हम सब जानते है कि पंचमहाभूतों का शरीर आदर्श परिस्थितियों में एक बार ही जीवन मे अग्नि रूपी काया खत्म होने तक ईश्वर कृपा से चलता है। जिसमे अग्नि भी एक तत्व है।
आश्का करना मतलब आरती को अपने हाथों की नीचे रख कर उसकी गर्माहट को अपने शरीर या मस्तक पर चढ़ाना।
पुजारी तक उसे "आरती लेलो" ऐसे कहते है, जो शायद अपनी आर्य परम्परा से दूर है।
संस्कृत पढ़ाने वाले भी "आरती लेलो" कहे तो भी आश्का मतलब समझना जरूरी है।
संधि एवम मातृका के अनुसार एवम अग्निपुराण एकाक्षर कोष के प्रावधान अनुसार देखें तो
आ - निर्देशात्मक रूपसे है।
श्क - मतलब शुष्क नही पर शून्य के साथ क्षेत्रीय रूपसे जुड़ा हुआ यजन हेतुुुक क , जिसमे अभी भी सचेतन अवस्था है और गरमी से मतलब अंदरूनी या बाह्य गरमी से जीवन मे आगे बढ़ सकता है। वैसा सजीव स्वरूप।
अ - कार रूपी मुलाक्षर देव के नामों में नामांकित है।
यहां उर्दू शब्द इश्क भी काबिले तारीफ है।
इ मतलब इच्छा वाला कुछभी। क्योकि इ के बाद का तुरंत से आया हुआ जुड़ा हुआ व्यंजन सशब्द "श्क" सिर्फ यहाँ क्षेत्र ही दिखता है।
हमें आरती लेलो ऐसे नही कहना है पर कहना है कि आरती की आश्का लेलो।
भारत मे शक संवत काभी प्रावधान है। नये साल की शुरुआत में कही पर विक्रम संवत राजा के नामसे, शालिवाहन संवत भी राजा के नामसे, इसवीसन ईसाई धर्मानुगत, शक संवत प्रजा का नाम था, जैसे कि द्रविड़, हूण, शक आदी। संवत जैसे शब्द भी बहुत अच्छी जानकारी प्राप्त कराते है।
कामदेव जिसका एक नाम प्रद्युम्न है उनकी भार्या का नाम रती यूँही नही होगा शायद।
जय गुरुदेव दत्तात्रेय
जय हिंद
जिगर महेता / जैगीष्य
In Gujarat there are so many writer editor and one of them is Shri Ashwini Bhatt and he wrote Aashkaa Mandal... See the little brief story.... It's related to topic so put as little notes...
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