अमरकोश में अग्नि के 34 नाम और उन पर टीकाएँ बहुत रोचक जानकारी देती हैं:
1. अग्नि: आगे बढ़ना
2. वैश्वानर: लोगों के रिश्तेदार; विश्व नार के रिश्तेदार:
3. वाहिनी: हवा के साथ यात्रा
4. वीथोत्र: वह स्थान जहाँ कई आहुतियाँ दी जाती हैं
5. दानंजय: धन कमाने में मदद करता है; अर्जुन और एक साँप का नाम भी
6. कृपेतायोनी: पानी का स्रोत; उपाध्यक्ष पद पानी अग्नि
का उत्पादन करता है ''
अग्नर आप: '' 7. ज्वाला: चमक, चमक
8. जाटवेद: वह जो सब जानता है; ऊष्मा सब कुछ पैदा करती है
9. तनुनाथ: वह कभी भी शरीर को गिरने नहीं देता; जो
अपने आकार की रक्षा नहीं करता है ; शुष्क होना या जो घी खाता है
10. बरही: रेंगना, रेंगना
11. सुषमा: वह जो सब कुछ छोटा या सूख जाता है
12. कृष्णवर्मा: वह जो काला धुआँ पैदा करता है
13. सोचीसेसा: जो अपने बालों के रूप में ज्योति
रखता है। उषारुभ: सुबह उज्ज्वल
। 15. आश्र्य: जो उससे जुड़ी हर चीज को जलाता है।
16. ब्राह्बनु: एक व्यक्ति जो
17 प्रकाश बनाता है। कृष्णू:
खाली करने वाला 18. पावका: एक जो शुद्ध करता है
19.
अनाला: आठ वसुओं में से एक । 20: रोहिताश्व: एक जिसके पास एक लाल घोड़ा है
। 21. वायुसका: हवा का दोस्त
22। शिकवान: वह जो
23 की लपटों से घिरा हुआ है। आसुसुक्षानी, एक बार में कुछ भी
खाता है या 24 को छोटा करता है । हिरण्यरत्न : स्वर्ण शक्ती या वीरताम
25। हुताबुक: जो भी अर्पित किया जाता है, वह उसके द्वारा खाया जाता है
। 26: धना: जो हर किसी को गर्म महसूस कराता है
।
28. सप्तर्षि: एक जिसे सात ज्वालाएँ मिली हैं।
काली, करला, मनोजवा, सुलोहिता, सुदुमवर्ण, सत्लिंगिनी, विश्ववारा उनकी सात जीभ / लपटें हैं।
29. दमुना: जो वश में होता है,
30 को शांत करता है । सुकरा: सुकरा का रंग - शुक्र-सफ़ेद
31। चित्रभानु: रंग-बिरंगा प्रकाश
32। विववसु: प्रकाश उसका धन है
33 सुचि: वह जो हर चीज को शुद्ध करता है
34. अपापिता: वह है पानी में पित्त का
34 names of Agni in the Amarakosa and the commentaries on them give lot of interesting information:
1. Agni : Going forward
2. Vaisvanara : Relative of the people; Relative of Visva Nara:
3. Vahni : Travels with wind
4. Vitihotra : Place where many Ahutis are offered
5. Dananjaya : Helps to earn wealth; also name of Arjuna and a snake
6. Krupeetayoni : Source of water; vice verse Water produces Agni
‘’Agner apa:’’
7. Jwalana : Glittering, glowing
8. Jataveda : He who knows all; Heat creates everything
9. Tanunapath : He never allows the body to fall; one who does not protect his
own shape; becoming dry or one who eats ghee
10. Barhi : Creeping, crawling
11. Sushma : One who shortens or dries everything
12. Krsnvartma : One who produces black smoke
13. Sochiskesa : One who has flame as his hair
14. Usharbuh : Bright in the morning
15. Asrasya : One who burns everything associated with him
16. Brhatbanu : One who creates light
17. Krshanu : emaciating
18. Pavaka : One who purifies
19. Anala : One of the Eight Vasus
20. Rohitasva : One who has a red horse
21. Vayusaka : Friend of the wind
22. Shikavan : One who has flames of tuft
23. Asusukshani : Dries anything at once or shortens
24. Hiranyareta : Golden shakti or veeryam
25. Hutabuk : Whatever offered is eaten by him
26. Dahana : One who makes everyone feels hot
27. Havyavahana : One who has wind as a vehicle
28. Saptarchi : One who has got seven flames.
Kali, Karala, Manojawa, Sulohita, Sudumravarna, Spulingini, Visvadara are his seven tongues/ flames.
