Wednesday, 23 September 2020

अ समयी गुणत्रयी अवस्था और सम्यक्त्व

Things are not always strait but our attitude making miracle for the periodic time and it's strait for other as, if you do so that way, it's easy...

अगर कोई बन्दा गुणत्रयी अवस्था मे हैतो उसे पहचान करना कठिन है।

सूक्ष्म शरीर

स्थूल शरीर

कारण शरीर

शरीर की मात्रा विशिष्ठ होती है। वहीं पर कर्मोपार्जन किसे कहे वह सोचनीय है। खुद का अनुभव है। मुझे लोबसांग राम्पाकी बात याद है, पर वहभी यहां नही चलती क्योकि कुछ कर्म का निर्वाहन गुणत्रयी में भी सिर्फ दो से होता है या तो कभी कभी सिर्फ एक से भी चलता है।

उदाहरण

1   मेने बचपन मे पैसे वालाहोने का सोचा था।

2   में 42 साल पर कुछ नही अर्थ उपार्जन नही कर रहा हूं।

3   में अब भी अच्छा भविष्य सोचता हूं।

यहां आदर्श बात को ही सोचके अक्षर टांके है।

जब में बचपन की बात सोचता हूं तो उस वक्त कर्म का ख्याल भी नही होता। लेकिन मातापिता के जैसा संस्कार सिंचन से या मित्रो के व्यहवार से कर्म अच्छे करने है वह पता है। लेकिन कभी कभी माँ कहे कि "उस कुत्ते को भगाओ" तो कैसे? ... 

लकड़ी मार्के या हड़ हड़ कहके वह कर्म मेरा होगा।

वैसेही "मेने बचपन मे पैसे वाला होने का सोचा था।"

यह विधान मेरा स्वप्न शायद होगा तो वह 42 साल की उम्र में जब में कुछ कमाता नही हु तो वास्तविकता है। पर वह मेरा वर्तमान में भी स्वप्न तो हैही। तो उस वक्त वह विधान मेरा सूक्ष्म शरीर की बात को दर्शाता है।

स्थूल शरीर कर्मोपार्जन नही करता है वह विधान गलत है पर स्थूल शरीर अबभी निम्न वजन में ही है वह भी 42 साल की उम्र में वह बात कारण शरीर को तब पता चलती हैकि जब में अपने शरीर से ज्यादा बोझ या वज़न नही उठा रहा हु। में बूढा नहि हु पर उस वक्त अवस्था वाला शरीरपता न होने से ज्यादा थकान महसूस होती है। वह अशक्ति भी हो सकती है। पर मुझे पता नही । वह कारण शरीर को दर्शाता है जिसे वक्त की थपाटसे होने वाला सभी महसूस होने से बगैर दिखाये अनुभूत होता है। जीससे खुदका पैसे कमाने का स्वप्न पूरा नही हो सकता, जिसमे भी स्थूल शरीर की बात दिखावे के तौर पर होने से लोग कहते है कि यह बंदा कुछ काम नही करता।

इस तरह सूक्ष्म, कारण, स्थूल शरीर कार्यरत रहकर खुदको सोचने पर मजबूर करते है कि में को हूँ?

यहां पर मुझे जे कृष्णा मूर्ती की एक बात याद आती है। जिसमे वे कह रहे है कि लोग हमें काम करना क्यों कहते है। कृपया यह लिंक यूट्यूब की देखें।


https://youtu.be/owN86vYAO3g

उनकी सोच सही है पर यहा एक शब्द असमयि जगत का निर्देश रखना जरूरी है जो इंसान के सम्यक्त्व को दर्शाता है। और कहीं पर पढ़ चुका हूं की "जो दिखता है वह होता नही है और जो होता है वह दिखता नही है।"

यहां समय की सफर परोक्ष और अपरोक्ष रूपसे अनुभूत होती है। 

क्योंकि 

परम् धिष्ण्याः उष्णतामान स्व वर्तमान शरीर: नास्ति सानुभूति क्रियताम।

"असमयी जगत" इस शब्द का प्रादुर्भाव मेरी बा दादीमाँ, दादा, पप्पा ने घरमे गुजराती में किया था। गुजराती में उसे असमय जगत कहते हैं।

जो इंसान को दिखता है वही समय संचालन करने वाले विधाता उसे सम्यक्त्व से नवाज़ते है।

फोटोग्राफी की दुनिया और चित्रलेखा के रंग को प्रणाम।

जय गुरुदेव दत्तात्रेय

जय हिंद

जिगर महेता / जैगीष्य


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