युधिष्ठिर का रथ ज़मीन पर क्यों पड़ा?
सिर्फ एक विधान ओर विश्वास और श्रद्धा की नैया का किनारे पर आ कर व्यक्ति को सजीव चित्रणका अनुमोदन करना या बात को छिपाना वह निर्भर करता है मनुष्य जीवन पसंद करने वाले बन्दे पर। कैसे वह सोचनीय देखें।
अश्वथामा हत:।
कृष्णके कहने पर बोल दिया तब तो ठीक था पर मन की रंजिशों में सत्यता को पार करने की तम्मन्नाने एक भ्राता, एक शिष्य, एक पति, एक पिता और एक मनुष्य को सदेह स्वर्ग प्राप्ति करवाई।
राजसूय यज्ञ में जो स्थान युधिष्ठिरने कृष्ण को दिया उसीका उन्होंने "नरोवा कुंजरोवा।" कह कर बड़ी सिफत से भगवान को भी एक बारकह दिया कि आप भी जूठे हो। भलेही मेरा कुछभी हो जाये पर असत्य बगैर भगवानभी युद्ध नही जीत सकते।
कृष्ण ने तो कहा ही था में सर्व समर्थ हु। मुझे सब कुछ समर्पण करके मुझ पर निर्भर रह कर युद्ध करो। पर युधिष्ठिरकी विदुर चाचाकी सिखाई नीति की वजह से कुछ भी उपालम्भ न करके भलेही धीरे से पर बोलना
"अश्वथामा हत:। (शँखकी भारी आवाजमें धीमे से) नरोवा कुंजरोवा।"
इस बात का प्रमाण है कि कोई कुछ भी कहे पर तुम क्या करते हो, वह प्रश्न को उत्तर देना वह भी अच्छे कर्म से , वह भी अपनी शरीर की कृति से वह सचमुच काबिले तारिफ है।
जब भगवान को समर्पण किया तो सोचना क्या?
अच्छी बात है। पर जो बाप बच्चे पैदा करना जानता है वह स्वयं स्वधर्म आगे जुठ फैलाएगा तो भावी पीढ़ी शायद पिता को भी ना पहचाने ओर पीता ने जिसे मैं दिया उसीको सबकुछ समझे तो वह बात कुछ विचित्र प्रकारसेसमजीजा सकती हैपर वह हमें यहांनही देखना है।
बात है कि युधिष्ठिरका रथ "अश्वत्थामा हत:" विधान से जमीन पर नही आया पर वह रथ जमीन पर आया तब जब युधिष्ठिर भगवान की धर्म रक्षा की नीति में अपना योगदान स्वच्छ रखने की बात की नोख पर बोले "नरोवा कुंजरोवा"।
इंसान ही अपनी नितिरिती को संभाल सकता है और वही वैश्य धर्म है।
तभी तो विष्णु सहस्त्र नाम मे सबसे पहले
विश्वम विष्णु वष्टकारो भूत भव्य भवतप्रभु
.... की बात सोचनीय है।
जो माँके गर्भ से शिशु बाहर जमीन पर आयेगावही पृथ्वी पर पैर सम्भालकर रख पायेगा। ओर जमीन पर होगा तभी फिरसे अवकाश गमन कर सकेगा।
जो "थ" है वही दूसरे "थ" से कैसे अलग हो ? उस प्रश्न का जवाब यहां है। प्रणाम।
कुछ वृतांत यहां नही लियापर बहुत कुछ लिखा जा सकता है। समझना हमको हैकि हम आज के कोरोना पेंडेमिक में अपने यहांरखे हुए मुलाज़िम को कैसे सम्भालते है।
किताबें बहोत है, लेकिन सम्भालना सिर्फ अपना कर्म है।
जय गुरुदेव दत्तात्रेय
जय हिंद
जिगर महेता / जैगीष्य
पृथ्वी के प्रणव ओर "प्र" स्थानिय सत तत्व को प्रणाम।
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