Sunday 22 November 2020

त्रसरेणु परमाण्वीय वज़न प्राचीन भारतीय प्रमाण मापन एकम

तुलामानं प्रतीमानं सर्वं च स्यात् सुलक्षितम्।
षट्सु षट्सु च मासेषु पुनरेव परीक्षयेत्॥

(अर्थ - राजा को प्रति छः माह पश्चात् भारों (बाटों) तथा तुला (तराजू) की सत्यता सुनिश्चित करके राजकीय मुहर द्वारा सत्यापित करना चाहिए।)

मेरा एक मित्र जो फिलहाल केनेडा है यह ATCO weighing scale में काम करता था। तब तो कुछ मालूम नही था पर जब कुछ पन्ने पढ़े तो उत्सुकता जागरुक होने से यह गुगल पर से मिला तो छाप दिया।

http://www.atcoweighingscale.com/products.html


...रत्ती भारतीय उपमहाद्वीप का एक पारम्परिक वज़न का माप है, जो आज भी ज़ेवर तोलने के लिए जोहरियों द्वारा प्रयोग किया जाता है। आधुनिक वज़न के हिसाब से एक रत्ती लगभग ०.१२१२५ ग्राम के बराबर है।
" गुँजा का बीज जिसपर "रत्ती" नाम का वज़न आधारित है
  • ८ धान की एक रत्ती' बनती है
  • ८ रत्ती का एक माशा बनता है
  • १२ माशों का एक तोला बनता है
  • ५ तोलों की एक छटाक बनती है
  • १६ छटाक का एक सेर बनता है
  • ५ सेर की एक पनसेरी बनती है
  • ८ पनसेरियों का एक मन बनता है|

यहां हम त्रसरेणु की बात सोच रहे है। जो अति प्राचीन परमाण्वीय वजन को दिखाने के लिए लिखते थे।


भौतिक विज्ञान की आज की शाखा त्रुटि ओर भूल को व्याख्यायित करती है, पर पुराने ज़माने में उसका प्रमाण हम यहां देख सकते है। उस वक्त भूल का तो अंदाज़ रखे बगैर सिर्फ त्रुटि ही थी और वह भी टेन रेस्ट टू माइनस सेवन (ten rest to minus seven) हो मतलब 0.0000001 हो तब!!!!!!!!!!!!!!

त्रुटि मतलब जिसे हम निकाल नही सकते क्योंकि वह जब मापन यंत्र बना तब उसके मोल्डिंग की वजह से रही हुई खामी।

भूल मतलब भौतिक मापन यन्त्र के प्रयोग दरम्यान अपनी आंखों से निष्पन्न हुई खामी।

उदाहरण तोर पर वर्नियर कैलिपर्स, माइक्रोमीटर स्क्रू जो जानते है उनको पता होगा।

प्राचीन भारतीय माप पद्धति

प्राचीन भारत में माप की कई पद्धतियाँ प्रचलित थीं। अत्यंत प्राचीन काल के बटखरों का आनुपातिक संबंध दहाई (...) पद्धति पर था। इसका अनुपात (कुछ अपवादों को छोड़कर) 1, 2, 4, 8, 16, 32, 64, 160, 320, 640, 1600, 3200, 8000, 128000 का था। इन बाटों की सबसे छोटी इकाई 0.2565 ग्राम सिद्ध हुई है।

मनु और याज्ञवल्क्य ने प्राचीन भारत में प्रचलित जिन मान-पद्धतियों का वर्णन दिया है उसकी रूपरेखा इस प्रकार है:

8 त्रिसरेणु = 1 लिक्षा; 

3 लिक्षा = 1 राजसर्षप;

4 राजसर्षप = 1 गौर सर्षप; 

2 गौर सर्षप = 1 यवमध्य

3 यवमध्य = 1 कृष्णल; 

5 कृष्णल = 1 सुवर्णमाष

16 सुवर्णमाष = 1 सुवर्ण; 

4 सुवर्ण = 1 पल


त्रसरेणु या त्रिसरेणु और लिक्षा संभवत: काल्पनिक मान लगते थे पर जब एन्सियन्ट एलियन वालोंने अगत्स्य ऋषि का बैटरी का प्रावधान कॉपर यानी तांबे के ज़रिये बताया तो आज वह सच लगा तो विधानमें "थे" से "सच हे" पढा। 

