गंधर्व मतलब
किसीभी नियत रूपसे, निश्चित गंध धारण किया हुवा सतचित स्वरूप अपौरुषेय वेेद रूपी मंत्र द्रष्टा। या निश्चित वास सुवास रखने वाला अपनी पहचान छिपाने के लिए।
शिव का एक नाम किरात भी तो है।
पुष्प दंत मतलब
(उप + ष्प = पुष्प) यानी छोटे रक्षक जिसका पंचमहाभूत खत्म न हो ऐसे निर्देशमे
वेद उपनिषद में एक नाम है उपकोसल अगर वह समझे तो पुष्प दंत भी समझ आएगा।
इस स्तोत्र के निर्माण पर एक अत्यंत ही रोचक कथा प्रचलित है। एक समय की बात है जब चित्ररथ नामक शिवभक्त राजा हुए जिन्होंने अपने राज्य में कई प्रकार के पुष्पों का एक उद्यान बनवाया, वह शिवपूजन के लिये पुष्प वहीं से ले जाते थे। महान् शिवभक्त गंधर्व पुष्पदंत इंद्र की सभा के मुख्य गायक थे, एक दिन उनकी नजर उस सुंदर उद्यान पर पड़ी और वह मंत्रमुग्ध हो गए, उन्होंने उसी उद्यान से पुष्प तोड़े तथा प्रस्थान किया। मायावी गंधर्व पर किसी की नजर नहीं पड़ी पर जब राजा को इसका पता चला तो उसने चोर को पकड़ने के कई असफल प्रयास किए। राजा को एक तरकीब सूझी उसने शिव पर अर्पित पुष्प आदि उद्यान के पथ पर बिछा दिया। अगले दिन जब पुष्पदंत वहाँ आए तो उनकी नजर उन शिव निर्माल्य वस्तुओं पर नहीं पड़ी जिससे उनके पद ही उनपर पड़ गए। गंधर्वराज को शिव के क्रोध का भाजन करना पड़ा तथा उनकी सारी शक्तियाँ समाप्त हो गईं। जब उनको अपनी भूल का आभास हुआ तब उन्होंने एक शिवलिंग का निर्माण कर उसकी पूजा की तथा प्रार्थना के लिये कुछ छंद बोले, शिव प्रसन्न हुए, उनकी शक्तियाँ लौटा दी तथा यह आशीर्वाद दिया कि उनके द्वारा उच्चारित छंद समूह भविष्य में शिवमहिम्नस्तोत्र के नाम से प्रचलित होगा तथा उनके हृदय में स्थान प्राप्त करेगा और पुष्पदंत द्वारा बनाया गया शिवलिंग पुष्पदंतेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध होगा जिसके दर्शन मात्र से पाप कटेगा।
इस प्रकार शिवमहिम्न स्तोत्र की रचना हुई।
शिवमहिम्न स्तोत्र में 43 श्लाेक हैं, श्लाेक तथा उनके भावार्थ निम्नांकित हैं
पुष्पदन्त उवाच -
महिम्नः पारं ते... परमविदुषो यद्यसदृशी।
स्तुतिर्ब्रह्मादीना+मपि तदवसन्नास्त्वयि गिरः।।
अथाऽवाच्यः सर्वः... स्वमतिपरिणामावधि गृणन्।
ममाप्येष स्तोत्रे... हर निरपवादः परिकरः।। १।।
आप कैसे गायेंगे, क्या राग की कमान है, तरकीब से जाने
1 से 29 सभी शिखरिणी रागमे गाये।
हर पंक्ति में 15 अक्षर है, आखिरमें एक लघु ओर एक गुरु करके कुल 17 अक्षर के छे ओर ग्यारह ऐसे दो विभाग करके प्रथम छे अक्षरपे विराम लेना है, ओर स्तोत्र पूर्ण करने है।
30 वें श्लोकमे 6 ओर 4 अक्षर पे विराम लेके बाकी के 7 बोलने है।
बहुल-रजसे विश्वोत्पत्तौ, भवाय नमो नमः।
प्रबल-तमसे तत् संहारे, हराय नमो नमः।।
जन-सुखकृते सत्त्वोद्रिक्तौ, मृडाय नमो नमः।
प्रमहसि पदे निस्त्रैगुण्ये, शिवाय नमो नमः।। ३०।।
31 तो 34, 37, ओर 38 से 43के पदमे पांच गण के 15 अक्षरमे से 8 ओर 7 पे विराम लेके लय या राग पद्धति से बोलना है।
आसमाप्तमिदं स्तोत्रं... पुण्यं गन्धर्व-भाषितम्।
अनौपम्यं मनोहारि... सर्वमीश्वरवर्णनम्।। ३९।।
कुल 43 श्लोक है उसने क्या महिमा है वह पढें।
1 पुष्प दंत उवाच
2 शिव सगुण निर्गुण रूप
3 ओर 4 शिव की वेदवाणी
5 तर्क से न समझ सके ऐसी शिवभक्ति
6 अनुकूलन तर्क से ईश्वर सिद्धि
7 अनेक सम्प्रदाय का संगम स्थान
8 शिव की गरीब सी घरकी चीज वस्तुएं
9 शिव सृष्टि के लिए विविध मत
10 ब्रह्मा विष्णु के शिवको पहचान ने का यत्न
11 रावण की परम् भक्ति
12 रावण के मद का नाश
13 बाणासुर की समृद्धि
14 शिव का विषपान
15 कामदेव का नाश
16 शिवतांडव
17 शिव के मस्तिष्क पर गंगा की बूंद से दृश्य
18 त्रिपुरदाह के लिए शिव का आडम्बर (नौटन्कि)
19 विष्णु की महान शिवभक्ति
20 यज्ञ का फल देने वाले शिव
21 दक्ष यज्ञ नाशक
22 ब्रह्मा को पुत्री से मर्यादा दिखाना
23 शुद्र कन्या शिव नही पहचानती
24 शिव की स्मशान लीला
25 योगि का परम तत्व शिव
26 शिव की अनेक मूर्ती
27 शिव का ओमकार पद
28 शिव के आठ नाम
29 शिव नमस्कार
30 शिव के चार रूप
31 रुग्ण जात गुण विधान से शिव पूजा
32 अनंत गुणी शिव
33 उपसंहार
34 स्तोत्र पाठ फलश्रुति
35 महिम्न माहात्म्य
36 पूण्य प्राप्ति
37 स्तोत्रकार नामनिर्देश
38 पाठ का फलकथन
39 स्तोत्र से प्रसन्न शिव
40 स्तोत्र महिमा
41 ओर 42 स्त्रोत्र से प्रार्थना
43 कभी भी पाठ करने से पाप मुक्ति
जय गुरुदेव दत्तात्रेय।
No comments:
Post a Comment