीव की तीन पद की अवस्था जो उल्टी हो मतलब पुराने ज़माने में यज्ञ के द्वारान यूप रखे जाते थे। जिसका चित्ररण नीचे दिया है।
बर्बरीक का सिर्फ मुह कहा है शरीर का दाह संस्कार नही पढा अभी तक मैंने। अगर आपनेपढ़ा हो तो मुझे बताना।

जो क्षेत्र एवम क्षेत्रग्न है वह अष्ट प्रकृति का स्वामी कृष्ण कहलाया है।
तीन अवस्था यानी भूत, वर्तमान भविष्य की स्थिति।
उर्ध्व यानी सरल समझ मे वेताल की पेड़ पर लटकाये जाने वाली अवस्था जिसमें उल्टा देख सकता है, उल्टा होने की वजह से वह हाथ नीचे पृथ्वी तरफ रख कर अपने दोनों पैर को पेड़ पर शाखा की तरह तिंगा सकता है और सजीव पेड़ के जीवन की मुख्य ऊर्जा पानी को भी अपने मस्तिष्क तक पैरो से उपरसे नीचे ऊर्ध्व लेजा सकता है।
दोनो तस्वीर ध्यान से देखे।
पुराण वेदमे अश्वथामा च अश्वत्थवृक्ष का उल्लेख है। वृक्ष की लकड़ी को काष्ठ कहा है जो यूरोप में अंग्रेजी के कास्ट शब्दसे प्रचलित कई जाती प्रजाति, ज्ञाति के रूपमे पृथ्वी पर कई जगह कई किस्म के कर्म करती करातीहै।
महेसाणा गुजरात मे आगिया बैतालका मन्दिरभी है।
आग या अग्नि के प्रावधान रूपमे मेर मेरैयू , रूपाल की पालकी या पल्ली, हथियाथाथु प्रसिद्ध है।
उद ऐत पुरूष: यानी जो उदर या उत होने वाला है और जो "द" को विशिष्ट रूप से प्रावधानित करता है । यहां द यानी ब्रह्मा का दिया हुआ अक्षर। वह पुरुष ....
पादो अस्य इह अ भव: पूनः
वह या उस पुरुष का अ काररूपी स्वरूपित पद यानी पैर जो किसीको अचेतन या अवचेतन रूपसे रखे हुए है उसका या उसके चेतन तत्व से इच्छा वाला एक यानी अ भव यानी जन्म पुनः यानी दोबारा यानी फिरसे हो।
ततो विश्वम व्य क्रमत: साशनानशने अभि।
ऐसे या इस प्रकार के रहे हुए का (जो भी कोई हो) उसका विश्व मे व्य यानी विचारका फेलावा तल पर क्रम में यानी one by one सुंदर रूप से
साशनानशने अभि।
साशन यानी सूंदर "शं" के प्रावधान यानी जिसे हम शंकर कहते है उसके प्रावधान यानी भूत भविष्य वर्तमान मेसे वर्तमानरूपी प्रावधान का शंकर रूपी सजीव का अस्तित्व
अनशने अभि यानी भूख प्यास बगैर जिस तरह रहे है वैसे अभि यानी अ कार रूपी अग्नि वाले सजीव तत्व की उपस्थिति में हो।
जय गुरुदेवदत्तात्रेय
जय हिंद
जिगर महेता / जैगीष्य
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