29. Damuna : One who subdue, quietens
30. Sukra : Colour of Sukra – Venus –Bright White
31. Chitrabanu : Colourful light
32. Vivavasu : Light is his wealth
33. Suchi : One who purifies everything
34. Apapitta : He is the embodiment of pitta in the water
As according वायुपुराण
अग्नि + स्वाहा =
पावक (विद्युत / अवभ्रुथ) का पुत्र सहरक्ष्य
पवमान (निर्मांथ्य / गारह्यपत्य ) का पुत्र क्रव्यवाहन
शुचि (शौर / सौर ) का पुत्र हव्यवाहन
Total 3
ब्रह्मोदनाग्नि जिसे भरत भी कहते हैं।
वैश्वानरमुख } मह } काव्य } जलरस(अमृत)
टोटल 5
लौकिकाग्नि अथर्वा } दद्ध्यड
(भृगु पुत्र अंगिरा भी कहते है।
पवमान या ग्रह्यापत्य के दो पुत्र जिसमे शंस्य एक और दूसरा आह्वनिय को अभिमानी कहते है और वही हव्यवाहन के रूपसे दो पुत्र प्रणयन और शुक्र का पिता है।
शंस्य के दो पुत्र सभ्य और अवस्थ्य
और शंस्य की 16 नदी के साथ शादी हुई।
जो कावेरी, कृष्णवेणी, नर्मदा, यमुना, गोदावरी, वितस्ता, चंद्रभागा, इरावती, विपाशा, कौशिकी, शतद्रु, सरयू, सीता, सरस्वती, ह्लादिनी, पावनी नामसे जानी जाती है।
शंस्य से 16 प्रकारकी धिष्ण्याः उतपन्न हुई। जिसे 16 धीषणी कहते हैं।
जिसमे विहरणीय, और उपस्थेय मुख्य है।
उपस्थेय को शालामुखकीय लहते है।
ऋतु, प्रवाहण, अग्नीध्र भी है।
अनिर्देश्य और वाच्य भी है।
दूसरे उत्तरवैदिक अग्नि को सम्राट नामक पुत्र है।
पार्षदन्य अग्नि भी है।
प्रतद्वोच में नभ नामक अग्नि है।
वसु नाम से ब्रह्मज्योति अग्नि है।
शामित्र में हव्यसूर्य नामके अग्निको असंसृष्ट अग्नि कहते है।
विश्व का समुद्र नामक अग्नि है।
अति प्रकाशित ऋतुधामा अग्नि भी है। जो औदुम्बर वृक्षमे है।
अहिर्बुधन्य नामसे अनुदेश्य अग्नि भी है, जिसे गृहपति कहते है।
विहरणीय के आठ पुत्र कहे है जो वर्णन किया है।
पौत्रेय नामक हव्य का वहन करता हुआ अग्नि भी है।
शांति नामक अग्नि प्रचेता है। वही सत्य है।
विश्वदेव अग्नि भी ब्रह्म स्थान में है।
अवक्षुरच्छाक नामक अग्नि आकाश में है।
पराक्रमी उशीर नामक अग्नि नैष्ठीय है।
व्यरत्ति नामक मार्जालीय अग्नि है।
सौम्य भी धीषणी पुत्र अग्नि है।
पावक पुत्र ह्रच्छय जठराग्नि है। उसका पुत्र मन्यूमान है।
मन्यूमान } संवर्तकाग्नि जो वडवा नामक झषाणाम के मुख में होता है।
उसके पुत्र को सहरक्ष भी कहते है।
सहरक्ष का पुत्र क्षाम, जो सजीव के घर को जलाता है।
क्षाम का पुत्र क्रव्याद, जो मृत्यु पर्यन्त सजीव का भक्षण करता है।
शुचि का आयु नामक पुत्र है।
आयु से महिमान, से शावान, से सवन, से अद्भुत, से विविच, से अर्क, महान नाम वाले अग्नि पुत्र है।
सवन जो पाकयग्नो के अभिमानी है। वैसेही विविच प्रायश्चित वाले याग्निक का होमात्मक द्रव्य का भक्षण करता है।
अर्क के पुत्र का नाम इस तरह है। अनिकवान, वासृजवान, रक्षोहा, पितृकृत, सुरभि, द्रव्यरत्न, रुक्मांगद या रुकमान।
जैसे शंस्य कि 16 पत्नी है वैसे शुचि के 14 अग्नि को उसकी प्रजा कही है।
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