देेवी स्वाहा के सोलह नाम हैं–
1. स्वाहा,
2. वह्निप्रिया,
3. वह्निजाया,
4. संतोषकारिणी,
5. शक्ति,
6. क्रिया,
7. कालदात्री,
8. परिपाककरी,
9. ध्रुवा,
10. गति,
11. नरदाहिका,
12. दहनक्षमा,
13. संसारसाररूपा,
14. घोरसंसारतारिणी,
15. देवजीवनरूपा,
16. देवपोषणकारिणी।
हवन में आहुति देते समय क्यों कहते है ‘स्वाहा’
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अग्निदेव की दाहिकाशक्ति है ‘स्वाहा’
अग्निदेव में जो जलाने की तेजरूपा (दाहिका) शक्ति है, वह देवी स्वाहा का सूक्ष्मरूप है। हवन में आहुति में दिए गए पदार्थों का परिपाक (भस्म) कर देवी स्वाहा ही उसे देवताओं को आहार के रूप में पहुंचाती हैं, इसलिए इन्हें ‘परिपाककरी’ भी कहते हैं।
सृष्टिकाल में परब्रह्म परमात्मा स्वयं ‘प्रकृति’ और ‘पुरुष’ इन दो रूपों में प्रकट होते हैं। ये प्रकृतिदेवी ही मूलप्रकृति या पराम्बा कही जाती हैं। ये आदिशक्ति अनेक लीलारूप धारण करती हैं। इन्हीं के एक अंश से देवी स्वाहा का प्रादुर्भाव हुआ जो यज्ञभाग ग्रहणकर देवताओं का पोषण करती हैं।
स्वाहा के बिना देवताओं को नहीं मिलता है भोजन।
स्वाहा की सन्धि
स्व अ ह अ
दहन की ज्वलनशीलता के प्रमाण उच्चारण मुंह से शब्दों से देखें तो "आह" स्वरूपत: स्वीकृत है।
वही बात अपने लिये कहे तो सुंदर आवृत शरीर का/के विभाग, वही "स्व"...
जीवनसाथी हे अग्नि और माता-पिता हे दक्ष और प्रसूति।
हिन्दू धर्म और बौद्ध धर्म में मन्त्रों के अन्त में स्वाहा उच्चारित किया जाता है जो उस मन्त्र के अन्त का सूचक है। इसे चीनी भाषा में 薩婆訶, sà pó hē, जापानी भाषा में sowaka, तिब्बती भाषा में སྭཱཧཱ་, (soha) कहते हैं। इसका शाब्दिक अर्थ है 'अच्छी तरह से कहा गया' या 'सुभाषित'। यज्ञ करते समय 'स्वाहा' बोला जाता है। सम्भवतः स्वाहा, सु+आह से बना है जिसका अर्थ 'अच्छी तरह से कहा' हुआ।
जिगर महेता / जैगीष्य
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