भारतीय शिक्षा की सोचनीय प्रथा
एक बार मेरी नोकरी की माथा पच्छी में मेरी बेटीकी स्कूल एडमिसन मेरे शशीतल मामा के द्वारा GLS शाला में हो गई और वह भी नानावटी की सिफारिश से डिरेक्ट। वहाँ अन्नपूर्णा जी प्रिंसिपल थी। अमर मेरा मित्र है उसकी बेटी भी उसी द्वारान मेरी बेटी के साथ पढती थी। बादमे तो gls school to n r primary school में फर्स्ट स्टैंडर्ड और उसके बाद 2nd स्टैंडर्ड से H B Kapadia school दसवीं क्लास तक और अभी वह मतलब मेरी बेटी त्रिपदा शाला में ग्यारहवी पास करके 12वी क्लास की बोर्ड की परीक्षा दे रही है। लेकिन सभी शाला के सिर्फ एडमिसन के लिए मेरा योगदान उसके साथ खड़े रहने की बात पर नहिवत।
मेरा अभी प्रयोजन आजकी शिक्षा की प्रथा से है जहाँ के विविध प्रयोग बालको के साथ किये गये है।
जब तक्षशिला, नालंदा विद्यापीठ थी तो उस वक्त वेद, उपनिषद, पुराण का ज्ञान और उसके साथ उस वक्त की प्रणाली के तहत आर्थिक, वाणिज्य, समाज, न्यायिक, खेती, प्रशाशन में शाश्किय विद्या आदि का महत्व था। और वह पूरे विश्व मे काबिले तारीफ होने के कारण लोगो को वह विद्यापीठ और ज्ञान की वजह से सुकृत राज्यो के कारण भारत को सोने की चिड़िया कहते थे।
बादमे के बाहरी आक्रमण और अतिक्रमण से पूरे भारतकी जो श्लोक, स्तुति, मंत्र वाली संस्कृत भाषा की विद्या कई विभागों में ढेर हो गई।
और उर्दू, फारसी, डच (पोर्तुगीज), और आखिर में अंग्रेजी भाषा आ गई जो अभी तक चालू है।
अंग्रेजो का एक रिपोर्ट था जहां बताते हुए थोकड़ा खेद हो रहा है पर शायद रेफरेन्स में है कि अगर भारतमे राज्य संभल कर चलाना है तो उसकी शिक्षा प्रथा तोड़ो।
बादमे तो गांधी, नहेरु, सरदार और कई लोगों ने अंग्रेजी पढ़ी और अंग्रेजो को वर्ल्ड रिकॉर्ड के हिसाब से भारतीय सबसे बड़े विस्तार से वापस पहुचा दिया।
पर मेरा आजके समयमे जो नई निति रिति के तहत के प्रयोग करते हुए देखते कुछ खेद होता है। वह कुछ खास वजह है। जैसे कि तीन प्रकार के स्कूल में मतलब गुजरात का बोर्ड, ncert बुक्स के तहत का बोर्ड, सेंट्रल बोर्ड, और एक ही धोरण वाले एक क्लास की फीस अलग शाला में अलग अलग और महत्तम यानी पांच अंकोकि, वार्षिक फीस !!!!!!!!!!!!
पहले ऐसा नही था, बच्चे को पांच साल तक तो पढ़ने की हिदायत भी नही थी। अभी तो दूसरे साल से ही preemature शाला में पढ़ने मातापिता की तरफसे by force भेज दिया जाता है। और वह भी अंग्रेजी ही!!!!!
भारतमे आजादीके बादमे नये भोर भजते पता नही अंग्रेजी ने कैसा जादू चलाया की स्पेन, फ्रेंच और अंग्रेजी आज विश्व की प्रमुख भाषा बन गई है।
पुराने SSC में एक दिन में और 30 पासिंग मार्क्स पर दो पेपर की परीक्षा होती थी, लेकिन अब नए SSC कोर्स में एक दिन में एक पेपर की परीक्षा और 35 में उत्तीर्ण होने के निशान हैं … और इसके अलावा अधिकतम बहुविकल्पीय प्रश्न और उत्तर है।
मानव की स्मरण शक्ति पर बड़ा प्रहार है और कई और भारतीय वर्तमान शिक्षा प्रणाली के इस दुष्परिणाम से अवगत नहीं है, … शायद भविष्य में हमें मानविय तौर तरीकोके के बारे में अजीब सा व्यवहार करना सोचना होगा … और यह सामाजिक समाज के मानदंडों के साथ क्षमतामें परीक्षित करना है।
यह बातें कुछ विचित्र थी लेकिन सही है। फिलहाल के कोर्स भारतमे है, बोर्ड है, विश्व विद्यालय है, पर मानसिक परिपक्वता के हिसाबसे पावरफुल मेमरी कम नही होनी चाहिए। लेकिन लोग ट्यूशन को महत्व देते है। जबकि शाला का शिक्षण और उसकी तवज्जु कम नही करनी चाहिए या उसे प्रावधान ज्यादा करना चाहिये।
ज्यादातर बच्चे केलकुलेटर का प्रयोग करते है। यहाँ तक कि चार्टर अकाउंटेंट की परीक्षा का स्तर भी अभी निम्न हुआ है। भारत मे जिस परीक्षा का उच्च प्रमाण था और बहोत कड़क परिणाम आता था वहाँ आज लोग ऐसे CA और CS हो गए कि भारतीय बैंक का महत्तम फ्रॉड का फालूदा करने लगे है।
समग्र भारतीय विद्या प्रणाली सोचनीय रूपसे उभर के आती देख रहा हूं।
जहाँ मिनिमम वेगस एक्ट के तहत जो बंदा महीने भर 15000/- कमाता है वही अंग्रेजी शाला में गुजरात मे सालभर की 26000/- से 28000/- एक बच्चे की फीस देता है। अगर दो बच्चे है तो वह फीस 52000/- से 56000/- तक पहुचकर और पुस्तक वगेरा जुड़नेसे 60000/- फीस तक और प्राइवेट ट्यूशन को लेकर और 50000/- रुपये ओर जोड़ेंगे तो 100000/- ₹ (एक लाख) तक पहुच जाता है।
यहाँ सिर्फ गुजरात को ध्यानमे रखा है। क्योंकि में ज्यादातर वही से जुड़ा हूं।
भारत का gdp जो था उससे कई ज्यादा एजुकेशन बढ़ गया तो नोकरी का भी ज़ोला ज्यादाही बेकारोमे गिना गया।
जो पहले 10 और 12वी क्लास का 50% to 60 % रिज़ल्ट था वही आज रिज़ल्ट 70% to 80% हुआ , अच्छा है पर उसके सामने नोकरी और अंगत व्यवसाय का प्रावधान नहिवत बढ़ा। जिससे जो रिसेशन आया वह दिखाई देता है।
बैंक फ्रॉड की वजह से आज मार्केट टूट सा गया है और तकरीबन 29 लाख करोड़ रुपये मार्केट नुकसान से बैंक फ्रॉड से कहीं गायब हो गये है।
मेने आज सोच की भविष्य की चिंता कराके LIC वाले वर्तमान बिगाड़ते है। और में वर्तमान को ठीक करने हेतु भूतकाल की बात सोचता हूं। और वर्तमान तो निर्मल है ही है पर लोगों की क्षमता देखने और सोचने हेतु आवश्यक दृश्यों से शायद हट गई है।
अल्लाह जाने क्या होगा आगे, मौला जाने कट होगा आगे, मनोज कुमारका गीत याद आ गया।
जय हिंद
जय गुरुदेव दत्तात्रेय
जिगर महेता / जैगीष्य
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