राजसर्षप, गौरसर्षप, यव और कृष्णल वास्तविक मान थे जिनका व्यवहार सुवर्ण जैसी कीमती चीजों को तौलने में होता था। मनु के अनुसार 10 पल का एक धरण होता था। चाँदी के लिये एक भिन्न मान भी था, जिसका विवरण इस प्रकार है:

2 कृष्णल = रौप्यमाष
16 रौप्यमाष = 1 धरण
10 धरण = 1 पल

जैसे 4 सुवर्ण का 1 पल होता था, उसी प्रकार 4 कर्ष का भी एक पल माना गया है। मनु के हिसाब से 1 कर्ष 80 रत्ती का होता था। चरकसंहिता में कर्ष के आधार पर बाटों का विरण इस प्रकार दिया है —

4 कर्ष = 1 पल; 

2 पल = 1 प्रसृति

2 प्रसृति = 1 कुड़व; 

4 कुड़व = 1 प्रस्थ

4 प्रस्थ = 1 आढ़क; 

4 आढ़क = 1 द्रोण

चरक की मानपद्धति में द्रोणभार 1024 तोले अथवा 12 4/5 सेर होता था। किंतु अर्थशास्त्र के अनुसार द्रोण 800 तोले अथवा 10 सेर का ही होता था। वैसे चरक और अर्थशास्त्र की मानपद्धति एक ही है। अंतर केवल कुड़व के वजन के कारण था। अर्थशास्त्र का कुड़व 50 तोले का और चरक का कुड़व 256 तोले का था।
कौटिल्य ने द्रोण से भारी बाटों का भी उल्लेख किया है। इनका विवरण इस प्रकार है–

16 द्रोण = 1 खारी = 4 मन
20 द्रोण = 1 कुंभ = 5 मन
10 कुंभ = 1 वट्ट = 50 मन

हीरों की तौल में तंड्डुल और वज्रधारण मानों का उपयोग होता था। 20 तंड्डल का 1 वज्रधारण होता था।
भूमिमाप के लिये अथवा दूरी और लंबाई नापने के लिये सबसे छोटी इकाई अंगुल थी। शास्त्रों में, विशेषतया अर्थशास्त्र (2। 20। 2-6) में, अंगुल से भी नीचे के परिमाण दिए हैं।

8 परमाणु = 1 रथरेणु;
8 रथरेणु = 1 लिक्षा;
8 लिक्षा = 1 यूकामध्य;
8 यूकामध्य = 1 यवमध्य;
8 यवमध्य = 1 अंगुल;

अंगुल के बाद की इकाइयों का विवरण इस प्रकार है –
4 अंगुल = 1 धनुग्र्रह
8 अंगुल = 1 धनुर्मुष्टि
12 अंगुल = 1 वितास्ति अथवा 1 छायापुरुष
14 अंगुल = 1 शम या शल या 1 परिरथ या 1 पद
2 वितास्ति अथवा 24 अंगुल = 1 अररत्नि या 1 प्राजापत्य हस्त (इस प्राजापत्य हस्त का व्यवहार मुख्यतया भूमि नापने में होता था)
28 अंगुल = 1 हाथ (चारागाह मापने में उपयोगी)
32 अंगुल = 1 किष्कु (छावनी में लकड़ी चीरने की माप के लिए)
42 अंगुल = 1 हाथ (बढ़ई के काम के लिए)
84 अंगुल = 1 हाथ (कुंए तथा खाई की माप के लिए)
4 अरत्नि = 1 दंड;
10 दंड = 1 रज्जु
2 रज्जु = 1 परिदेश;
3 रज्जु अथवा 30 दंड = 1 निवर्तन
10 निवर्तन = 1 धनु
2000 धनु = 1 गोरुत अथवा कोस,
4 गोरुत = 1 योजन

प्राचीन भारत के इन मानों का प्रचलन तथा प्रभाव पूर्वमध्यकालीन और मध्यकालीन आर्थिक जीवन पर भी प्रचुर रहा, यद्यपि आनुपातिक संबंधों और नामों पर प्रदेश और शासनभेद का भी प्रभाव पड़ा। श्रीधर के गणितसार में पूर्वमध्यकालीन मानपद्धति का विवरण इस प्रकार है–

4 पावला = 1 पाली; 

4 पाली = 1 मड़ा (माना)

4 मड़ा = 1 सेई; 

12 मड़ा = 1 पदक

4 पदक = 1 हारी; 

