मैं और तुम नदी के किनारे
समांतर अवस्थाओं में
बहते हुए जल को दिशा देनेमें
सामर्थ्य स्वरूप से सिद्ध
मानसिक, कायिक और वाचिक
सूक्ष्म , स्थूल और कारण शरीर से
पूर्ण से पूर्णत्व की ओर
बढते बढ़ते ब्रह्म पुत्र के
तूफान को शांत करके
नद के डेल्टा प्रदेश पहुचे है।
सिर्फ बोये हुए बीजो की फसलको
पक्व धान रूप में लाने वाले
अग्नि को सराहनीय नमन से
नए देशोत्कर्ष संस्कार सिंचनका
आहवाहन करते है।
हे विश्व देव,
हमारी प्राथमिक प्रार्थना
स्वीकार करो।
Jigar Mehta / Jaigishya
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