Sunday, 31 March 2019

दक्खत

एकही रगसिया गाड़ा
जिगर काम नही करता
आइना पूछे परी से
मलबा किधर छूना है
जयंती अंकल की बात
छूना नही खड़े रहना है
आभासी बिम्ब प्रति न था
स्वयं मैं था अजीबो गरीब
लेकिन था, हु और रहूंगा
मन मेरे, सिर्फ तू जानता है
सवेरे रोया हु, शाम देखी है
अन्न पानी भी बचा है,
सिर्फ चाड़िया निकल गया।
दिल में मगज मस्तिष्क
कह के भी कुछ नही करता
सिर्फ स, श, ष, क, ख, ग
से यग्न की तरफ वषट्आकार
मात्र जय जिष्णु की सोच से
राष्टउत्कर्ष सराहनिय देखता है।

Jigar Mehta / Jaigishya

वैष्णो देवी मे घोड़ी या घोड़ो को सवारी करते समय चालक दक्खत बोलते हुये आगे ले जाता है।
मतलब दुख कम हो

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