4 हारी = 1 मानी

मध्यकाल में तौल के संबंध में रत्ती, माशा, तोला, छटाँक, सेर तथा मन का उल्लेख मिलता है। इसकी मानपद्धति इस प्रकार थी–


8 रत्ती = 1 माशा; 

12 माशा = 1 तोला

5 तोला = 1 छटाँक; 

4 छटाँक = 1 पाव

4 पाव अथवा 16 छटाँक = 1 सेर; 

40 सेर = 1 मन

सामान्यतया 1 मन = 40 सेर होता था। 1 सेर की तौल अबुलफजल के अनुसार 18 दाम थी। दामवाला सेर प्राचीन 1 प्रस्थ से तुलनीय है। अकबर ने सेर का मान 28 दाम कर दिया था। अकबर का इलाही दाम लगभ 322.7 ग्रेन के बराबर था। इस प्रकार उसके 28 दामवाला मन 51.63 पौंड लगभग 25।। सेर के बराबर था। जहाँगीर का मन (मन ए जहाँगीरी) 36 दाम अर्थात्‌ 66.38 पौंड था। शाहजहाँ ने सेर के मूलभूत मान में परिवर्तन किया। उसका सेर (सेरे शाहजहानी) 1 दाम के बराबर होता था। इसी सेरे शाहजहानी का नाम औरंगज़ेब के काल में आलमगीरी पड़ा। इस काल में 1 मन 43 या 44 दाम अथवा आलमगीरी का होता था। भूमि नापने के लिये अकबर के काल में बीघा-ए-इलाही प्रचलित था जो 3/4 एकड़ के बराबर था। शाहजहाँ तथा औरंगजेब के काल में बीघा-उ-दफ्तरी प्रचलित हुआ जो बीघ-ए-इलाही का 3/5 अर्थात् 0.59 एकड़ होता था।

2018 से विश्व की बदली हुई वज़न तोलमाप की प्रणाली की जानकारी देने वाली वेब लिंक

https://navbharattimes.indiatimes.com/world/rest-of-europe/the-definition-of-kilogram-is-changed/amp_articleshow/66664635.cms

भारतीय वज़न का प्रावधान दर्शाती लिंक


मापन से सम्बन्धित भारतीय ग्रन्थ

  • ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त का २२वाँ अध्याय (यन्त्राधिकार)[1]
  • यन्त्रराज या यन्त्रराजागम -- १३७० में जैन मुनि महेन्द्र सूरि द्वारा रचित
  • यन्त्रप्रकाश -- सन १४२८ में नैमिषारण्य के रामचन्द्र वाजपेयी द्वारा रचित
  • यन्त्रशिरोमणि -- सन १६१५ में जम्मूसर के विश्राम द्वारा रचित
  • तुर्यतन्त्रप्रकाश -- सन १५७२ ई में काम्पिल्य के भूधर द्वारा रचित
  • यन्त्राधिकार -- पद्मनाभ
  • दिक्साधनायन्त्र -- पद्मनाभ
  • ध्रुवभ्रमाधिकार -- पद्मनाभ

कुछ भारतीय मापन यन्त्र

  • ब्रह्मगुप्त ने अपने ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त के 'यन्त्राधिकार' नामक अध्याय में अनेकानेक यन्त्रों का विधिवत वर्णन किया है, जैसे- घटिका, शंकु, चक्र, धनुष, तुर्यगोल, याष्टि, पीठ, कपाल, और कर्तारी।
  • सम्राटयन्त्र
  • ध्रुवभ्रमयन्त्र[2][3]
  • दोलायन्त्र [4]
  • तिर्यक्पातनयन्त्र,
  • डमरूयन्त्र,
  • धुर्वभ्रमयन्त्र,
  • पातनयन्त्र,
  • राधायन्त्र,
  • धरायन्त्र,
  • ऊर्ध्वपातनयन्त्र,
  • स्वेदनीयन्त्र,
  • मूसयन्त्र,
  • कोष्ठियन्त्र,
  • यन्त्रमुक्त,
  • खल्वयन्त्र

जय गुरुदेव दत्तात्रेय

जय हिंद 

जय हिंद



गायत्री वाले पण्डित श्री राम शर्मा को हिमालय के छाया पुरुष बहुत मदद करते थे ऐसा पढ़ा है।
12 अंगुल = 1 वितास्ति अथवा 1 छायापुरुष

 Present days the world is using below mentioned calculation... Five photos...









These all are means matric calculation sentences are available in Victor campas box's upper flap inner side...

जिगर महेता / जैगीष्य

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