पुरुरवा राजा ने धर्म के द्वारा प्रजा का पालन करते हुए बहुत यज्ञों द्वारा बजन किया । सैकड़ों अबोध, हजारों बाजपेय अतिरात्रि, द्वादशाह यज्ञों द्वारा बार-बार यजन करके, सप्तद्वीप समुद्रों वाली पृथ्वी का चक्रवती राजा हुआ, आमानुसिक बल से उसने सम्पूर्ण महीतल को जीता दुर्भिक्ष, अकाल मरण, व्याधि, राजा पुरुरवा के राज्य में कहीं भी किसी को न हुआ, उनके राज्य में सभी अपने धर्म में तत्पर रहते थे सभी मनुष्य सुखी रहते थे।
जब राजा पुरूरवा यज्ञ करते, तभी शून्य वसुन्धरा सब शापों से मुक्त हो जाती थी । और जो मनुष्य राजा के पास यज्ञ में जाते थे उनकी इच्छा को पूछकर उसे पूर्ण किया जाता था । ।
गङ्गाजी के जाह्नवी कहलाने की कथा बड़ी मनोरंजक है । पूर्व काल में कोशिनी के गर्भ मेंसम्पन्न सुहोत्र पुत्र 'जह्नु' में सर्वमेध नामक महायज्ञ का आयोजन किया । अपना सर्वस्व उन्होंने यज्ञ में होम कर दिया । इस महायज्ञ के पुण्य प्रताप को देखकर सभी देवता बड़े प्रभावित हुए । गङ्गाजी तो उन्हें पति रूप में चरण करने के लिये अधीर हो गई । 'जह्नु' ने गङ्गाजी का प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया । इस पर जह्नु और गङ्गाजी में मनोमलिन्य पैदा हो गया । देवताओं ने इस मनोमलिन्य को अशोभनीय समझकर दोनों में यह समझौता करा दिया कि गङ्गाजी जह्नुके घर में पुत्री के रूप में जन्म लें । ऐसा ही हुआ, तभी से जह्नु पुत्री होने के कारण गङ्गाजी का नाम जहान्वी हुआ।
जिस प्रकार सीताजी की प्राप्ति जनक द्वारा यज्ञ के लिये भूमि शोधन करते समय हुई थी, उसी प्रकार बृषभानु को भी राधिका पुत्री की प्राप्ति यज्ञ के. लिए भूमि शोधन करते समय हुई । वह कथा पद्मपुराण में आती है।
यज्ञ का ज्ञान विज्ञान - गायत्री उपासक पंडित श्री राम (प्रसाद) शर्मा
किमेकम द्वारे श्रीमान किम उपस्थित?
जिगर महेता / जैगीष्य
No comments:
Post a Comment